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विजया एकादशी 2026 कब है

विजया एकादशी 2026 कब है

Vijaya Ekadashi 2026: फरवरी की इस तारीख को पड़ेगी विजया एकादशी, पारण समय और तिथि विवरण 

हिंदू धर्म में फाल्गुन माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी को विजया एकादशी कहा जाता है। यह एकादशी विशेष रूप से विजय, साहस और दृढ़ संकल्प का प्रतीक मानी जाती है। शास्त्रों में वर्णित है कि इस एकादशी का व्रत करने से मनुष्य को हर कार्य में सफलता प्राप्त होती है और शत्रुओं पर विजय मिलती है। भगवान विष्णु को समर्पित यह व्रत जीवन की कठिन परिस्थितियों में आत्मबल और मार्गदर्शन प्रदान करता है। वर्ष 2026 में विजया एकादशी फरवरी माह में पड़ रही है, जिससे यह व्रत साधकों और श्रद्धालुओं के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण माना जा रहा है।

विजया एकादशी 2026 तिथि और पारण समय

विजया एकादशी शुक्रवार, 13 फरवरी 2026 को होगी।

एकादशी तिथि प्रारम्भ

12 फरवरी 2026 को 12:22 पी एम

एकादशी तिथि समाप्त

13 फरवरी 2026 को 02:25 पी एम

पारण तिथि

14 फरवरी 2026

पारण समय

सुबह 07:00 ए एम से 09:14 ए एम

द्वादशी तिथि समाप्त

14 फरवरी 2026 को 04:01 पी एम

धर्म शास्त्रों के अनुसार एकादशी व्रत का पारण सूर्योदय के बाद और द्वादशी तिथि समाप्त होने से पूर्व करना अनिवार्य है। हरि वासर के दौरान पारण नहीं करना चाहिए।

एकादशी व्रत पारण के नियम

एकादशी व्रत का समापन पारण से होता है। पारण द्वादशी तिथि के भीतर और हरि वासर के पश्चात ही किया जाना चाहिए। यदि द्वादशी तिथि सूर्योदय से पूर्व समाप्त हो जाए, तो पारण सूर्योदय के बाद किया जाता है। शास्त्रों में मध्याह्न के समय व्रत तोड़ने से बचने की सलाह दी गई है। यदि किसी कारणवश प्रातःकाल पारण संभव न हो, तो मध्याह्न के बाद पारण किया जा सकता है।

जब एकादशी व्रत दो दिन हो

कभी कभी एकादशी तिथि दो दिनों तक रहती है। ऐसी स्थिति में स्मार्त परंपरा मानने वाले श्रद्धालु पहले दिन व्रत करते हैं। दूसरे दिन की एकादशी को दूजी एकादशी कहा जाता है। सन्यासियों, विधवाओं और मोक्ष की कामना रखने वाले भक्तों को दूजी एकादशी के दिन व्रत करने की सलाह दी जाती है। विशेष विष्णु भक्त चाहें तो दोनों दिन व्रत कर सकते हैं।

विजया एकादशी व्रत कथा

भगवान श्रीकृष्ण अर्जुन को बताते हैं कि फाल्गुन कृष्ण पक्ष की एकादशी को विजया एकादशी कहते हैं। एक बार देवर्षि नारद ने ब्रह्माजी से इस व्रत का माहात्म्य पूछा। ब्रह्माजी ने कहा कि यह व्रत सभी पापों का नाश करने और विजय प्रदान करने वाला है।

कथा के अनुसार, जब भगवान श्रीराम वनवास के दौरान माता सीता की खोज में लंका की ओर बढ़े और समुद्र को पार करने का मार्ग न दिखाई दिया, तब लक्ष्मण के सुझाव पर वे महर्षि वकदाल्भ्य के आश्रम पहुंचे। ऋषि ने श्रीराम को विजया एकादशी व्रत करने की सलाह दी और उसकी विधि बताई। भगवान श्रीराम ने सेनापतियों सहित यह व्रत विधिपूर्वक किया। इसी व्रत के प्रभाव से उन्होंने समुद्र पार किया और रावण पर विजय प्राप्त की।

विजया एकादशी व्रत से मिलने वाला फल

शास्त्रों में कहा गया है कि विजया एकादशी का व्रत करने से मनुष्य को सभी कार्यों में सफलता प्राप्त होती है। यह व्रत भय, विघ्न और शत्रु बाधाओं से मुक्ति दिलाता है। इस व्रत का माहात्म्य पढ़ने या सुनने से वाजपेय यज्ञ के समान पुण्य फल की प्राप्ति होती है। यह एकादशी आत्मविश्वास और धर्मबल को दृढ़ करती है।

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