हिन्दू धर्म में एकादशी व्रतों का विशेष महत्व है और उत्पन्ना एकादशी को सभी एकादशियों की आदि एकादशी कहा जाता है। धार्मिक मान्यता के अनुसार इसी तिथि को देवी एकादशी का जन्म हुआ था। भगवान श्रीकृष्ण ने स्वयं धर्मराज युधिष्ठिर को इस व्रत की कथा और महिमा बताई थी। कहा जाता है कि इस व्रत के प्रभाव से मनुष्य के संचित पाप नष्ट होते हैं और उसे भगवान विष्णु की विशेष कृपा प्राप्त होती है। इसलिए मार्गशीर्ष कृष्ण पक्ष की यह एकादशी अत्यंत पुण्यदायी मानी जाती है।
2026 में उत्पन्ना एकादशी का व्रत मार्गशीर्ष मास के कृष्ण पक्ष में रखा जाएगा। पारण मुहूर्त 5 दिसंबर 2026 को प्रातः 06:59:01 से 09:03:59 तक रहेगा। पारण की अवधि लगभग 2 घंटे 4 मिनट मानी गई है। शास्त्रों के अनुसार द्वादशी तिथि में उचित समय पर पारण करने से व्रत का पूर्ण फल प्राप्त होता है।
अन्य एकादशी व्रतों की तरह उत्पन्ना एकादशी की पूजा विधि भी सरल और सात्त्विक मानी गई है। व्रती को दशमी की रात्रि में भोजन नहीं करना चाहिए। एकादशी के दिन प्रातःकाल स्नान कर व्रत का संकल्प लें और भगवान विष्णु या भगवान श्रीकृष्ण का पूजन करें। पूजा में पुष्प, जल, धूप, दीप और अक्षत अर्पित किए जाते हैं। इस दिन केवल फलाहार करने का विधान है। दिनभर भगवान का स्मरण और नाम जप करना चाहिए तथा रात्रि में जागरण करना विशेष पुण्यदायी माना गया है। अगले दिन द्वादशी को ब्राह्मण या जरूरतमंद व्यक्ति को भोजन और दान देकर पारण किया जाता है।
धार्मिक ग्रंथों के अनुसार उत्पन्ना एकादशी का व्रत अत्यंत फलदायी है। मान्यता है कि इस दिन स्वयं भगवान विष्णु ने देवी एकादशी को वरदान दिया था कि जो भी श्रद्धा पूर्वक इस व्रत का पालन करेगा, उसके सभी पाप नष्ट होंगे और उसे मोक्ष की प्राप्ति होगी। यह व्रत माया और मोह में फंसे जीवों को भगवान की भक्ति की ओर ले जाने वाला माना जाता है। इसलिए इसे मोक्ष देने वाला व्रत भी कहा गया है।
भगवान श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर को बताया कि सत्ययुग में मुर नामक एक अत्यंत बलशाली राक्षस हुआ करता था। उसने अपने पराक्रम से देवताओं को पराजित कर स्वर्ग से निकाल दिया था। सभी देवता भगवान शिव के पास गए और फिर उनके निर्देश पर भगवान विष्णु की शरण में पहुंचे। भगवान विष्णु ने मुर से युद्ध किया, परंतु विश्राम के समय जब वे एक गुफा में सो रहे थे, तब मुर ने उन पर आक्रमण करने का प्रयास किया। उसी क्षण भगवान विष्णु के शरीर से एक दिव्य कन्या उत्पन्न हुई, जिसने मुर का वध कर दिया। जब भगवान विष्णु जागे और यह घटना जानी, तो उन्होंने उस कन्या को वरदान दिया कि तुम एकादशी नाम से पूजी जाओगी। तुम्हारी उपासना करने वाले सभी पापों से मुक्त होकर परम गति को प्राप्त करेंगे। तभी से यह तिथि उत्पन्ना एकादशी के नाम से प्रसिद्ध हुई।
शास्त्रों में कहा गया है कि उत्पन्ना एकादशी का व्रत करने से पूर्वजन्म और वर्तमान जन्म के पाप नष्ट हो जाते हैं। यह व्रत भगवान श्रीकृष्ण और भगवान विष्णु की विशेष कृपा दिलाने वाला माना गया है। श्रद्धा, संयम और भक्ति के साथ किया गया यह व्रत जीवन को आध्यात्मिक शांति और मोक्ष की ओर अग्रसर करता है।