हिंदू धर्म में सफला एकादशी एक महत्वपूर्ण व्रत है। यह भगवान विष्णु को समर्पित है। यह पौष मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को पड़ती है। 'सफला’ शब्द का शाब्दिक अर्थ है सफलता इसलिए माना जाता है कि इस व्रत को करने से भक्त को सभी कार्यों में सफलता प्राप्त होती है। ऐसी मान्यता है कि इस व्रत को करने से भगवान विष्णु की कृपा से सभी कार्यों में सफलता मिलती है और यह व्रत सभी पापों का नाश करने वाला माना जाता है। तो आइए इस आलेख में सफला एकदाशी के बारे में विस्तार से जानते हैं।
इस साल की आखिरी एकादशी सफला 26 दिसंबर को पड़ रही है। यह व्रत हर महीने शुक्ल और कृष्ण पक्ष तिथि को पड़ती है। यह व्रत भगवान विष्णु को समर्पित है। इस दिन सच्चे मन से पूजा-अर्चना करने से जीवन में सुख-शांति बनी रहती है और भगवान विष्णु का आशीर्वाद प्राप्त होता है। सफला एकादशी का मुहूर्त 25 दिसंबर को रात 10 बजकर 29 मिनट से शुरू होगा, जिसका समापन 27 दिसंबर को रात 12 बजकर 43 मिनट पर होगा। इसलिए, उदया तिथि पड़ने के कारण सफला एकादशी व्रत 26 दिसंबर को मनाया जाएगा।
इस दिन आप विधि-विधान के साथ पीले रंग का वस्त्र पहनकर भगवान विष्णु की पूजा की जाती है। मान्यता है कि इससे साधक को शुभ फलों की प्राप्ति होती है। क्योंकि, यह भगवान विष्णु का प्रिय रंग माना जाता है। इतना ही नहीं इसके अलावे पीले रंग को मानसिक शांति और आंतरिक संतुलन बढ़ाने वाला रंग माना जाता है। इसी कारण इस वस्त्र के साथ पूजा का प्रभाव और बढ़ जाता है। वहीं, आपको पूजा में काले रंग के कपड़े को नहीं पहनना चाहिए। क्योंकि, पूजा के लिहाज़ से यह अच्छा रंग नहीं माना जाता है।
सफला एकादशी का व्रत रखने वाले भक्तों को दूध, दही, फल, शरबत, साबूदाना, बादाम, नारियल, शकरकंद, आलू, सेंधा नमक इत्यादि का सेवन किया जा सकता है। बता दें कि सफला एकादशी का व्रत करने वाले साधकों को एक दिन पहले तामसिक भोजन नहीं करना चाहिए। साथ ही, घर परिवार के लोगों को भी मांस मदिरा के सेवन से बचना चाहिए। तभी व्रत रखने वाले को पूर्ण फल की प्राप्ति होती है। बता दें कि इस व्रत को करने से पिछले जन्म के पापों से मुक्ति मिलती है और मोक्ष की प्राप्ति होती है। इसलिए लोग सफला एकादशी का व्रत रखते हैं।
एक समय श्री महादेवजी पार्वती के साथ भ्रमण करते हुए मृत्युलोक में अमरावती नगरी में आए। वहां के राजा ने शिव मंदिर बनवाया था, जो कि अत्यंत भव्य एवं रमणीक तथा मन को शांति पहुंचाने वाला था। भ्रमण करते सम शिव-पार्वती भी वहां ठहर गए।
भगवान शिव की महिमा सुनकर एक बार ऋषियों ने सूत जी से कहा- हे सूत जी आपकी अमृतमयी वाणी और आशुतोष भगवान शिव की महिमा सुनकर तो हम परम आनन्दित हुए।
भारतवर्ष में एक राजा राज्य करता था वह बड़ा प्रतापी और दानी था। वह नित्य गरीबों और ब्राह्मणों की सहायता करता था।
एक नगरमें एक बुढ़ियाके सात पुत्र थे, सातौके विवाह होगए, सुन्दर स्त्री घर में सम्पन्न थीं। बड़े बः पुत्र धंधा करते थे बोटा निठल्ला कुछ नहीं करता था और इस ध्यान में मग्न रहता था कि में बिना किए का खाता हूं।