पटना के श्री अखंडवासिनी मंदिर, जहां 110 वर्षों से जल रही है अखंड ज्योत

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पटना के श्री अखंडवासिनी मंदिर, जहां 110 वर्षों से जल रही है अखंड ज्योत, जानिए क्या है महत्व


बिहार में मंदिरों से जुड़ी कई रोचक और अद्भुत कहानियां प्रचलित हैं, जो लोगों के विश्वास और आस्था का प्रतीक हैं। बिहार राज्य के पटना जिले का श्री अखंडवासिनी मंदिर भी ऐसा ही एक स्थान है, जहां की कहानी सुनकर हर कोई चकित हो जाता है। यह मंदिर न केवल पटना शहर के प्रमुख धार्मिक स्थलों में से एक है, बल्कि यहां का इतिहास भी बेहद दिलचस्प है। पटना के प्रसिद्ध गोलघर के पास स्थित यह मंदिर श्रद्धालुओं के लिए एक आस्था का बड़ा केंद्र है, जहां बीते 110 वर्षों से अखंड दीपक लगातार जल रहा है।


श्री अखंडवासिनी मंदिर का अनूठा इतिहास 


पटना के गोलघर के समीप स्थित श्री अखंडवासिनी मंदिर अपनी खास पहचान और आस्था के लिए प्रसिद्ध है। यहां मां दुर्गा अखंडवासिनी माता के रूप में विराजमान हैं। नवरात्रि के दौरान इस मंदिर में श्रद्धालुओं की भारी भीड़ उमड़ती है, लेकिन आम दिनों में भी यहां भक्तों का तांता लगा रहता है। इस मंदिर की सबसे बड़ी विशेषता है यहां का अखंड दीपक, जो पिछले 110 वर्षों से लगातार जल रहा है। यह दीपक घी और तेल से जलता है और इसे बुझने नहीं दिया जाता। ऐसी मान्यता है कि जो भी भक्त सच्चे मन से इस मंदिर में मां दुर्गा के दर्शन करते हैं और अपनी मनोकामना लेकर आते हैं, उनकी सभी इच्छाएं पूर्ण होती हैं। मां दुर्गा के इस रूप को 'अखंडवासिनी माता' कहा जाता है, और इसी नाम से मंदिर भी प्रसिद्ध है।


अखंड दीपक का कामाख्या मंदिर से संबंध 


मंदिर के पुजारी विशाल तिवारी के अनुसार, इस अखंड दीपक का संबंध असम के प्रसिद्ध शक्तिपीठ "कामाख्या मंदिर" से है। 1914 में उनके दादा, आयुर्वेदाचार्य डॉ. विश्वनाथ तिवारी, कामाख्या मंदिर से यह अखंड दीपक पटना लेकर आए थे। तब से यह दीपक श्री अखंडवासिनी मंदिर में लगातार जल रहा है। यही दीपक अब श्रद्धालुओं के बीच आस्था और विश्वास का प्रतीक बन चुका है। यह पटना का पहला ऐसा मंदिर है, जहां तीन पीढ़ियों से एक ही परिवार के लोग मां की सेवा कर रहे हैं।


मंदिर में स्थापित अन्य प्रतिमाएं और आराधना विधि 


मंदिर परिसर में मां दुर्गा के साथ मां काली और माता बगलामुखी की भी प्रतिमाएं स्थापित हैं। यह मंदिर पटना के शक्तिस्थलों में से एक माना जाता है, और यहां की पूजा विधि भी विशेष रूप से शक्तिपूजा से जुड़ी हुई है। मंदिर के पुजारी के अनुसार, जो भक्त अपनी मनोकामना पूरी करवाना चाहते हैं, वे मां को सात हल्दी, नौ लाल फूल और सिंदूर अर्पित करते हैं। हर दिन यहां तीनों पहर में मां की आरती होती है, लेकिन हर मंगलवार को भक्तों की भीड़ विशेष रूप से अधिक होती है। ऐसा माना जाता है कि इस दिन मां दुर्गा के आशीर्वाद से भक्तों की सारी परेशानियां समाप्त हो जाती हैं और उनकी इच्छाएं पूरी होती हैं।


शक्तिस्थल के रूप में श्री अखंडवासिनी मंदिर 


पटना का यह मंदिर न केवल मां दुर्गा की पूजा का एक महत्वपूर्ण केंद्र है, बल्कि इसे शक्तिस्थल के रूप में भी जाना जाता है। यहां आने वाले भक्तों का विश्वास है कि मां अखंडवासिनी उनके जीवन की सभी कठिनाइयों को दूर करती हैं और उन्हें शांति व समृद्धि का आशीर्वाद देती हैं। मंदिर में निरंतर जलते अखंड दीपक को मां के अनंत आशीर्वाद और उनकी अखंड शक्ति का प्रतीक माना जाता है।


श्रद्धालुओं की आस्था का केंद्र


श्री अखंडवासिनी मंदिर में आने वाले श्रद्धालु यह मानते हैं कि मां दुर्गा यहां उनकी हर मनोकामना पूरी करती हैं। मंदिर में नवरात्रि के समय विशेष पूजा-अर्चना होती है और इस दौरान भक्तों की भारी भीड़ उमड़ती है। इसके अलावा, हर मंगलवार को विशेष आरती के दौरान बड़ी संख्या में श्रद्धालु मां के दर्शन के लिए आते हैं। मंदिर की यह अनोखी परंपरा और 110 वर्षों से लगातार जल रही अखंड ज्योत, न केवल मंदिर के धार्मिक महत्व को दर्शाती है, बल्कि यह भी बताती है कि यहां आने वाले हर भक्त का मां पर अटूट विश्वास है। मंदिर के पुजारी विशाल तिवारी बताते हैं कि यह दीपक न केवल मां की अखंड शक्ति का प्रतीक है, बल्कि भक्तों की आस्था का भी प्रमाण है। बता दें कि पटना का ये अनूठा श्री अखंडवासिनी मंदिर न केवल श्रद्धालुओं की आस्था का केंद्र है, बल्कि यह मंदिर बिहार की धार्मिक और सांस्कृतिक धरोहर का भी अभिन्न हिस्सा है। मां दुर्गा के इस मंदिर में हर दिन सैकड़ों भक्त अपनी मनोकामनाओं के साथ आते हैं और यहां की अनूठी पूजा विधि का पालन करते हुए मां से आशीर्वाद प्राप्त करते हैं।


श्री अखंडवासिनी मंदिर कैसे पहुंचे मंदिर? 


श्री अखंडवासिनी मंदिर पहुंचना काफी सरल है और यह पटना के प्रमुख धार्मिक स्थलों में से एक है। यदि आप पटना रेलवे स्टेशन या बस स्टैंड से आ रहे हैं, तो गोलघर क्षेत्र की ओर जाएं। मंदिर गोलघर के नजदीक स्थित है और यहां तक पहुंचने के लिए आप टैक्सी, ऑटो-रिक्शा, या निजी वाहन का उपयोग कर सकते हैं। गोलघर से मंदिर की दूरी केवल कुछ किलोमीटर है, और स्थानीय परिवहन या पैदल चलकर भी आसानी से पहुंचा जा सकता है। मंदिर के पास पार्किंग की सुविधा भी उपलब्ध है, जिससे आपके यात्रा की सुविधा सुनिश्चित होती है। 

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