हिंदू धर्म में प्रदोष व्रत का अत्यंत महत्व है। यह व्रत भगवान शिव और माता पार्वती की आराधना के लिए एक विशेष दिन माना जाता है, जो हर महीने दोनों पक्षों की त्रयोदशी तिथि को मनाया जाता है। जब यह तिथि शुक्रवार या सोमवार के दिन आती है, तो इस व्रत का प्रभाव और भी अधिक शुभ हो जाता है। प्रदोष व्रत को विशेष रूप से मनोकामना पूर्ति, पारिवारिक सुख-शांति और विशेष रूप से वैवाहिक जीवन की बाधाओं को दूर करने के लिए रखा जाता है।
प्रदोष व्रत का दिन भगवान शिव और माता पार्वती की कृपा प्राप्त करने के लिए अत्यंत शुभ माना जाता है। इस दिन सूर्यास्त के बाद एक से डेढ़ घंटे का समय ‘प्रदोष काल’ कहलाता है, जो शिव पूजन के लिए सर्वश्रेष्ठ होता है। धार्मिक मान्यता के अनुसार, इस पावन समय में सच्ची श्रद्धा और विधिपूर्वक पूजा करने से विशेष फल की प्राप्ति होती है। विवाह में आ रही बाधाएं, पारिवारिक कलह, और मानसिक अशांति जैसी समस्याएं दूर होती हैं। प्रदोष व्रत के दिन व्रती को दिनभर उपवास रखते हुए भगवान शिव का ध्यान करना चाहिए, तथा प्रदोष काल में मंदिर जाकर या घर में ही शिवलिंग का पूजन करना चाहिए।
प्रदोष व्रत के दिन शिवलिंग का अभिषेक करते समय एक तांबे के पात्र में विशेष पूजन सामग्रियों को मिलाकर भगवान शिव पर चढ़ाना से विवाह संबंधी अड़चनें दूर होती हैं। साथ ही, इसे अत्यंत शुभ फलदायी भी माना जाता है।
प्रदोष काल का समय साधना, ध्यान और भक्ति के लिए सर्वश्रेष्ठ माना जाता है। धार्मिक ग्रंथों के अनुसार, जो व्यक्ति श्रद्धा से प्रदोष व्रत करता है, उसकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं और जीवन में सुख-समृद्धि आती है।
तेरे दरबार का पाने नज़ारा,
मैं भी आया हू,
मैं चाहूँ सदा दर तेरे आना,
तू यूँ ही बुलाना दातिए,
माँ ! मुझे तेरी जरूरत है ।
कब डालोगी, मेरे घर फेरा
माँ मुरादे पूरी करदे हलवा बाटूंगी।
ज्योत जगा के, सर को झुका के,