हिंदू पंचांग में एकादशी व्रतों का विशेष स्थान है और उनमें पापांकुशा एकादशी का महत्व अत्यंत उच्च माना गया है। कहा जाता है कि पाप रूपी हाथी को पुण्य रूपी अंकुश से वश में करने के कारण ही इस एकादशी का नाम पापांकुशा पड़ा। इस दिन मौन, भगवद् स्मरण, भजन और कीर्तन का विधान है। धार्मिक ग्रंथों के अनुसार यह व्रत न केवल पापों से मुक्ति दिलाता है, बल्कि मन को शुद्ध कर सद्गुणों का विकास भी करता है।
2026 में पापांकुशा एकादशी गुरुवार, 22 अक्टूबर को मनाई जाएगी। एकादशी तिथि का प्रारंभ 21 अक्टूबर 2026 को दोपहर 02:11 बजे होगा और तिथि की समाप्ति 22 अक्टूबर 2026 को दोपहर 02:47 बजे होगी। व्रत का पारण 23 अक्टूबर 2026 को प्रातः 06:27 बजे से 10:12 बजे के बीच किया जाएगा।
इस व्रत की तैयारी दशमी तिथि से ही प्रारंभ करने का विधान है। दशमी के दिन सात प्रकार के धान्य जैसे गेहूं, उड़द, मूंग, चना, जौ, चावल और मसूर का त्याग किया जाता है। एकादशी के दिन प्रातः स्नान कर व्रत का संकल्प लिया जाता है। इसके पश्चात घट स्थापना कर कलश पर भगवान विष्णु की प्रतिमा रखकर विधिपूर्वक पूजा की जाती है। विष्णु सहस्रनाम का पाठ और दिनभर भगवद् स्मरण इस व्रत का प्रमुख अंग है। द्वादशी के दिन ब्राह्मणों को अन्न और दक्षिणा देकर पारण किया जाता है।
महाभारत काल में स्वयं भगवान श्रीकृष्ण ने धर्मराज युधिष्ठिर को इस एकादशी का महत्व बताया था। भगवान ने कहा कि यह व्रत पापों का निरोध करता है और मनुष्य को अर्थ तथा मोक्ष प्रदान करता है। मान्यता है कि इसके प्रभाव से अनेक अश्वमेघ और सूर्य यज्ञ के समान फल प्राप्त होता है। श्रद्धा और भक्ति भाव से किया गया यह व्रत व्यक्ति के जीवन में सकारात्मक परिवर्तन लाता है और आत्मिक शांति प्रदान करता है।
प्राचीन काल में विंध्य पर्वत क्षेत्र में क्रोधन नाम का एक अत्यंत क्रूर बहेलिया रहता था, जिसने अपना जीवन हिंसा और अधर्म में बिताया। मृत्यु के भय से वह महर्षि अंगिरा की शरण में पहुंचा। महर्षि के निर्देश पर उसने पापांकुशा एकादशी का व्रत किया। भगवान विष्णु की कृपा से उसके समस्त पाप नष्ट हो गए और उसे मोक्ष की प्राप्ति हुई। यह कथा इस व्रत की महिमा और शक्ति को स्पष्ट करती है।