श्रावण के बाद आता है भाद्रपद मास, लेकिन धार्मिक दृष्टि से इसकी महिमा किसी से कम नहीं है। यह मास उन भक्तों के लिए बेहद शुभ माना जाता है, जो श्रीकृष्ण, गणेश, विष्णु और शिव जी की उपासना करते हैं। भाद्रपद मास 10 अगस्त 2025 से शुरू हो रहा 7 सितंबर तक चलेगा। हिंदू पंचांग के अनुसार वर्ष का एक अत्यंत पुण्यदायक महीना है। यह वह समय है जब भक्तजन भगवान श्रीकृष्ण की बाल लीलाओं में लीन रहते हैं और गणपति बप्पा के आगमन की तैयारी में जुट जाते हैं। साथ ही भगवान विष्णु और शिव की उपासना भी बड़े ही श्रद्धाभाव से की जाती है। लेकिन प्रश्न यह उठता है कि इस पवित्र मास में किस देवता की पूजा सबसे अधिक फलदायी मानी गई है? आइए जानते हैं विस्तार से।
भाद्रपद मास की प्रमुखता जन्माष्टमी के कारण सबसे पहले सामने आती है। भगवान श्रीकृष्ण का जन्मोत्सव इस माह की आध्यात्मिक ऊर्जा को विशेष बनाता है। रात्रि जागरण, झांकियों और व्रतों के साथ भक्त श्रीकृष्ण की बाल लीलाओं का स्मरण करते हैं। मान्यता है कि इस दिन व्रत करने और पूजन करने से संतान सुख, समृद्धि और आनंद की प्राप्ति होती है।
शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि को मनाई जाने वाली गणेश चतुर्थी इस मास का दूसरा सबसे बड़ा पर्व है। इस दिन से शुरू होकर 10 दिनों तक चलने वाली गणपति आराधना भक्तों के जीवन से विघ्नों को दूर करती है। कार्यों में सफलता, करियर में उन्नति और परिवार में सुख-शांति के लिए यह पर्व अत्यंत शुभ माना गया है।
हरितालिका तीज, ऋषि पंचमी और प्रदोष व्रत जैसे पर्वों के माध्यम से भगवान विष्णु और शिव की भी आराधना होती है। विशेषकर सोमवार को शिवलिंग पर जलाभिषेक करने से रोग-दोषों से मुक्ति मिलती है, वहीं भगवान विष्णु की पूजा से जीवन में संतुलन और शांति आती है।
हालांकि भाद्रपद मास में चारों देवताओं की पूजा फलदायी मानी गई है, लेकिन इस माह की पहचान और केंद्रबिंदु भगवान श्रीकृष्ण और गणेश जी हैं। जन्माष्टमी और गणेश चतुर्थी न केवल धार्मिक रूप से महत्वपूर्ण हैं, बल्कि आध्यात्मिक दृष्टि से भी गहन प्रभावशाली माने जाते हैं। भाद्रपद मास में श्रीकृष्ण और गणपति बप्पा की आराधना सबसे शुभ और कल्याणकारी मानी जाती है।