श्रावण पुत्रदा एकादशी हिंदू धर्म में संतान प्राप्ति से जुड़ा अत्यंत महत्वपूर्ण व्रत माना जाता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार यह व्रत संतानहीन दंपत्तियों को पुत्र सुख प्रदान करता है और वंश परंपरा को आगे बढ़ाने का मार्ग प्रशस्त करता है। वर्ष में दो बार आने वाली पुत्रदा एकादशी में श्रावण माह की एकादशी को विशेष पुण्यदायी माना गया है। वैष्णव परंपरा में इसे पवित्रोपना या पवित्र एकादशी भी कहा जाता है।
हिंदू पंचांग के अनुसार वर्ष 2026 में श्रावण शुक्ल पक्ष की पुत्रदा एकादशी रविवार, 3 जून 2026 को मनाई जाएगी।
धार्मिक नियमों के अनुसार पारण सूर्योदय के बाद और द्वादशी तिथि समाप्त होने से पहले करना अनिवार्य माना गया है।
हिंदू शास्त्रों में पुत्र को पितृ ऋण से मुक्ति का माध्यम माना गया है। अंतिम संस्कार, श्राद्ध और तर्पण जैसे संस्कार पुत्र द्वारा ही संपन्न होते हैं। ऐसी मान्यता है कि जिन माता-पिता की मृत्यु के बाद श्राद्ध विधि सही तरीके से होती है, उनकी आत्मा को शांति और तृप्ति प्राप्त होती है। इसी कारण संतान प्राप्ति की कामना रखने वाले दंपत्ति पुत्रदा एकादशी का व्रत रखते हैं।
पुत्रदा एकादशी साल में दो बार आती है। पहली पौष शुक्ल पक्ष में और दूसरी श्रावण शुक्ल पक्ष में। उत्तर भारत में पौष पुत्रदा एकादशी को अधिक महत्व दिया जाता है, जबकि अन्य राज्यों में श्रावण पुत्रदा एकादशी का विशेष महत्व है।
इस दिन श्रद्धालु प्रातःकाल स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करते हैं। इसके बाद भगवान विष्णु की प्रतिमा या चित्र के समक्ष घी का दीपक जलाकर पूजा की जाती है। तुलसी पत्र, तिल और मौसमी फल अर्पित किए जाते हैं। दिनभर व्रत रखकर शाम को फलाहार किया जा सकता है। रात्रि में जागरण, भजन और कीर्तन का विशेष महत्व बताया गया है।
धार्मिक मान्यता है कि विधि-विधान से किया गया श्रावण पुत्रदा एकादशी व्रत वाजपेय यज्ञ के समान फल प्रदान करता है। इस व्रत से न केवल संतान सुख की प्राप्ति होती है, बल्कि व्यक्ति के समस्त पापों का नाश होकर मोक्ष का मार्ग भी प्रशस्त होता है।
पद्म पुराण के अनुसार द्वापर युग में महिष्मती नगरी के राजा महाजित धर्मात्मा और प्रजावत्सल थे, लेकिन पुत्रहीन होने के कारण अत्यंत दुखी रहते थे। महर्षि लोमश ने बताया कि पूर्व जन्म में एक गाय को जल पीने से रोकने के कारण उन्हें यह कष्ट भोगना पड़ रहा है। ऋषि की सलाह पर राजा और उनकी प्रजा ने श्रावण शुक्ल पक्ष की पुत्रदा एकादशी का विधिपूर्वक व्रत किया और उसका पुण्य राजा को अर्पित किया। इस व्रत के प्रभाव से रानी ने एक तेजस्वी पुत्र को जन्म दिया। तभी से इस एकादशी को पुत्रदा कहा गया।