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हिंदू धर्म में प्रदोष व्रत का विशेष महत्व है। दरअसल, यह व्रत देवाधिदेव महादेव शिव को ही समर्पित है। प्रदोष व्रत हर माह में दो बार, शुक्ल और कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि को किया जाता है। प्रदोष व्रत को भगवान शिव की कृपा प्राप्त करने और अपने पापों को दूर करने के लिए रखा जाता है। माना जाता है कि इस व्रत को करने से साधक को मोक्ष की प्राप्ति होती है और उनके जीवन में सुख, शांति, स्वास्थ्य और समृद्धि की बढ़ोतरी होती है। तो आइए इस आलेख में प्रदोष व्रत के बारे में विस्तार से जानते हैं।
पौराणिक कथाओं के अनुसार चंद्रमा का विवाह दक्ष प्रजापति की 27 कन्याओं के साथ हुआ था। हालांकि, चंद्रमा को इनमें से केवल रोहिणी से अधिक स्नेह था। बाकी कन्याओं ने जब इस बात की शिकायत अपने पिता दक्ष प्रजापति से की तो क्रोधित होकर दक्ष ने चंद्रमा को श्राप दिया कि वह क्षय रोग से ग्रस्त हो जाएगा। श्राप के कारण चंद्रमा की कलाएं क्षीण होने लगीं और उनका स्वास्थ्य दिन-प्रतिदिन बिगड़ने लगा। अपनी समस्या का समाधान ढूंढने के लिए चंद्रमा ने नारद मुनि से सलाह ली। नारद मुनि ने उन्हें भगवान शिव की आराधना करने का सुझाव दिया। चंद्रमा ने प्रदोष काल में भगवान शिव का कठोर तप किया। उनकी भक्ति से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उन्हें श्राप से मुक्त कर दिया और अपने मस्तक पर धारण कर लिया। इसके बाद चंद्रमा की कलाएं फिर से बढ़ने लगीं और पूर्णिमा पर वह पूर्ण चंद्र के रूप में दिखाई देने लगे।
प्रदोष व्रत के कथा के अनुसार भगवान शिव की कृपा से बड़े से बड़े संकट भी टाले जा सकते हैं। इसलिए, प्रदोष व्रत के माध्यम से भगवान शिव की पूजा करना और उनका आशीर्वाद प्राप्त करना सनातन धर्म के लोगों के लिए अत्यंत शुभ माना गया है।
प्रदोष व्रत में सुबह स्नान के बाद भगवान शिव की पूजा की जाती है। व्रती को पूरे दिन उपवास रखना चाहिए और शाम के समय (प्रदोष काल) भगवान शिव का ध्यान करना चाहिए। पूजा में पंचामृत (दूध, दही, घी, शहद और शक्कर) से अभिषेक करना, बिल्वपत्र अर्पित करना और शिव मंत्रों का जाप करना शामिल है। इस दिन हरे मूंग का सेवन किया जा सकता है। ऐसा इसलिए क्योंकि, इसे पृथ्वी तत्व का ही एक प्रतीक माना गया है। यह शरीर की ऊर्जा को बनाए रखने में मदद करता है।
महादेव को नटराज के रूप में प्रदोष काल में नृत्य करते हुए दर्शाया गया है। मान्यता है कि इस समय शिव और पार्वती कैलाश पर्वत पर नृत्य करते हैं। यही कारण है कि प्रदोष काल को शिव आराधना के लिए सबसे उत्तम समय माना जाता है। प्रदोष व्रत एक आध्यात्मिक और धार्मिक साधना है जो भक्त को भगवान शिव की कृपा प्राप्त करने में सहायक होती है। यह व्रत न केवल आध्यात्मिक शांति प्रदान करता है। बल्कि, भौतिक सुख और मानसिक संतुलन भी प्रदान करता है। इसलिए, यदि आप जीवन में किसी भी प्रकार की समस्याओं का सामना कर रहे हैं, तो प्रदोष व्रत करना एक सरल और प्रभावी उपाय साबित हो सकता है।
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