हिन्दू धर्म में देवउठनी एकादशी का विशेष आध्यात्मिक और सामाजिक महत्व है। आषाढ शुक्ल पक्ष की एकादशी को भगवान विष्णु शयन करते हैं और कार्तिक शुक्ल पक्ष की एकादशी पर जागते हैं। इसी कारण इसे देवोत्थान या प्रबोधिनी एकादशी कहा गया है। भगवान हरि के जागने के साथ ही विवाह, यज्ञ, गृह प्रवेश जैसे मांगलिक कार्यों की शुरुआत होती है। यह दिन केवल धार्मिक अनुष्ठानों तक सीमित नहीं है, बल्कि आस्था, नियम और संयम का पर्व भी माना जाता है।
वर्ष 2026 में देवउठनी एकादशी कार्तिक शुक्ल पक्ष में मनाई जाएगी। पारण का समय 21 नवंबर 2026 को दोपहर 13:10:29 से 15:17:57 तक रहेगा। पारण की अवधि लगभग 2 घंटे 7 मिनट होगी। हरि वासर समाप्त होने का समय 21 नवंबर को 12:09:32 बजे माना गया है। शास्त्रों के अनुसार हरि वासर समाप्ति के बाद ही पारण करना उत्तम माना जाता है।
इस दिन प्रातःकाल स्नान कर व्रत का संकल्प लिया जाता है और भगवान विष्णु का ध्यान किया जाता है। घर की सफाई के बाद आंगन या पूजा स्थल पर भगवान विष्णु के चरणों की आकृति बनाई जाती है। एक ओखली में गेरू से चित्र बनाकर उसमें फल, मिठाई, बेर, सिंघाडा, ऋतुफल और गन्ना रखकर डलिया से ढक दिया जाता है। संध्या और रात्रि में घर के बाहर तथा पूजा स्थल पर दीप जलाए जाते हैं। परिवार के सभी सदस्य रात्रि में भगवान विष्णु और अन्य देवी देवताओं का पूजन करते हैं। शंख, घंटा और वाद्य बजाकर भगवान को जगाने का आह्वान किया जाता है।
देवउठनी एकादशी के दिन तुलसी विवाह का आयोजन भी किया जाता है। तुलसी और शालिग्राम का यह विवाह सामान्य विवाह की तरह विधि विधान से संपन्न होता है। शास्त्रों में तुलसी को विष्णु प्रिया कहा गया है। मान्यता है कि जिन दंपत्तियों को कन्या संतान नहीं होती, उन्हें जीवन में एक बार तुलसी विवाह अवश्य करना चाहिए, जिससे कन्यादान का पुण्य प्राप्त होता है।
पौराणिक कथा के अनुसार माता लक्ष्मी के निवेदन पर भगवान नारायण ने वर्षा ऋतु के चार मास शयन करने का व्रत स्वीकार किया। उन्होंने कहा कि यह अल्पनिद्रा उनके भक्तों के लिए मंगलकारी होगी। जो भक्त शयन और उत्थान के उत्सव को श्रद्धा से मनाएंगे, उनके घर में लक्ष्मी सहित भगवान विष्णु का वास होगा। इसी कारण देवउठनी एकादशी को देव प्रबोधिनी और हरि प्रबोधिनी भी कहा जाता है।
शास्त्रों में कहा गया है कि कार्तिक शुक्ल पक्ष की एकादशी का व्रत सौ राजसूय यज्ञ और एक सहस्र अश्वमेध यज्ञ के समान फल प्रदान करता है। इस दिन किया गया जप, तप, स्नान और दान अक्षय फलदायक माना जाता है। रात्रि जागरण और श्रद्धा पूर्वक व्रत रखने से समस्त पापों का नाश होता है और व्रती को वैकुंठ लोक की प्राप्ति होती है। यही कारण है कि देवउठनी एकादशी को प्रत्येक सनातनधर्मी के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण माना गया है।