हिन्दू पंचांग के अनुसार पद्मिनी एकादशी अधिक मास के शुक्ल पक्ष में आती है। वर्ष 2026 में यह व्रत बुधवार 27 मई को रखा जाएगा। यह एकादशी पुरुषोत्तम मास में आने के कारण विशेष फलदायी मानी जाती है। इस व्रत का समय हर अधिक मास में बदलता है, इसलिए इसका कोई निश्चित चन्द्र मास नहीं होता।
एकादशी तिथि प्रारम्भ 26 मई 2026 को 05:11 प्रातः
एकादशी तिथि समाप्त 27 मई 2026 को 06:22 प्रातः
पारण समय 28 मई 2026 को 05:45 प्रातः से 07:57 प्रातः तक
शास्त्रों के अनुसार पद्मिनी एकादशी भगवान विष्णु को अत्यंत प्रिय है। इस दिन विधि पूर्वक व्रत करने से सभी यज्ञों, तप और दानों के समान फल प्राप्त होता है। मान्यता है कि यह व्रत वर्तमान और पूर्व जन्मों के पापों का नाश करता है तथा व्रती को वैकुण्ठ लोक की प्राप्ति कराता है। अधिक मास स्वयं पुण्यदायी माना गया है और उसमें आने वाली यह एकादशी विशेष सिद्धि प्रदान करती है।
पौराणिक कथा के अनुसार त्रेता युग में राजा कीतृवीर्य अत्यंत पराक्रमी थे, किंतु उन्हें संतान का सुख प्राप्त नहीं था। वर्षों की तपस्या के बाद भी जब कोई फल नहीं मिला तब देवी अनुसूया ने उन्हें अधिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी का व्रत करने का विधान बताया। रानी ने श्रद्धा पूर्वक पद्मिनी एकादशी का व्रत रखा। व्रत से प्रसन्न होकर भगवान विष्णु प्रकट हुए और वरदान दिया। इसी पुण्य फल से राजा को कार्तवीर्य अर्जुन जैसे पराक्रमी पुत्र की प्राप्ति हुई, जिसने आगे चलकर रावण को भी पराजित किया।
प्रातः स्नान के बाद भगवान विष्णु की विधि पूर्वक पूजा की जाती है। इस दिन निर्जल व्रत रखकर विष्णु पुराण का पाठ या श्रवण किया जाता है। रात्रि में भजन कीर्तन करते हुए जागरण का विधान है। प्रत्येक प्रहर में भगवान को भिन्न भेंट अर्पित की जाती है। द्वादशी के दिन ब्राह्मण को भोजन और दान देकर पारण किया जाता है।
इस दिन सात्विक आहार का पालन करना चाहिए और मन वचन कर्म से भगवान विष्णु का स्मरण करना चाहिए। चावल, दाल, शहद और तामसिक वस्तुओं से परहेज किया जाता है। क्रोध, असत्य और निंदात्मक व्यवहार से दूर रहना व्रत की पूर्णता के लिए आवश्यक माना गया है।