राखी पूर्णिमा भाई बहन के प्रेम को समर्पित पर्व है। श्रावण मास की पूर्णिमा को बहनें भाई की कलाई पर रक्षा सूत्र बांधती हैं और उनके लिए दीर्घायु और सुख का आशीर्वाद मांगती हैं। बदले में भाई बहन की रक्षा का वचन देते हैं। इसे राखी पूर्णिमा या राखरी भी कहा जाता है। यह परंपरा केवल रक्त संबंधों तक सीमित नहीं है बल्कि सामाजिक रूप से भी अपनाई जाती है ताकि स्नेह और सौहार्द की भावना बनी रहे। कई क्षेत्रों में इस दिन पितृ तर्पण और ऋषि पूजन का विधान भी है।
वर्ष 2026 में रक्षाबंधन शुक्रवार 28 अगस्त को मनाया जाएगा। राखी बांधने का शुभ समय प्रातः 05 बजकर 56 मिनट से 09 बजकर 50 मिनट तक है। यह अवधि लगभग तीन घंटे तिरेपन मिनट की है। शास्त्रों के अनुसार राखी बांधने में अपराह्न और भद्रा रहित समय का विशेष ध्यान रखा जाता है। यदि भद्रा लग जाए तो उसके समाप्त होने के बाद ही राखी बांधनी चाहिए। इस वर्ष मुहूर्त सरल और स्पष्ट है इसलिए अधिकांश क्षेत्रों में यह पर्व सुबह के समय ही मनाया जाएगा।
राखी बांधने से पहले स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण किए जाते हैं। पूजा थाली में रोली, चावल, दीप, मिठाई और राखी रखी जाती है। बहनें भाई की आरती उतारकर रक्षा सूत्र बांधती हैं और यह मंत्र बोलती हैं
ॐ येन बद्धो बली राजा दानवेन्द्रो महाबलः तेन त्वामपि बध्नामि रक्षे मा चल मा चल।
इस मंत्र का संबंध देवासुर संग्राम से है जब इन्द्राणी ने इन्द्र को रक्षा सूत्र बांधा था। इसी रक्षा सूत्र की शक्ति से इन्द्र ने विजय प्राप्त की थी। पूजा के बाद भाई बहन को उपहार देते हैं और परिवार में उत्सव का वातावरण बनता है।
राखी के समर्थन में अनेक पौराणिक और ऐतिहासिक कथाएं मिलती हैं। द्रौपदी ने श्री कृष्ण के हाथ से रक्त बहने पर अपनी साड़ी का एक टुकड़ा बांधा था। श्री कृष्ण ने इसे रक्षा वचन माना और द्रौपदी के संकट में उनकी रक्षा की। एक अन्य कथा में चित्तौड़ की रानी कर्णावती ने हुमायूं को राखी भेजी थी और हुमायूं ने उसे अपना मानकर उनकी रक्षा की। देवी लक्ष्मी द्वारा राजा बाली को राखी बांधने की जनश्रुति भी प्रसिद्ध है। इन सभी कथाओं से यह स्पष्ट होता है कि राखी केवल धागा नहीं बल्कि विश्वास और सुरक्षा का प्रतीक है।