Logo

दर्श अमावस्या क्यों मनाई जाती है?

दर्श अमावस्या क्यों मनाई जाती है?

पितरों की शांति के लिए मनाई जाती है दर्श अमावस्या, जानें अछोदा और राजा अमावसु से जुड़ी कथा


हिंदू धर्म में दर्श अमावस्या का दिन अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है। यह अमावस्या पितरों की शांति और पूजा-पाठ के लिए समर्पित है। इस दिन पितरों को श्रद्धांजलि देने का महत्व है, और विशेष रूप से पितृ तर्पण किया जाता है ताकि पूर्वजों की आत्मा को शांति मिले। आइए जानते हैं कि दर्श अमावस्या का महत्व क्या है, इसकी पौराणिक कथा क्या है, और इस दिन क्या करना चाहिए।


दर्श अमावस्या कब है? 


पंचांग के अनुसार मार्गशीर्ष माह की अमावस्या तिथि के शुरुआत 30 नवंबर को सुबह 10 बजकर 29 मिनट से शुरू होगी। जो 1 दिसंबर को सुबह 11 बजकर 50 मिनट तक जारी रहेगी। ऐसे में 30 नवंबर को पितरों के लिए धूप-ध्यान किया जाएगा और 1 दिसंबर को स्नान-दान की तिथि रहेगी। 


दर्श अमावस्या का महत्व 


दर्श अमावस्या का दिन पितृ तर्पण, पुण्य कार्य और शांति की प्राप्ति के लिए विशेष महत्व रखता है। इसके अलावा- 


  • पितरों की शांति: दर्श अमावस्या के दिन पितरों को श्रद्धांजलि देने का महत्व है, जिससे पूर्वजों की आत्मा को शांति मिले।
  • पितृ तर्पण: इस दिन विशेष रूप से पितृ तर्पण किया जाता है, जिससे पितरों की आत्मा को तृप्ति मिले।
  • पापों का नाश: दर्श अमावस्या के दिन पूजा-पाठ और दान करने से पापों का नाश होता है और पुण्य की प्राप्ति होती है।
  • सुख-समृद्धि: इस दिन पूजा-पाठ और दान करने से सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है और जीवन में शांति और संतुष्टि मिलती है।
  • पूर्वजों का आशीर्वाद: दर्श अमावस्या के दिन पूर्वजों को श्रद्धांजलि देने से उनका आशीर्वाद प्राप्त होता है और जीवन में सफलता और समृद्धि मिलती है।


दर्श अमावस्या पर क्या करना चाहिए? 


  • कौओं को भोजन खिलाना: इस दिन कौओं को भोजन खिलाने से पितृ प्रसन्न होते हैं और उनकी आत्मा को शांति मिलती है।
  • गाय को चारा खिलाना: दर्श अमावस्या के दिन गाय को चारा खिलाने से भी पितर प्रसन्न होते हैं और उनकी आत्मा को शांति मिलती है।
  • दान करना: इस दिन दान करने से पुण्य मिलता है और पितरों को शांति मिलती है। दान करने से पितरों की आत्मा को तृप्ति मिलती है।
  • श्राद्ध करना: दर्श अमावस्या के दिन श्राद्ध करने से पितरों का पिंडदान होता है और उन्हें मुक्ति मिलती है। श्राद्ध करने से पितरों की आत्मा को शांति मिलती है।
  • धार्मिक स्थलों पर पूजा-अर्चना करना: इस दिन धार्मिक स्थलों पर जाकर पूजा-अर्चना करने से पितृ प्रसन्न होते हैं और उनकी आत्मा को शांति मिलती है।


