कहते हैं, देवता हो या मनुष्य, यक्ष हो या गंधर्व, नाग हो किन्नर हो या दानव सभी को अपने कर्मों का फल भोगना ही पड़ता है। सनातन धर्म में इसके साक्ष्य है और पूर्व जन्म की कहानियां इसका समर्थन करती है। शास्त्रों के अनुसार लोगों को उनके कर्मों का दंड देने का काम यमराज करते हैं। तथा मानव मात्र के कर्मों का हिसाब-किताब का जिम्मा चित्रगुप्त के पास होता है।
भक्त वत्सल के इस आर्टिकल में जानेंगे चित्रगुप्त को ये जिम्मेदारी किसने सौंपी…
ब्रह्मा जी ने संसार की रचना करने के बाद यमराज को मनुष्यों के कर्मों के अनुसार सजा देने का काम दिया। इस पर यमराज ने ब्रह्मा जी से एक ऐसे सहयोगी की मांग की जो शीघ्रता से काम करे, धार्मिक, न्यायकर्ता, बुद्धिमान, लेख कर्म में दक्ष, चमत्कारी, तपस्वी, ब्रह्मनिष्ठ और वेद शास्त्र का ज्ञाता हो। तब ब्रह्मा जी ने एक हजार वर्ष तक तपस्या करने के बाद अपनी काया से चित्रगुप्त को उत्पन्न किया और उन्हें यमराज का सहयोग करने का कार्य सौंपा। वे ब्रह्मा के सत्रहवें मानसपुत्र हैं। उनकी रचना ब्रह्मा की आत्मा और मन (चित) के साथ साथ सम्पूर्ण काया से हुई थी। इसलिए ब्रह्मदेव ने उन्हें वेद लिखने का भी अधिकार दिया था ।
दरअसल, भाई दूज के दिन यमदेव ने अपनी बहन यमुना को वरदान दिया था कि भाई दूज के दिन जो बहन अपने भाई को घर बुलाकर उसके माथे पर तिलक लगाएगी और भोजन करवाएगी उसके भाई को कभी भी मृत्यु का भय नहीं होगा। इसलिए भाई दूज को यम द्वितीया भी कहा जाता है। चित्रगुप्त यम देव के सहायक हैं, इसलिए भाई दूज के दिन चित्रगुप्त की पूजा का विधान भी है। कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को यमराज के सहायक चित्रगुप्त महाराज की पूजा की जाती है। मान्यता है कि भगवान चित्रगुप्त की पूजा करने से मनुष्य को नरक की यातनाओं से मुक्ति मिलती है।
क्योंकि चित्रगुप्त कर्मों का लेखा-जोखा रखते हैं इसलिए इस दिन कलम और दवात यानी स्याही की पूजा भी की जाती है। भगवान चित्रगुप्त का जन्म ब्रह्मा जी की काया से हुआ था, इसलिए उनकी संतानें आगे चलकर कायस्थ कहलाईं। इसलिए चित्रगुप्त की पूजा ज्यादातर कायस्थ लोग करते है।
भगवान चित्रगुप्त जी के प्रमुख मंदिरों में हैदराबाद का स्वामी चित्रगुप्त मंदिर, उत्तर प्रदेश के फैजाबाद का श्री धर्महरि चित्रगुप्त मंदिर और तमिलनाडु के कांचीपुरम में स्थित चित्रगुप्त मंदिर सबसे प्रमुख है।
पंचांग के अनुसार चैत्र माह के कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा तिथि है। इस तिथि पर उत्तर फाल्गुनी नक्षत्र और गण्ड योग का संयोग बन रहा है। वहीं चंद्रमा कन्या राशि में हैं और सूर्य मीन राशि में मौजूद हैं।
पंचांग के अनुसार चैत्र माह के कृष्ण पक्ष की द्वितीया तिथि है। इस तिथि पर हस्त नक्षत्र और वृद्धि योग का संयोग बन रहा है।
पंचांग के अनुसार चैत्र माह के कृष्ण पक्ष की तृतीया तिथि है। इस तिथि पर चित्रा नक्षत्र और ध्रुव योग का संयोग बन रहा है। वहीं चंद्रमा तुला राशि में हैं और सूर्य मीन राशि में मौजूद हैं।
होली भाई दूज भाई-बहन के प्रेम और स्नेह के प्रतीक का त्योहार है, जो होली के बाद मनाया जाता है। इस दिन बहन अपने भाई को तिलक कर उसकी लंबी उम्र और सुख-समृद्धि की प्रार्थना करती है।