आषाढ़ गुप्त नवरात्रि 2025 का पर्व तंत्र साधना, शक्ति उपासना और देवी कृपा प्राप्त करने के लिए अत्यंत शुभ माना जाता है। यह नवरात्रि गुप्त रूप से मां दुर्गा की साधना के लिए समर्पित होती है, जिसमें विशेष रूप से हवन का आयोजन अत्यंत फलदायी माना गया है। धार्मिक ग्रंथों और पुराणों में भी हवन को शक्ति उपासना का एक महत्वपूर्ण अंग बताया गया है।
हवन में प्रयुक्त अग्नि और सामग्री से उत्पन्न धुआं वातावरण को शुद्ध करता है। यह घर की नकारात्मक ऊर्जा को दूर करता है और सकारात्मक ऊर्जा का संचार करता है, जिससे मानसिक शांति और आत्मिक संतुलन प्राप्त होता है।
हवन देवी दुर्गा को प्रसन्न करने का एक प्रभावी माध्यम है। जब मंत्रों के साथ आहुति दी जाती है, तो वह शक्तिशाली ऊर्जा का निर्माण करती है जो साधक की साधना को सिद्धि दिलाती है।
ऐसी मान्यता है कि आषाढ़ गुप्त नवरात्रि में विधिपूर्वक हवन करने से साधक की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। विशेष रूप से तांत्रिक साधनाओं में यह समय सर्वोत्तम माना गया है।
हिंदू धर्म के सबसे बड़े धार्मिक आयोजन कहे जाने वाले महाकुंभ में अब एक महीने से भी कम का समय रह गया है। सभी 13 प्रमुख अखाड़े प्रयागराज पहुंच भी चुके हैं। और पहले शाही स्नान के लिए तैयार है।
महाकुंभ 2025 की शुरुआत 13 जनवरी से प्रयागराज में होने वाली है। अब जब भी कुंभ की बात हो, और शाही स्नान की बात न हो, ऐसा हो नहीं सकता। कुंभ और शाही स्नान एक दूसरे के बिना अधूरे हैं।
शाही स्नान कुंभ मेले का प्रमुख आकर्षण है। इसके लिए बड़ी संख्या में श्रद्धालु और साधु संत महाकुंभ वाली जगह इकट्ठे होते हैं। इस दौरान सबसे पहले अखाड़ों के साधु-संत, विशेष रूप से नागा साधु, पवित्र नदियों में स्नान करते हैं।
अक्षत यानी कि पीले चावल। हिंदू धर्म में अक्षत को बेहद महत्वपूर्ण माना गया है। इसे पूजा-पाठ में मुख्य रूप से इस्तेमाल किया जाता है। बिना खंडित हुए चावल को अक्षत कहते हैं। यह पूजा में इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि यह पवित्रता, समृद्धि और अखंडता का प्रतीक माना जाता है। पूजा-पाठ अक्षत के बिना अधूरा माना जाता है। यह पूजा का विशेष सामग्री है।