दर्श अमावस्या से जुड़ी पौराणिक कथा 


पौराणिक कथा के अनुसार, पुराने समय की बात है कि समस्त बारह सिंह आत्माएं सोमरोस पर रहा करती थीं। उनमें से एक आत्मा ने गर्भ धारण करने के बाद एक खूबसूरत सी कन्या को जन्म दिया। जिसका नाम अछोदा रखा गया। अछोदा बचपन से ही अपनी माता की देखरेख में पली बढ़ी थी। ऐसे में उसे शुरुआती दिनों से ही हमेशा अपने पिता की कमी महसूस होती थी। जिसके कारण एक बार उसे सारी आत्माओं ने मिलकर धरती लोक पर राजा अमावसु की पुत्री के रूप में जन्म लेने को कहा।


राजा अमावसु एक प्रसिद्ध और महान राजा थे जिन्होंने अपनी पुत्री अछोदा का पालन पोषण बहुत अच्छे से किया। ऐसे में पिता का प्यार पाकर अछोदा काफी प्रसन्न रहने लगी। इसके बदले में अछोदा पितृ लोक की आत्माओं का आभार जताना चाहती थी। इसके लिए उसने श्राद्ध का मार्ग अपनाया। इस कार्य को करने के लिए उसने सबसे अंधेरी रात को चुना। जिस दिन चंद्रमा आकाश में मौजूद नहीं होता, उस दिन वह पितृ आत्माओं का विधि विधान से पूजन करने लगी। पितृ भक्ति के कारण अछोदा को वो तमाम सुख मिले, जो उसे स्वर्ग में भी प्राप्त नहीं हो रहे थे। तभी से बिना चंद्रमा के आकाश को राजा अमावसु के नाम पर अमावस्या नाम से जाना जाने लगा।


मान्यता है कि इस दिन पितृ अपने लोक से धरती पर वापस आते हैं और अपने प्रियजनों को आशीर्वाद देते हैं। हिन्दू धर्म के अनुसार, पितरों का श्राद्ध करते वक्त चंद्रमा दिखाई नहीं देना चाहिए। यही वजह है कि दर्श अमावस्या के दिन पितरों का श्राद्ध करने की प्रथा है। दर्श अमावस्या की व्रत कथा यहीं पर समाप्त होती है। 



........................................................................................................
वट सावित्री पूजा सामग्री

वट सावित्री व्रत हिंदू धर्म में विशेष रूप से विवाहित महिलाओं द्वारा किया जाने वाला महत्वपूर्ण व्रत है। यह व्रत महाभारत काल की कथा 'सावित्री और सत्यवान' से जुड़ा हुआ है, जिसमें सावित्री ने अपने तप, भक्ति और बुद्धि से यमराज से अपने पति सत्यवान के प्राण वापस लिए थे।

वट सावित्री पर सोमवती अमावस्या का योग

वट सावित्री व्रत हिन्दू धर्म की एक अत्यंत महत्वपूर्ण परंपरा है, जिसे विशेष रूप से विवाहित स्त्रियों द्वारा अपने पति की दीर्घायु के लिए किया जाता है। यह व्रत ज्येष्ठ मास की अमावस्या तिथि को मनाया जाता है।

पहली बार वट सावित्री व्रत करने के नियम

वट सावित्री व्रत हिन्दू धर्म की उन विशेष परंपराओं में से एक है जो स्त्री के श्रद्धा, समर्पण और पति के प्रति प्रेम को दर्शाता है। यह व्रत विवाहित महिलाएं अपने पति की दीर्घायु और सुखमय वैवाहिक जीवन के लिए करती हैं।

वट सावित्री व्रत कैसे करें

वट सावित्री व्रत हिंदू धर्म में स्त्रियों द्वारा पति की लंबी उम्र, अच्छे स्वास्थ्य और सुख-समृद्धि की कामना के लिए किया जाने वाला एक अत्यंत पवित्र व्रत है। यह व्रत विशेषकर ज्येष्ठ अमावस्या को किया जाता हैI

यह भी जाने

संबंधित लेख

HomeAartiAartiTempleTempleKundliKundliPanchangPanchang