हिंदू धर्म में एकादशी व्रत का विशेष महत्व माना गया है। भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष में आने वाली परिवर्तिनी एकादशी भगवान विष्णु को अत्यंत प्रिय है। मान्यता है कि इस दिन भगवान विष्णु क्षीर सागर में शयन करते हुए करवट लेते हैं, इसी कारण इसे परिवर्तिनी एकादशी कहा जाता है। भारत के कई क्षेत्रों में इसे पार्श्व एकादशी और पद्मा एकादशी के नाम से भी जाना जाता है। यह व्रत देवी लक्ष्मी को प्रसन्न करने वाला माना गया है। श्रद्धा और नियम से किया गया यह व्रत पापों के नाश के साथ जीवन में सुख, समृद्धि और आध्यात्मिक उन्नति प्रदान करता है।
पंचांग के अनुसार वर्ष 2026 में परिवर्तिनी एकादशी की तिथि इस प्रकार है:
शास्त्रों के अनुसार एकादशी व्रत का पारण द्वादशी तिथि के भीतर करना अनिवार्य माना गया है। हरि वासर काल में पारण वर्जित होता है, इसलिए श्रद्धालुओं को निर्धारित शुभ समय में ही व्रत खोलना चाहिए।
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार परिवर्तिनी एकादशी का व्रत समस्त पापों का नाश करने वाला होता है। इस दिन भगवान विष्णु के वामन अवतार की पूजा करने से वाजपेय यज्ञ के समान पुण्य फल प्राप्त होता है। यह व्रत देवी लक्ष्मी को आह्लादित करने वाला माना गया है, जिससे घर में धन, वैभव और सुख समृद्धि का वास होता है। कहा जाता है कि इस व्रत के प्रभाव से मनुष्य को मोक्ष की प्राप्ति का मार्ग भी प्रशस्त होता है और जीवन के कष्ट दूर होते हैं।
महाभारत काल में अर्जुन के प्रश्न पर भगवान श्रीकृष्ण ने परिवर्तिनी एकादशी की महिमा का वर्णन किया। भगवान ने बताया कि त्रेतायुग में बलि नाम का एक असुर राजा था, जो अत्यंत दानी, सत्यवादी और धर्मपरायण था। अपनी भक्ति और तपस्या के बल पर उसने स्वर्ग का राज्य भी प्राप्त कर लिया। इससे भयभीत होकर देवता भगवान विष्णु की शरण में गए।
देवताओं की रक्षा के लिए भगवान विष्णु ने वामन अवतार लिया और ब्राह्मण बालक के रूप में राजा बलि से तीन पग भूमि दान में मांगी। दान का संकल्प होते ही भगवान ने विराट रूप धारण कर एक पग से पृथ्वी, दूसरे से स्वर्ग और ब्रह्मलोक को नाप लिया। तीसरे पग के लिए राजा बलि ने अपना सिर आगे कर दिया। वचन पालन से प्रसन्न होकर भगवान ने बलि को पाताल लोक का स्वामी बनाया और उन्हें वरदान दिया कि वे सदैव उनके साथ निवास करेंगे।
मान्यता है कि परिवर्तिनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु एक रूप में राजा बलि के पास और दूसरे रूप में क्षीर सागर में शेषनाग पर शयन करते हैं। इसी कारण इस दिन भगवान विष्णु के करवट बदलने की परंपरा मानी जाती है।