इस वर्ष की शारदीय नवरात्रि 22 सितंबर, सोमवार से शुरू हो रही है। नवरात्रि देवी की पूजा के लिए सबसे शुभ समय होता है और इसे सनातन धर्म के दिव्य समय में से एक माना जाता है।
वास्तुशास्त्र में देवी के मूर्ति की स्थिति और पूजास्थल का सही चयन पूजा के प्रभाव को गहरा करता है। इसलिए अगर इन वास्तु नियमों का पालन न किया जाए तो पूजा का फल अधूरा रह जाता है।
देवी दुर्गा की मूर्ति को उत्तर की ओर मुख करके रखना चाहिए और देवी दुर्गा की पूजा करते समय उपासक को पूर्व दिशा की ओर मुख करना चाहिए। इससे पूजा करते समय उपासक और देवी दुर्गा की मूर्ति के बीच सकारात्मकता बनी रहती है।
देवी दुर्गा की प्रतिमा सबसे ऊपर रखनी चाहिए। इसे सीधे जमीन पर रखने से वास्तु दोष हो सकते हैं, जो पूजा के लिए अशुभ माने जाते हैं।
पूजा मंडप को नियमित रूप से साफ करें और इसे हर समय व्यवस्थित रखें। मूर्ति के आस-पास के स्थान का उपयोग सजावट और पूजा के लिए किया जाना चाहिए, जैसे धूप, अगरबत्ती आदि, ताकि वातावरण स्वच्छ रहे। वास्तु नियमों में अस्वच्छ पूजा मंडप को अशुभ माना जाता है।
अगर देवी दुर्गा की मूर्ति या फोटो से पूजा कर रहे हैं, तो यह ज़रूर सुनिश्चित करें कि वह किसी भी तरफ से टूटा या फटा हुआ न हो। इसके अलावा हथेली के आकार से बड़ी मूर्ति भी लाएं, क्योंकि इसे धार्मिक दृष्टि से शुभ माना जाता है।
वास्तु शास्त्र में कुछ स्थानों को अशुभ माना जाता है और उन स्थानों पर कभी भी पूजा नहीं करनी चाहिए। इसलिए देवी दुर्गा की मूर्ति को बाथरूम, रसोईघर या सीढ़ियों के नीचे न रखें।
पूजा करते समय दीया की रोशनी अच्छी होनी चाहिए। मंद रोशनी या कम गुणवत्ता वाली दीया बाती से बचें क्योंकि यह बुरी आभा पैदा करती है।