हिन्दू धर्म में एकादशी व्रतों का विशेष स्थान है और रमा एकादशी उनमें अत्यंत फलदायी मानी जाती है। इस एकादशी को माता लक्ष्मी के रमा स्वरूप के नाम पर जाना जाता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इस दिन भगवान विष्णु के केशव स्वरूप के साथ महालक्ष्मी की उपासना करने से साधक के जीवन में स्थायित्व, वैभव और मानसिक शांति आती है। चातुर्मास की अंतिम एकादशी होने के कारण इसका आध्यात्मिक महत्व और भी बढ़ जाता है। यह व्रत केवल भौतिक समृद्धि ही नहीं, बल्कि पापों के क्षय और पुण्य संचय का भी साधन माना गया है।
रमा एकादशी का संबंध सीधे माता लक्ष्मी से माना गया है, इसलिए इसे धन और समृद्धि प्रदान करने वाला व्रत कहा जाता है। पद्म पुराण के अनुसार इस व्रत का फल कामधेनु और चिंतामणि के समान है। अर्थात यह मनुष्य की उचित और धर्मसम्मत इच्छाओं को पूर्ण करने वाला माना गया है। वर्ष 2026 में रमा एकादशी का व्रत कार्तिक मास में रखा जाएगा। इस दिन श्रद्धा भाव से किया गया व्रत जीवन में आई आर्थिक और मानसिक कठिनाइयों को दूर करने में सहायक होता है।
रमा एकादशी व्रत के नियमों का पालन दशमी तिथि से ही आरंभ कर देना चाहिए। दशमी के दिन सूर्यास्त के बाद भोजन नहीं करना चाहिए। एकादशी के दिन प्रातः स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करके व्रत का संकल्प लें। इसके बाद भगवान विष्णु की पूजा करें और उन्हें धूप, दीप, तुलसी पत्र, फूल, फल तथा नैवेद्य अर्पित करें। दिनभर सात्विक आहार या फलाहार का पालन करना चाहिए। रात्रि में भगवान विष्णु का भजन कीर्तन या जागरण करना विशेष पुण्यदायी माना गया है।
मान्यता है कि रमा एकादशी व्रत करने से व्यक्ति के संचित पाप कर्म नष्ट हो जाते हैं और उसे श्रेष्ठ पुण्य की प्राप्ति होती है। इस व्रत के प्रभाव से धन धान्य की कमी दूर होती है और घर में लक्ष्मी का स्थायी वास होता है। यह व्रत वैवाहिक जीवन में मधुरता, पारिवारिक सुख और मानसिक संतुलन भी प्रदान करता है। विशेष रूप से व्यापार और आर्थिक उन्नति की कामना रखने वाले लोगों के लिए यह व्रत अत्यंत लाभकारी माना गया है।
प्राचीन काल में विंध्य पर्वत क्षेत्र में क्रोधन नाम का एक अत्यंत क्रूर बहेलिया रहता था। उसका जीवन हिंसा, लूट पाट, मद्यपान और असत्य से भरा हुआ था। जब उसकी मृत्यु का समय निकट आया, तब भयभीत होकर वह महर्षि अंगिरा की शरण में पहुंचा। महर्षि की कृपा से उसने एकादशी व्रत का पालन किया। व्रत और भगवान विष्णु की आराधना के प्रभाव से उसके सभी पाप नष्ट हो गए और अंततः उसे मोक्ष की प्राप्ति हुई। यह कथा एकादशी व्रत की महिमा को स्पष्ट रूप से दर्शाती है।