भारतीय पंचांग में मार्गशीर्ष मास को विशेष रूप से शुभ माना गया है। यह महीना देवताओं के पूजन और साधना के लिए सर्वश्रेष्ठ बताया गया है। शिवपुराण में मार्गशीर्ष मास के आद्रा नक्षत्र का जो वर्णन मिलता है, वह इस दिन की असाधारण पवित्रता को प्रमाणित करता है। भगवान शिव स्वयं कहते हैं कि जो व्यक्ति इस दिन उनका दर्शन या पूजन करता है, वह उनके अत्यंत प्रिय बन जाता है और उसे “महाफल” की प्राप्ति होती है। इस बार मार्गशीर्ष का आद्रा नक्षत्र 8 नवंबर की रात 10:03 बजे से 9 नवंबर की रात 8:04 बजे तक रहेगा।
शिवपुराण के प्रथम खंड, नवम अध्याय, श्लोक 15-16 में इस दिवस का अत्यंत सुंदर वर्णन मिलता है—
स कालो मार्गशीर्षे तु स्यादाद्रा ऋक्षमर्भकौ ।
आद्रायां मार्गशीर्षे तु यः पश्येन्मामुमासखम् ।
मद्बेरमपि वा लिंगं स गृहादपि मे प्रियः ।
अलं दर्शनमात्रेण फलं तस्मिन्दिने शुभे ॥
इन श्लोकों में भगवान शिव स्पष्ट रूप से कहते हैं “जब मार्गशीर्ष मास में आद्रा नक्षत्र का संयोग हो, तब जो व्यक्ति उस दिन भगवान शिव का या मेरे लिंगस्वरूप का दर्शन करता है, वह मेरे अत्यंत प्रिय हो जाता है। यहां तक कि घर में रखे शिवलिंग का मात्र दर्शन करने से भी उस दिन शुभ फल की प्राप्ति होती है।”
यह कथन दर्शाता है कि यह संयोग स्वयं महादेव का दिवस है। एक ऐसा कालखंड जिसमें उनका स्मरण, दर्शन या पूजन, साधारण दिनों की तुलना में असंख्य गुना फलदायक होता है।
27 नक्षत्रों में आद्रा छठा नक्षत्र है। इसका स्वामी राहु ग्रह और अधिदेवता रुद्र हैं। आद्रा का अर्थ होता है “नमी”, “कोमलता” या “आर्द्रता” यानी वह स्थिति जब पृथ्वी सूखेपन से निकलकर जीवनदायिनी नमी को ग्रहण करती है। यही कारण है कि इसे वृष्टि का नक्षत्र भी कहा जाता है।
आद्रा नक्षत्र मिथुन राशि में स्थित होता है, जिसका स्वामी बुध है। इस राशि और नक्षत्र का मेल बुद्धि, विवेक, संवाद और परिवर्तन से जुड़ा है। किंतु जब इसका अधिपत्य रुद्र पर आता है, तब यह नक्षत्र केवल परिवर्तन नहीं, बल्कि पुनर्निर्माण का प्रतीक बन जाता है, जैसे वर्षा सूखी धरती को पुनर्जीवित करती है।
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, इसी आद्रा नक्षत्र में भगवान रुद्र का पृथ्वी पर प्रथम अवतरण हुआ था। महाभारत, स्कंद पुराण और शिवमहापुराण में उल्लेख मिलता है कि रुद्र ने इसी दिन अपनी तपस्या से उत्पन्न होकर ब्रह्मांड में प्रथम बार प्रकट होकर त्रैलोक्य को प्रकाशित किया था।
एक अन्य परंपरा के अनुसार, देवी पार्वती और भगवान शिव का विवाह भी इसी नक्षत्र में संपन्न हुआ था। इसीलिए यह दिन दांपत्य सौभाग्य और मंगल के लिए अत्यंत शुभ माना गया है। विवाहित महिलाएं इस दिन शिव-पार्वती की पूजा कर अखंड सौभाग्य की प्रार्थना करती हैं।
मार्गशीर्ष मास स्वयं में ही एक पवित्र काल है। भगवद्गीता में श्रीकृष्ण कहते हैं “मासानां मार्गशीर्षोऽहम्” — अर्थात् महीनों में मैं स्वयं मार्गशीर्ष हूं। यह बताता है कि इस मास में की गई साधना और भक्ति विशेष फलदायी होती है। इस मास में शिव, विष्णु और सूर्य की आराधना से मनोवांछित सिद्धि प्राप्त होती है।
आद्रा नक्षत्र जब मार्गशीर्ष मास में आता है, तब सूर्य धनु राशि की ओर गति कर रहा होता है। यह काल शरद ऋतु से हेमंत ऋतु में संक्रमण का होता है। दिन छोटे और रातें लंबी होने लगती हैं, ओस पड़ने लगती है, और वातावरण में एक अद्भुत ठंडक का स्पर्श महसूस होता है।
भारतीय कृषि परंपरा के अनुसार, यही वह समय होता है जब खेतों में रबी फसलों की बुआई प्रारंभ होती है। किसानों के लिए यह नक्षत्र इसलिए भी शुभ है क्योंकि यह धरती की उर्वरता के पुनर्जागरण का प्रतीक है।
आद्रा नक्षत्र के दिन प्रातः स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें। पूर्व या उत्तर दिशा की ओर मुख करके शिवलिंग की पूजा करें।
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, इस नक्षत्र में किया गया कोई भी शुभ कार्य दीर्घकालिक परिणाम देता है। यह नक्षत्र परिवर्तन और पुनर्जीवन का प्रतीक है, इसलिए इस दिन की गई आराधना, व्रत या संकल्प व्यक्ति के जीवन में नई ऊर्जा का संचार करती है।
शिव के इस नक्षत्र में की गई साधना से —