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परिवर्तिनी एकादशी 2026 कब है

परिवर्तिनी एकादशी 2026 कब है

Parivartini Ekadashi 2026: महाभारत काल से जुड़ी है परिवर्तिनी एकादशी की कथा, जानिए इसकी तिथि और शुभ मुहूर्त

परिवर्तिनी एकादशी 2026 का महत्व 

हिंदू धर्म में एकादशी व्रत का विशेष महत्व माना गया है। भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष में आने वाली परिवर्तिनी एकादशी भगवान विष्णु को अत्यंत प्रिय है। मान्यता है कि इस दिन भगवान विष्णु क्षीर सागर में शयन करते हुए करवट लेते हैं, इसी कारण इसे परिवर्तिनी एकादशी कहा जाता है। भारत के कई क्षेत्रों में इसे पार्श्व एकादशी और पद्मा एकादशी के नाम से भी जाना जाता है। यह व्रत देवी लक्ष्मी को प्रसन्न करने वाला माना गया है। श्रद्धा और नियम से किया गया यह व्रत पापों के नाश के साथ जीवन में सुख, समृद्धि और आध्यात्मिक उन्नति प्रदान करता है।

परिवर्तिनी एकादशी 2026 की तिथि और पारण समय

पंचांग के अनुसार वर्ष 2026 में परिवर्तिनी एकादशी की तिथि इस प्रकार है:

  • एकादशी व्रत: मंगलवार, 22 सितंबर 2026
  • एकादशी तिथि प्रारंभ: 21 सितंबर 2026, रात्रि 08:00 बजे
  • एकादशी तिथि समाप्त: 22 सितंबर 2026, रात्रि 09:43 बजे
  • पारण तिथि: बुधवार, 23 सितंबर 2026
  • पारण समय: प्रातः 06:10 बजे से 08:35 बजे तक
  • द्वादशी तिथि समाप्त: 23 सितंबर 2026, रात्रि 10:50 बजे

शास्त्रों के अनुसार एकादशी व्रत का पारण द्वादशी तिथि के भीतर करना अनिवार्य माना गया है। हरि वासर काल में पारण वर्जित होता है, इसलिए श्रद्धालुओं को निर्धारित शुभ समय में ही व्रत खोलना चाहिए।

परिवर्तिनी एकादशी व्रत का महत्व

धार्मिक मान्यताओं के अनुसार परिवर्तिनी एकादशी का व्रत समस्त पापों का नाश करने वाला होता है। इस दिन भगवान विष्णु के वामन अवतार की पूजा करने से वाजपेय यज्ञ के समान पुण्य फल प्राप्त होता है। यह व्रत देवी लक्ष्मी को आह्लादित करने वाला माना गया है, जिससे घर में धन, वैभव और सुख समृद्धि का वास होता है। कहा जाता है कि इस व्रत के प्रभाव से मनुष्य को मोक्ष की प्राप्ति का मार्ग भी प्रशस्त होता है और जीवन के कष्ट दूर होते हैं।

परिवर्तिनी एकादशी व्रत एवं पूजा विधि

  • परिवर्तिनी एकादशी का व्रत विधि विधान से करने पर विशेष फल प्राप्त होता है:
  • दशमी तिथि को सूर्यास्त के बाद भोजन न करें और रात्रि में भगवान विष्णु का ध्यान करें।
  • एकादशी के दिन प्रातः स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें और व्रत का संकल्प लें।
  • भगवान विष्णु की प्रतिमा या चित्र के समक्ष घी का दीपक जलाएं।
  • पूजा में तुलसी दल, तिल और ऋतु फल अर्पित करें।
  • व्रत के दिन अन्न ग्रहण न करें, आवश्यकता होने पर संध्या काल में फलाहार कर सकते हैं।
  • दूसरों की निंदा और असत्य भाषण से बचें।
  • तांबा, चावल और दही का दान करना शुभ माना जाता है।
  • द्वादशी के दिन सूर्योदय के बाद ब्राह्मण या जरूरतमंद को भोजन कराकर पारण करें।

परिवर्तिनी एकादशी व्रत कथा

महाभारत काल में अर्जुन के प्रश्न पर भगवान श्रीकृष्ण ने परिवर्तिनी एकादशी की महिमा का वर्णन किया। भगवान ने बताया कि त्रेतायुग में बलि नाम का एक असुर राजा था, जो अत्यंत दानी, सत्यवादी और धर्मपरायण था। अपनी भक्ति और तपस्या के बल पर उसने स्वर्ग का राज्य भी प्राप्त कर लिया। इससे भयभीत होकर देवता भगवान विष्णु की शरण में गए।

देवताओं की रक्षा के लिए भगवान विष्णु ने वामन अवतार लिया और ब्राह्मण बालक के रूप में राजा बलि से तीन पग भूमि दान में मांगी। दान का संकल्प होते ही भगवान ने विराट रूप धारण कर एक पग से पृथ्वी, दूसरे से स्वर्ग और ब्रह्मलोक को नाप लिया। तीसरे पग के लिए राजा बलि ने अपना सिर आगे कर दिया। वचन पालन से प्रसन्न होकर भगवान ने बलि को पाताल लोक का स्वामी बनाया और उन्हें वरदान दिया कि वे सदैव उनके साथ निवास करेंगे।

मान्यता है कि परिवर्तिनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु एक रूप में राजा बलि के पास और दूसरे रूप में क्षीर सागर में शेषनाग पर शयन करते हैं। इसी कारण इस दिन भगवान विष्णु के करवट बदलने की परंपरा मानी जाती है।

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