हिन्दू पंचांग में देवशयनी एकादशी का विशेष महत्व है। मान्यता है कि इसी दिन भगवान विष्णु क्षीरसागर में शेषनाग पर योगनिद्रा में चले जाते हैं। इस कारण चार माह तक विवाह जैसे शुभ संस्कार नहीं किए जाते और आत्मसंयम का काल आरम्भ होता है। देवशयनी एकादशी को हरिशयनी, पद्मा और आषाढ़ी एकादशी भी कहा जाता है। यह व्रत भगवान विष्णु की कृपा पाने, पापों के शमन और जीवन में स्थिरता लाने वाला माना गया है।
वर्ष 2026 में देवशयनी एकादशी शनिवार, 25 जुलाई को मनाई जाएगी। एकादशी तिथि का प्रारम्भ 24 जुलाई 2026 को प्रातः 09:12 बजे होगा और तिथि का समापन 25 जुलाई 2026 को 11:34 बजे होगा। व्रत का पारण 26 जुलाई को सूर्योदय के बाद 05:39 ए एम से 08:22 ए एम के बीच किया जाएगा। द्वादशी तिथि उसी दिन 01:57 पी एम पर समाप्त होगी। हरि वासर समाप्त होने के बाद ही पारण करना शास्त्रसम्मत माना गया है।
देवशयनी एकादशी से भगवान विष्णु का शयनकाल आरम्भ होता है, जो प्रबोधिनी एकादशी तक चलता है। इस अवधि को चातुर्मास कहा जाता है। शास्त्रों के अनुसार इस समय तप, संयम, जप और सेवा का विशेष फल मिलता है। मान्यता है कि इस दिन विधिपूर्वक व्रत करने से जीवन के कष्ट दूर होते हैं और विष्णु कृपा प्राप्त होती है। वैष्णव परंपरा में इसे वर्ष की अत्यंत पवित्र एकादशियों में गिना गया है।
व्रत की शुरुआत ब्रह्ममुहूर्त में स्नान और संकल्प से की जाती है। इसके बाद भगवान विष्णु और लक्ष्मी जी की पूजा की जाती है। पीले वस्त्र, पुष्प, दीप और खीर का भोग अर्पित किया जाता है। दिन भर विष्णु सहस्रनाम, गीता पाठ और हरिनाम संकीर्तन किया जाता है। सात्विक आहार या फलाहार का विधान है। रात्रि में भजन और ध्यान करते हुए जागरण करना भी शुभ माना गया है।
पौराणिक कथा के अनुसार सूर्यवंशी राजा मान्धाता के राज्य में भीषण अकाल पड़ गया था। प्रजा के कष्ट से व्याकुल होकर राजा ने ऋषि अंगिरा से उपाय पूछा। ऋषि ने देवशयनी एकादशी व्रत का विधान बताया। राजा ने श्रद्धा से इस व्रत का पालन किया, जिसके प्रभाव से राज्य में वर्षा हुई और अकाल समाप्त हो गया। इस कथा से यह शिक्षा मिलती है कि श्रद्धा और धर्म पालन से बड़े से बड़े संकट दूर हो सकते हैं।
एकादशी व्रत का पारण द्वादशी तिथि में सूर्योदय के बाद किया जाता है। हरि वासर में पारण वर्जित माना गया है। यदि द्वादशी तिथि सूर्योदय से पहले समाप्त हो जाए, तब भी पारण सूर्योदय के बाद ही करना चाहिए। दो दिन की एकादशी होने पर स्मार्त और वैष्णव परंपरा के अनुसार व्रत दिन निर्धारित किया जाता है। नियमपूर्वक पारण करने से ही व्रत का पूर्ण फल प्राप्त होता है।