मंदिर में घंटी क्यों बजाई जाती है

मंदिर में प्रवेश या पूजा के समय क्यों बजाई जाती है घंटी, जानें पौराणिक और वैज्ञानिक महत्व 


पौराणिक काल से सनातन धर्म में कई रीति-रिवाज चले आ रहे हैं। हमारी संस्कृति में पूजा-पाठ का अपना एक अलग और विशेष महत्व है। हमारे यहां कोई भी पूजा में कुछ ऐसी चीजें हैं जिनका उपयोग अनिवार्य होता है। जैसे- दीया, शंख और घंटी। दीये को रोशनी का प्रतीक माना जाता है और शंख को विष्णु का प्रतीक माना जाता है। 


लेकिन जिज्ञासा होती है कि घंटी क्यों? हिन्दू धर्म के प्रत्येक देवस्थान पर घंटी और बड़े-बड़े घंटे लगे होते हैं। पूजा में आरती के समय घंटी और शंख जरूर बजाए जाते हैं। मंदिर में घंटी बजाने की परंपरा काफी प्राचीन है। ऐसा माना जाता है कि इससे ईश्वर जागते हैं और आपकी प्रार्थना सुनते हैं। लेकिन क्या आपको पता है कि घंटी बजाने का सिर्फ भगवानों से ही कनेक्शन नहीं है, बल्कि इसके पीछे वैज्ञानिक पहलू और धार्मिक मान्यताएं भी हैं। धर्म ज्ञान के इस लेख में जानते हैं घंटी बजाने के कारण और महत्व।


घंटी बजाने को लेकर धार्मिक मान्यता


पुराणों में इस बात का जिक्र मिलता है कि इस सृष्टि के निर्माण के समय जो आवाज गूंजी थी, घंटी को उसका ही प्रतीक माना जाता है। हिंदू धर्म में मंदिर में जाकर देवी-देवताओं की मूर्ति या अन्य प्रतीक चिन्हों की पूजा करने का प्रावधान है। मंदिर भगवान का स्मरण करने का स्थान होता है। हर दिन पूजा करते समय मंदिर में घंटे और घंटियां बजाई जाती हैं। घंटी के बिना कोई भी पूजा अधूरी मानी जाती है। स्कंद पुराण के अनुसार घंटी से निकलने वाली ध्वनि ‘ॐ’ की ध्वनि के समान होती है। ऐसे में माना जाता है कि जब कोई मंदिर में घंटी बजाता है तो उसको ‘ॐ’ उच्चारण के समान पुण्य प्राप्त होता है। धार्मिक दृष्टि से माना जाता है कि मूर्तियों में चेतना जागृत करने के लिए घंटी बजाई जाती है। घंटी बजाने से पूजा का प्रभाव बढ़ जाता है।


घंटी से संबंधित पौराणिक कथा


कहते हैं कि आरती के दौरान अगर घंटी बजाई जाए, तो देवता जाग जाते हैं और अपने भक्त की मनोकामना जल्दी सुनते हैं। लोगों का यह भी कहना है कि घंटी बजाने से मन को शांति मिलती है और मन भक्ति में लीन रहता है।


पौराणिक कथा के अनुसार, कलयुग में भगवान साक्षात रूप में ना आकर प्रतिमा के रूप में यहां रुककर भक्तों पर अपनी दृष्टि बराबर बनाए रखते हैं। जब प्रतिमा के रूप में भगवान श्री नारायण धरती में आ रहे थे, तब उनके पार्षदों ने उनसे प्रार्थना की कि हमें भी आपकी सेवा करने के लिए साथ जाना है। तब भगवान ने सभी पार्षदों से कहा कि आप भी किसी न किसी रूप में मेरे साथ मेरी सेवा के लिए वहां उपस्थित रहेंगे, जिसमें से भगवान गरुड़ ने घंटी का रूप लिया।


घंटी बजाने का वैज्ञानिक कारण


हिन्दू धर्म की पूजा-विधि और पद्धतियां ऋषि-मुनियों की परंपरा है। यह धार्मिक के साथ-साथ वैज्ञानिक दृष्टिकोण से भी सही मानी जाती हैं। एक शोध के अनुसार, मंदिर में बजाए जाने वाली घंटी की आवाज में एक विशेष तरह की तरंगे निकलती हैं, जो मंदिर के आस-पास के वातावरण में एक अलग तरह का कंपन पैदा करती हैं। यह कंपन वायुमंडल में स्थित हानिकारक सूक्ष्म जीवों और विषाणुओं को नष्ट करता है।


इसके साथ ही मंदिर की घंटी की आवाज वातावरण से नकारात्मक ऊर्जा को नष्ट करती है। चिकित्सा विज्ञान का मानना है कि घंटी की ध्वनि व्यक्ति के मन, मस्तिष्क और शरीर को ऊर्जा प्रदान करती है। इस ऊर्जा से बुद्धि प्रखर होती है।


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