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कामदा एकादशी 2026 कब है

कामदा एकादशी 2026 कब है

कामदा एकादशी 2026: मार्च में इस दिन मनाई जाएगी कामदा एकादशी, पढ़िए ललित और ललिता से जुड़ी कथा 

चैत्र मास की शुक्ल पक्ष एकादशी को कामदा एकादशी कहा जाता है। यह चैत्र नवरात्रि और राम नवमी के बाद आने वाली पहली एकादशी है। धर्मशास्त्रों में इसे अत्यंत पुण्यदायी बताया गया है। मान्यता है कि इस एकादशी के व्रत से व्यक्ति जन्म जन्मान्तर के पापों से मुक्त होकर दुखों से छुटकारा पा लेता है। 2026 में यह व्रत रविवार, 29 मार्च को मनाया जाएगा। एकादशी तिथि 28 मार्च की सुबह आरम्भ होकर 29 मार्च की सुबह समाप्त होगी। पारण 30 मार्च को हरि वासर समाप्त होने के बाद किया जाएगा। इस दिन व्रत का महत्त्व और इसकी कथा बेहद प्रेरक मानी जाती है, जो गन्धर्व ललित और ललिता के जीवन से जुडी है।

कामदा एकादशी की तिथि 

2026 में कामदा एकादशी रविवार, 29 मार्च को मनाई जाएगी। एकादशी तिथि 28 मार्च को सुबह 08:45 बजे शुरू होकर 29 मार्च को 07:46 बजे समाप्त होगी। व्रत का पारण अगले दिन यानी 30 मार्च की सुबह किया जाएगा। पारण का समय 06:14 ए एम से 07:09 ए एम तक रहेगा। ठीक इसी समय द्वादशी तिथि भी समाप्त होगी, इसलिए पारण इसी अवधि में करना आवश्यक माना गया है। हरि वासर के दौरान पारण वर्जित होता है, इसलिए व्रती को हरि वासर के बाद ही व्रत खोलना चाहिए। शास्त्रों के अनुसार द्वादशी समाप्त होने से पहले पारण अवश्य कर लेना चाहिए।

कामदा एकादशी का महत्व 

धर्मग्रंथों में कामदा एकादशी को पापों का नाश करने वाली एकादशी बताया गया है। मान्यता है कि इस व्रत को करने से व्यक्ति के सबसे भारी पाप भी समाप्त हो जाते हैं। शास्त्रों में कहा गया है कि यह व्रत ब्रह्महत्या जैसे महापापों को भी मिटाने की क्षमता रखता है। जो व्यक्ति निकृष्ट योनियों में जाने के भय से मुक्ति चाहता है, उसे यह व्रत अवश्य करना चाहिए। कामदा एकादशी का पालन करने से मनोवांछित फल मिलते हैं और मृत्यु के बाद विष्णु लोक की प्राप्ति होती है। कहते हैं कि यह व्रत मनुष्य के जीवन में तेज, शांति और कल्याण लेकर आता है।

कामदा एकादशी व्रत विधि 

कामदा एकादशी का व्रत ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान से शुरू होता है। इसके बाद भगवान विष्णु या श्रीकृष्ण का भक्ति भाव से पूजन किया जाता है। दिन भर निराहार रहकर, श्रद्धा के साथ उपवास रखा जाता है। पूजा में तुलसी, धूप, दीप, नैवेद्य और विष्णु सहस्रनाम का पाठ करना शुभ माना गया है। व्रती को किसी भी तरह के क्रोध, असत्य, निन्दा और तमस से दूर रहना चाहिए। रात्रि में भगवान का ध्यान और भजन करना लाभकारी होता है। अगले दिन द्वादशी तिथि में हरि वासर समाप्त होने के बाद पारण किया जाता है। यदि किसी कारण सुबह पारण न हो सके, तो मध्याह्न के बाद पारण करना उचित बताया गया है।

कामदा एकादशी व्रत कथा 

प्राचीन काल में भागीपुर नामक नगर पर राजा पुण्डरीक राज्य करता था। उसके दरबार में गन्धर्व दम्पति ललित और ललिता नृत्य और संगीत से सभी का मन मोह लेते थे। एक दिन सभा में गान करते समय ललित का ध्यान अपनी पत्नी पर चला गया, जिससे उसका स्वर असामान्य हो गया। नागराज कर्कोटक ने शिकायत की और राजा ने क्रोधित होकर उसे दैत्य बनने का श्राप दे दिया। ललिता अपने पति को इस कष्ट से मुक्त कराने के लिए ऋषि श्रृंगी के पास गयी। ऋषि ने उसे चैत्र शुक्ल एकादशी का व्रत करने को कहा। ललिता ने श्रद्धा से व्रत किया और उसका पुण्य पति को अरपित किया। व्रत के प्रभाव से ललित पुनः अपने दिव्य रूप में आ गया और दोनों विष्णु लोक को प्राप्त हुए।

कथा का सार और सीख 

कामदा एकादशी की कथा बताती है कि मनुष्य का चित्त यदि अनुचित समय पर कहीं और लग जाए, तो उसके कर्म बाधित होते हैं और वह दुखों का कारण बन जाते हैं। गन्धर्व ललित ने एक क्षण की भूल में भारी कष्ट झेला, परन्तु श्रद्धा और भक्ति से उसका उद्धार संभव हुआ। यही इस व्रत का प्रमुख संदेश है कि भगवान की अनुकम्पा असीम है और सच्ची निष्ठा से किये गये व्रत का फल अवश्य मिलता है। यह एकादशी हमें संयम, कर्तव्य और भक्ति के महत्व को समझाती है। व्रत करने वाला व्यक्ति पापों से मुक्त होकर जीवन में शांति और कल्याण का अनुभव करता है।

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