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हिंदू धर्म में दर्श अमावस्या का दिन अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है। यह अमावस्या पितरों की शांति और पूजा-पाठ के लिए समर्पित है। इस दिन पितरों को श्रद्धांजलि देने का महत्व है, और विशेष रूप से पितृ तर्पण किया जाता है ताकि पूर्वजों की आत्मा को शांति मिले। आइए जानते हैं कि दर्श अमावस्या का महत्व क्या है, इसकी पौराणिक कथा क्या है, और इस दिन क्या करना चाहिए।
पंचांग के अनुसार मार्गशीर्ष माह की अमावस्या तिथि के शुरुआत 30 नवंबर को सुबह 10 बजकर 29 मिनट से शुरू होगी। जो 1 दिसंबर को सुबह 11 बजकर 50 मिनट तक जारी रहेगी। ऐसे में 30 नवंबर को पितरों के लिए धूप-ध्यान किया जाएगा और 1 दिसंबर को स्नान-दान की तिथि रहेगी।
दर्श अमावस्या का दिन पितृ तर्पण, पुण्य कार्य और शांति की प्राप्ति के लिए विशेष महत्व रखता है। इसके अलावा-
पौराणिक कथा के अनुसार, पुराने समय की बात है कि समस्त बारह सिंह आत्माएं सोमरोस पर रहा करती थीं। उनमें से एक आत्मा ने गर्भ धारण करने के बाद एक खूबसूरत सी कन्या को जन्म दिया। जिसका नाम अछोदा रखा गया। अछोदा बचपन से ही अपनी माता की देखरेख में पली बढ़ी थी। ऐसे में उसे शुरुआती दिनों से ही हमेशा अपने पिता की कमी महसूस होती थी। जिसके कारण एक बार उसे सारी आत्माओं ने मिलकर धरती लोक पर राजा अमावसु की पुत्री के रूप में जन्म लेने को कहा।
राजा अमावसु एक प्रसिद्ध और महान राजा थे जिन्होंने अपनी पुत्री अछोदा का पालन पोषण बहुत अच्छे से किया। ऐसे में पिता का प्यार पाकर अछोदा काफी प्रसन्न रहने लगी। इसके बदले में अछोदा पितृ लोक की आत्माओं का आभार जताना चाहती थी। इसके लिए उसने श्राद्ध का मार्ग अपनाया। इस कार्य को करने के लिए उसने सबसे अंधेरी रात को चुना। जिस दिन चंद्रमा आकाश में मौजूद नहीं होता, उस दिन वह पितृ आत्माओं का विधि विधान से पूजन करने लगी। पितृ भक्ति के कारण अछोदा को वो तमाम सुख मिले, जो उसे स्वर्ग में भी प्राप्त नहीं हो रहे थे। तभी से बिना चंद्रमा के आकाश को राजा अमावसु के नाम पर अमावस्या नाम से जाना जाने लगा।
मान्यता है कि इस दिन पितृ अपने लोक से धरती पर वापस आते हैं और अपने प्रियजनों को आशीर्वाद देते हैं। हिन्दू धर्म के अनुसार, पितरों का श्राद्ध करते वक्त चंद्रमा दिखाई नहीं देना चाहिए। यही वजह है कि दर्श अमावस्या के दिन पितरों का श्राद्ध करने की प्रथा है। दर्श अमावस्या की व्रत कथा यहीं पर समाप्त होती है।
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