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झारखंड के दो सबसे खास मंदिर

झारखंड के दो सबसे खास मंदिर

झारखंड के इस मंदिर में कभी दी जाती थी भैंस की बलि, जानिए  पौराणिक कथा


भारत की विविध संस्कृति में मंदिरों की विशेष भूमिका शुरू से रही है। bhaktvatsal.com अपने पाठकों को देश में स्थित अनूठी परंपरा और मान्यताओं वाले देवी मंदिरों के बारे में बता रहा है। इसी कड़ी में आज हम आपको झारखंड के रजरप्पा में स्थित छिन्नमस्तिका देवी मंदिर और गढ़वा के मां गढ़देवी मंदिर के बारे में बताने जा रहे हैं। ये दोनों मंदिर अपनी अनूठी परंपराओं और मान्यताओं के लिए ही विख्यात हैं। इन मंदिरों में विशेष धार्मिक अनुष्ठान और पूजा-अर्चना की जाती है जो श्रद्धालुओं के लिए आध्यात्मिक शांति और सुकून का स्रोत हैं। 


बहुत पुराना है मां गढ़देवी का इतिहास


झारखंड के गढ़वा में मां गढ़देवी मंदिर स्थित है। यह गढ़वा जिले के मुख्यालय में स्थित है। इस मंदिर का इतिहास करीब 200 साल पुराना है। इसे ‘गढ़’ की देवी के रूप में पूजा जाता है। गढ़वा के आस-पास के लोग इसे अपनी कुलदेवी मानते हैं। यह मंदिर सिर्फ झारखंड में ही नहीं बल्कि आसपास के राज्यों में भी प्रसिद्ध है। नवरात्रि और श्रावण मास में यहां भक्तों की भारी भीड़ उमड़ती है। मां गढ़देवी का यह मंदिर लोगों की आस्था का प्रमुख केंद्र है और पूरे वर्ष यहां भक्तों का तांता लगा रहता है।


भैंसा बलि की परंपरा का हुआ अंत


मान्यता है कि मां गढ़देवी मंदिर में नवमी के पहले दिन भैंसे की बलि दी जाती थी जो कई दशकों तक चला। हालांकि साल 2000 में मंदिर ट्रस्ट के अध्यक्ष की पहल पर इस प्रथा को पूर्ण रूप से बंद कर दिया गया। इस निर्णय का पहले विरोध भी हुआ लेकिन बाद में इसे सफलतापूर्वक बंद कर दिया गया। हालांकि बकरे की बलि की परंपरा आज भी इस मंदिर में कायम है। यह परंपरा सदियों पुरानी है और इससे जुड़े धार्मिक अनुष्ठानों का विशेष महत्व है।


देवी छिन्नमस्तिका का अनूठा स्वरूप 


छिन्नमस्तिका देवी का मंदिर अपने आप में बहुत अनोखा है। इस मंदिर में देवी के बिना सिर वाले स्वरूप की पूजा होती है। ऐसी मान्यता है कि देवी ने खुद अपना सिर काटकर अपनी सहेलियों की भूख को शांत किया था। इस अनोखी कहानी की वजह से इस मंदिर का धार्मिक महत्व और बढ़ जाता है। यहां भक्त देवी के कटे हुए सिर की पूजा करते हैं और विश्वास किया जाता है कि यहां आने से सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं। इस कारण से हर साल हजारों श्रद्धालु यहां देवी मां के दर्शन के लिए आते हैं। बता दें कि यह मंदिर रांची से करीब 80 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है और इसे दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा शक्तिपीठ माना जाता है। छिन्नमस्तिका देवी का यह मंदिर 51 शक्तिपीठों में से एक है और इसे दूसरा सबसे बड़ा शक्तिपीठ माना जाता है। 


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