परम एकादशी 2026 तिथि और पारण समय
साल 2026 में परम एकादशी अधिक मास के कृष्ण पक्ष में आएगी। पंचांग के अनुसार यह एकादशी 18 जुलाई 2026 को रखी जाएगी। व्रत का पारण अगले दिन सूर्योदय के बाद किया जाता है।
परम एकादशी अधिक मास में पड़ने के कारण अत्यंत दुर्लभ मानी जाती है। इसे अधिक मास एकादशी भी कहा जाता है। शास्त्रों के अनुसार इस एकादशी का व्रत करने से दरिद्रता, पाप और मानसिक कष्टों से मुक्ति मिलती है। यह एकादशी भगवान विष्णु को समर्पित है और इसे करने से इहलोक में सुख तथा परलोक में उत्तम गति प्राप्त होती है। अधिक मास को पुरुषोत्तम मास भी कहा जाता है, इसलिए इस अवधि में किया गया व्रत कई गुना फल देने वाला माना गया है।
एकादशी व्रत का पारण द्वादशी तिथि के भीतर करना अनिवार्य होता है। पारण सूर्योदय के बाद और हरि वासर समाप्त होने के बाद ही करना चाहिए। यदि द्वादशी सूर्योदय से पहले समाप्त हो जाए तो पारण सूर्योदय के बाद किया जाता है। हरि वासर द्वादशी तिथि की पहली एक चौथाई अवधि होती है, इस दौरान पारण वर्जित माना गया है।
धार्मिक ग्रंथों के अनुसार भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को परम एकादशी की कथा सुनाई थी। काम्पिल्य नगर में सुमेधा नामक एक निर्धन ब्राह्मण अपनी पतिव्रता पत्नी के साथ रहता था। घोर दरिद्रता के बावजूद वह धर्म और अतिथि सेवा में लीन रहता था। महर्षि कौडिन्य के उपदेश से उसने अधिक मास की कृष्ण पक्ष की परम एकादशी का व्रत किया। इस व्रत के प्रभाव से उसकी दरिद्रता समाप्त हो गई और उसे सुख, संपत्ति और सम्मान की प्राप्ति हुई।
इस दिन प्रातः स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें और भगवान विष्णु का ध्यान करते हुए व्रत का संकल्प लें। विष्णु भगवान को पीले पुष्प, तुलसी दल, धूप दीप और नैवेद्य अर्पित करें। अधिक पुण्य के लिए पंचरात्रि व्रत का विधान बताया गया है, जिसमें पांच दिन तक संयम और विष्णु स्मरण किया जाता है। अंतिम दिन ब्राह्मण भोजन और दान के बाद स्वयं भोजन ग्रहण करना चाहिए।
परम एकादशी का व्रत करने से सभी तीर्थों और यज्ञों का फल प्राप्त होता है। यह व्रत धन, सुख और ऐश्वर्य प्रदान करने वाला माना गया है। शास्त्रों में कहा गया है कि अधिक मास में की गई एकादशी उपेक्षित नहीं करनी चाहिए, क्योंकि यह दुर्लभ सिद्धियों की दाता होती है।