Janmashtami 2025 Vrat Katha: हर साल भगवान श्रीकृष्ण का जन्मोत्सव जन्माष्टमी के रूप में पूरे श्रद्धा और उत्साह के साथ मनाया जाता है। हिंदू पंचांग के अनुसार, यह पर्व हर साल भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाया जाता है। श्रीकृष्ण जन्म की कथा भागवत पुराण सहित कई अन्य पुराणों में वर्णित है। भागवत पुराण के अनुसार, भगवान श्रीकृष्ण का जन्म अष्टमी तिथि की मध्य रात्रि में हुआ था। अक्सर भक्तों के मन में यह जिज्ञासा होती है कि आखिर श्रीकृष्ण ने आधी रात को ही जन्म क्यों लिया? ऐसे में आइए जानते हैं इससे जुड़ी पौराणिक कथा...
धार्मिक मान्यता के अनुसार, भगवान श्रीकृष्ण का जन्म द्वापर युग में रोहिणी नक्षत्र को बुधवार के दिन हुआ था। वहीं, भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को मध्यरात्रि में उन्होंने अवतार लिया। इसका मुख्य कारण है कि श्रीकृष्ण चंद्रवंशी थे। आपको बता दें कि चंद्रवंशी होने का अर्थ है कि उनके पूर्वज स्वयं चंद्रदेव थे। जबकी बुध को चंद्रमा का पुत्र माना जाता है, इसलिए चंद्रवंश में पुत्रवत जन्म लेने के लिए श्रीकृष्ण ने बुधवार का दिन ही चुना।
भागवत पुराण में वर्णित जन्मकथा के अनुसार, भगवान श्रीकृष्ण का जन्म रोहिणी नक्षत्र में हुआ था। रोहिणी, चंद्रदेव की प्रिय पत्नी और एक प्रमुख नक्षत्र मानी जाती हैं। अष्टमी तिथि को माता शक्ति का प्रतीक माना जाता है, इसी कारण भगवान श्रीकृष्ण को शक्ति स्वरूप और परब्रह्म कहा जाता है। वे संपूर्ण ब्रह्मांड को स्वंय में समेटे हुए हैं।
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, भगवान श्रीकृष्ण ने रात्रिकाल में इसलिए जन्म लिया क्योंकि रात में चंद्रमा अपनी ज्योति से संपूर्ण जगत को आलोकित करता है। चंद्रवंश में जन्मे कृष्ण ने अपने पूर्वज चंद्रदेव की उपस्थिति में पृथ्वी पर अवतरित होने के लिए यही समय चुना। इसी कारण से जन्माष्टमी के व्रत को चांद निकलने के बाद और उनके दर्शन करने के बाद ही पूर्ण किया जाता है।
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, चंद्रदेव की यह कामना थी कि जब भी भगवान विष्णु पृथ्वी पर अवतार लें, तो वे उनके प्रकाश में अवतरित हों, ताकि चंद्रदेव प्रत्यक्ष रूप से उनके दर्शन कर सकें। इसी कारण जब श्रीकृष्ण का जन्म मध्यरात्रि में हुआ, तो चारों ओर चंद्रमा की रोशनी बिखर गई और पूरा वातावरण आलोकित हो उठा।
पौराणिक कथा के अनुसार, द्वापर युग में मथुरा पर कंस का शासन था, जो एक क्रूर और अत्याचारी राजा माना जाता था। कंस ने छलपूर्वक अपने पिता, भोजवंशी राजा उग्रसेन को राजसिंहासन से हटा कर स्वयं सत्ता संभाल ली थी। उसकी एक बहन देवकी थी, जिसका विवाह उसने यदुवंशी राजा वासुदेव से कराया। विवाह के बाद जब कंस, देवकी और वासुदेव को बड़े हर्षोल्लास के साथ अपने महल की ओर ला रहा था, तभी आकाशवाणी हुई जिस बहन का विवाह कंस इतने उत्साह से कर रहा है, उसी की आठवीं संतान उसके वध का कारण बनेगी। आकाशवाणी सुनते ही कंस का हृदय भय और क्रोध से भर गया। उसने तत्काल अपनी बहन देवकी और बहनोई वासुदेव को कारागार में डाल दिया। कालकोठरी में जन्मी देवकी और वासुदेव की सातों संतानें कंस के हाथों निर्दयता से मारी गईं। तब वासुदेव को स्वप्न में भगवान श्रीहरि ने दर्शन देकर आठवीं संतान को सुरक्षित रखने का उपाय बताया।
जब देवकी और वासुदेव जी की आठवीं संतान का जन्म हुआ, तो भगवान की लीला से वासुदेव जी ने आधी रात को गोकुल पहुंचकर उस शिशु को यशोदा और नंद बाबा के सुपुर्द कर दिया। बदले में उन्होंने यशोदा जी की नवजात कन्या को लिया और चुपचाप कारागार लौट आए। जब कंस को खबर मिली कि उसकी बहन देवकी की आठवीं संतान जन्म ले चुकी है, तो वह उसे मारने के इरादे से तुरन्त कालकोठरी पहुंचा। लेकिन जैसे ही उसने उस नवजात कन्या को हाथ में लेकर प्रहार करना चाहा, बच्ची उसके हाथ से छूटकर आकाश में देवी रूप में प्रकट हो गई। यह देवी योगमाया थीं, जिन्होंने कंस को चेतावनी दी कि उसका संहार करने वाला पहले ही जन्म ले चुका है और सुरक्षित है। इसके बाद गोकुल में यशोदा और नंद बाबा ने श्रीकृष्ण का पालन-पोषण किया। बड़े होकर श्रीकृष्ण ने मथुरा आकर कंस का वध किया और प्रजा को उसके अत्याचारों से मुक्ति दिलाई।