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रक्षाबंधन की थाली में क्या रखें

रक्षाबंधन की थाली में क्या रखें

रक्षाबंधन पर भाई को राखी बांधते समय थाली में जरूर रखें ये चीजें, तभी पूरी होगी पूजा की विधि

रक्षाबंधन का पर्व केवल एक रक्षा-सूत्र बांधने की रस्म नहीं, बल्कि भाई-बहन के प्रेम, विश्वास और श्रद्धा का पर्व है। हर साल सावन मास की पूर्णिमा को मनाया जाने वाला यह उत्सव इस बार और भी खास रहने वाला है। 2025 में रक्षाबंधन 9 अगस्त को शनिवार के दिन मनाया जाएगा और इस दिन ना तो भद्रा का साया रहेगा और ना कोई ग्रहण — यानी बहनें बिना किसी विघ्न के पूरे विधि-विधान से भाई को राखी बांध सकेंगी।

ज्योतिषीय मान्यताओं के अनुसार, इस बार का रक्षाबंधन पूर्ण शुभ संयोगों वाला है। ऐसे में यदि पूजा की थाली को पारंपरिक सामग्री से सजाया जाए, तो राखी बांधने का असर और भी फलदायी होगा। शास्त्रों में वर्णित पूजा सामग्री, दिशा और मंत्रों के साथ जब राखी बांधी जाती है, तो वह न सिर्फ भाई की उम्र बढ़ाती है, बल्कि उसके जीवन में सुख, समृद्धि और सुरक्षा का भी आशीर्वाद लाती है।

थाली में क्या-क्या रखें

राखी बांधने से पहले बहन को एक सुंदर सी पूजा की थाली तैयार करनी चाहिए। इसमें निम्नलिखित चीजें शामिल करें:

  • रक्षासूत्र (राखी): सबसे आवश्यक वस्तु, जिसे भाई की कलाई पर बांधा जाएगा।
  • हल्दी लगे पीले अक्षत (चावल): यह शुभता का प्रतीक होते हैं, जिन्हें तिलक के बाद भाई के सिर पर चढ़ाया जाता है।
  • मिठाई: राखी के बाद भाई को मिठाई खिलाई जाती है, जिससे रिश्ते में मिठास बनी रहे।
  • घी का दीपक: यह ऊर्जा और पवित्रता का प्रतीक है, पूजा से पहले इसे जलाएं।
  • धूप या अगरबत्ती: वातावरण को शुद्ध और आध्यात्मिक बनाने के लिए आवश्यक है।
  • रोली या हल्दी: भाई के मस्तक पर तिलक करने के लिए।

कैसे करें पूजा

पूजा करते समय भाई को पूर्व या उत्तर-पूर्व दिशा की ओर बैठाएं। बहन पहले उसके मस्तक पर तिलक लगाए, फिर अक्षत चढ़ाए और दीपक घुमाकर राखी बांधे। इसके बाद मिठाई खिलाए और आशीर्वाद ले।

इस मंत्र का करें उच्चारण

राखी बांधते समय यह वैदिक मंत्र बोलना अत्यंत शुभ माना गया है:

“येन बद्धो बलि राजा, दानवेन्द्रो महाबलः।
तेन त्वां मनु बध्नामि, रक्षे माचल माचल॥”

यह मंत्र केवल परंपरा नहीं, बल्कि एक पौराणिक कहानी से जुड़ा है। जब देवी लक्ष्मी ने राजा बलि को राखी बांधी, तब उन्होंने यही मंत्र पढ़ा था और उसी के प्रभाव से उन्होंने भगवान विष्णु को वापस पाताल लोक से बुलाया था।

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