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जया एकदशी 2026 कब है

जया एकदशी 2026 कब है

Jaya Ekadashi 2026: जनवरी की इस तारीख को पड़ेगी जया एकादशी, जानिए इस व्रत की कथा

हिंदू पंचांग में माघ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को जया एकादशी कहा जाता है। यह एकादशी विशेष रूप से भय, पिशाच योनि और नकारात्मक प्रभावों से मुक्ति के लिए जानी जाती है। शास्त्रों में वर्णन है कि इस दिन श्रद्धापूर्वक भगवान विष्णु का पूजन और उपवास करने से मनुष्य सभी प्रकार की अशुभ योनियों से मुक्त हो जाता है। जया एकादशी का व्रत केवल शारीरिक उपवास नहीं, बल्कि संयम, मर्यादा और भक्ति का प्रतीक है। वर्ष 2026 में यह व्रत जनवरी माह में गुरुवार के दिन पड़ रहा है, जिससे इसका पुण्य और भी बढ़ जाता है।

जया एकादशी की तिथि और पारण समय

जया एकादशी गुरुवार, 29 जनवरी 2026 को होगी।

एकादशी तिथि प्रारम्भ

28 जनवरी 2026 को 04:35 पी एम

एकादशी तिथि समाप्त

29 जनवरी 2026 को 01:55 पी एम

पारण तिथि

30 जनवरी 2026

पारण समय

सुबह 07:10 ए एम से 09:20 ए एम

द्वादशी तिथि समाप्त

30 जनवरी 2026 को 11:09 ए एम

धर्म शास्त्रों के अनुसार पारण सूर्योदय के बाद और द्वादशी तिथि समाप्त होने से पूर्व करना अनिवार्य है। हरि वासर के दौरान पारण नहीं करना चाहिए।

एकादशी व्रत पारण के नियम

एकादशी व्रत का पूर्ण फल तभी प्राप्त होता है जब उसका पारण सही समय पर किया जाए। पारण द्वादशी तिथि में और हरि वासर की समाप्ति के बाद किया जाता है। यदि द्वादशी तिथि सूर्योदय से पूर्व समाप्त हो जाए, तो पारण सूर्योदय के बाद ही किया जाता है। शास्त्रों में मध्याह्न के समय पारण करने से बचने की सलाह दी गई है। यदि किसी कारणवश प्रातःकाल पारण संभव न हो, तो मध्याह्न के बाद व्रत तोड़ा जा सकता है।

जया एकादशी व्रत कथा

भगवान श्रीकृष्ण अर्जुन से कहते हैं कि माघ शुक्ल पक्ष की एकादशी को जया एकादशी कहा जाता है। एक बार देवताओं के राजा इन्द्र नंदन वन में गन्धर्वों के संगीत का आनंद ले रहे थे। उसी सभा में गन्धर्व माल्यवान और गन्धर्व कन्या पुष्पवती आसक्ति के कारण संयम भूल गए, जिससे संगीत की पवित्रता भंग हो गई। इससे क्रोधित होकर इन्द्र ने दोनों को पिशाच योनि का श्राप दे दिया।

श्राप के कारण वे हिमालय में दुःखपूर्ण जीवन जीने लगे। दैवयोग से माघ शुक्ल पक्ष की जया एकादशी के दिन उन्होंने उपवास किया और कोई पाप कर्म नहीं किया। उस एकादशी के पुण्य प्रभाव से अगले दिन उन्हें पिशाच योनि से मुक्ति मिल गई और वे पुनः गन्धर्व एवं अप्सरा रूप में स्वर्ग लौट आए। देवेन्द्र ने स्वयं स्वीकार किया कि यह सब जया एकादशी व्रत और भगवान श्रीहरि की कृपा से संभव हुआ।

जया एकादशी व्रत से मिलने वाला फल

जया एकादशी का व्रत करने से कुयोनि, भय और नकारात्मक शक्तियों से मुक्ति मिलती है। शास्त्रों में कहा गया है कि इस एकादशी का विधिपूर्वक पालन करने वाला व्यक्ति मानो सभी यज्ञ, तप और दान का फल प्राप्त कर लेता है। यह व्रत मनुष्य को संयम, मर्यादा और सात्विक जीवन का मार्ग दिखाता है।

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