छिन्नमस्तिका मंदिर, बिहार, मुजफ्फरपुर (Chinnamastika Temple, Bihar, Muzaffarpur)

दर्शन समय

N/A

आस्था, तंत्र विज्ञान और अद्वितीय परंपराओं का संगम है मुजफ्फरपुर का छिन्नमस्तिका मंदिर, जानिए क्या है पौराणिक कथा


बिहार के मुजफ्फरपुर जिले के कांटी में एनएच 28 के किनारे मां छिन्नमस्तिका का एक अलौकिक मंदिर है, जो सिद्ध पीठ के रूप में जाना जाता है। इस मंदिर में मां छिन्नमस्तिका की वैष्णव रूप में पूजन होती है। यहां एक सौ आठ देवी-देवताओं की मूर्तियां हैं और मुख्य मंदिर में मां का अद्वितीय स्वरूप है। इस मंदिर में स्थापित मूर्ति में मां का सिर कटा हुआ है और वे साखिनी और डाकिनी नामक योगिनी को अपना रक्त पिला रही हैं। नवरात्रि के समय श्रद्धालु यहां नारियल बांधकर मन्नत मांगने आते हैं। 


जानिए क्या है कटे हुए सिर की कहानी


यहां के स्थानीय लोग बताते हैं कि जो माता यहां पर विराजमान हैं उनका सिर नहीं है। हालांकि इस विशाल मंदिर में एक सौ आठ तरह के देवी देवता पूजे जाते हैं। प्रमुख मंदिर में सिर कटी हुई माता हैं जो खुद की बलि दे कर अपना रक्त अपनी दोनों योगिनी साखिनी और डाकिनी को पिला रही हैं। मन्दिर के प्रधान पुजारी बताते हैं कि ऐसी कथा प्रचलित है कि जब एक बार माता जी मंदाकिनी नदी में स्नान कर रहीं थी तो उसी समय माता जी का शरीर अपने आप ही काला पड़ गया और उनकी योगिनी जया विजया को प्यास लग गई। उन दोनों की प्यास बुझाने के लिए माता ने अपनी ही गर्दन काट के उन लोगों को अपना रक्त पिलाया। बताया जाता है कि इसका पहला मंदिर झारखंड के रजरप्पा में है जो 6000 वर्ष पहले बनाया गया था। 


तंत्र विज्ञान पद्धति पर हुआ मंदिर का निर्माण


ऐसा कहते हैं कि इस मंदिर का निर्माण पूरी तरह तंत्र विज्ञान पद्धति पर ही आधारित है। इसके गुंबज नवग्रहों के तथा ऊपर की आठ सीढियां पांच तत्व व तीन गुणों की प्रतीक मानी जाती हैं। जान लें कि यह मंदिर देश का दूसरा व राज्य का पहला मां छिन्नमस्तिका का मंदिर है। यहां रजरप्पा से सिद्ध की गई एक त्रिशूल की स्थापना की गई है। खास बात ये है कि पूरा मंदिर एक ही पाए पर टिका हुआ है।

 

नारियल बांधने की अनोखी परंपरा 


यहां पर देश के कोने-कोने से भक्त आकर सूखे नारियल को लाल चुनरी में लपेटकर बांधते हैं और मन्नत पूरी होने पर इसे खोलकर माता के चरणों में चढ़ा दिया जाता है। मंदिर परिसर में हजारों की संख्या में नारियल बंधे हुए हैं। वाम स्वरूपा व बलि प्रधान होते हुए भी यहां देवी की विशुद्ध वैष्णव स्वरूप में पूजा-अर्चना होती है। नवरात्र के दिनों में श्रद्धालुओ की लंबी कतारें यहां देखने को मिलती है। मां छिन्नमस्तिका सबकी मनोकामनाएं भी पूरी करती हैं। 


डिसक्लेमर

'इस लेख में दी गई जानकारी/सामग्री/गणना की प्रामाणिकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। सूचना के विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/धार्मिक मान्यताओं/धर्मग्रंथों से संकलित करके यह सूचना आप तक प्रेषित की गई हैं। हमारा उद्देश्य सिर्फ सूचना पहुंचाना है, पाठक या उपयोगकर्ता इसे सिर्फ सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त इसके किसी भी तरह से उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता या पाठक की ही होगी।