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माँ गंगा का उद्गम स्थल गौमुख है। गौमुख से निकलकर माँ गंगा गंगोत्री पहुँचती हैं जोकि उत्तराखंड के चार धामों में से एक महत्वपूर्ण धाम है।
गंगोत्री मंदिर, जो उत्तराखंड में स्थित है, हिंदू धर्म में एक महत्वपूर्ण स्थल है। यहां का मंदिर गंगा नदी के उत्पन्न स्थल के रूप में प्रसिद्ध है, जो हिंदू धर्म में पवित्र मानी जाती है। इसका महत्व है क्योंकि यहां हरिद्वार से गंगा नदी का आरम्भिक स्रोत है, जिसे गंगोत्री ग्लेशियर के रूप में जाना जाता है।
गंगोत्री मंदिर में मां गंगा को समर्पित किया गया है, जो हिंदू धर्म में पावन नदी के रूप में मानी जाती है। यहां के मंदिर में भक्त गंगा मां की पूजा-अर्चना करते हैं और उनसे आशीर्वाद मांगते हैं। गंगोत्री मंदिर को यात्रियों के धार्मिक और आध्यात्मिक आवश्यकताओं को पूरा करने का माध्यम माना जाता है।
इसके अलावा, गंगोत्री क्षेत्र को हिमालय की शांति और पवित्रता का प्रतीक माना जाता है। यहां के प्राकृतिक सौंदर्य और तीर्थ स्थलों की मौजूदगी हिंदू धर्मीय और आध्यात्मिक यात्रियों को आकर्षित करती है। इस प्रकार, गंगोत्री मंदिर हिंदू धर्म में महत्वपूर्ण स्थल के रूप में उच्च सम्मान प्राप्त करता है और धार्मिक और आध्यात्मिक उन्नति का केंद्र बनता है।
एक सागर नामक बहुत ही धार्मिक प्रवृति के राजा थे। वह अक्सर मानव कल्याण के बारे में सोचते थे और धर्म-कर्म के कार्यों में काफ़ी आस्था रखते थे जिससे उनकी प्रतिष्ठा दिन बढ़ती जा रही थी। इसी क्रम में वह एक अश्वमेघ यज्ञ का आयोजन भी करना चाहते थे ताकि खुद को अविजित घोषित कर सकें। लेकिन राजा सागर के इस धर्म-कर्म और बढ़ती प्रतिष्ठा से देवराज इंद्र को असुरक्षा का बोध होने लगा। इस बात का डर लगने लगा कि कहीं उनका सिंहासन न छीन जाए। इसलिए उन्होंने छल कपट की नीति को अपनाकर राजा सागर को भ्रमित करने का काम किया और उनके अश्वमेघ के अश्व को चुराकर कपिलमुनि के आश्रम में बांध दिया।
कुछ दिनों बाद जब अश्व नहीं मिला तो राजा सागर ने अपने साथ हज़ार पुत्रों को उस अश्व को ढूंढ कर लाने का आदेश दिया। वह लोग उस अश्व को ढूंढने के क्रम में कपिलमुनि के आश्रम में पहुंचे और अश्व को बंधा देखकर उन्होंने कपिलमुनि की तपस्या को भंग करके उन पर अश्व की चोरी का आरोप लगा दिया। जिससे कपिलमुनि क्रोधत हो उठें और अपनी क्रोधाग्नि से राजा सागर के 60 हजार पुत्रों को भस्म कर दिया।
इस श्राप से मुक्ति और उनके उद्धार के लिए राजा सागर के पौत्र अंशुमन और अंशुमन के पुत्र दिलीप ने कपिलमुनि से प्रार्थना की और उपाय बताने को कहा तो उन्होंने कहा की यदि उनकी भस्म पर गंगा जल छिड़क दिया जाए तो उनको मुक्ति मिल सकती है। अंशुमन और दिलीप ने ब्रह्मा की तपस्या कर गंगा को धरती पर लाने का बहुत ही प्रयास किया लेकिन सफलता नहीं मिली।
दिलीप के पुत्र राजा भागीरथी हुए जिन्होंने वर्षों तक तपस्या किया और काफी कठिनाइयों के बाद माँ गंगा को धरती पर लाने में कामयाब हुए। माँ गंगा का अवतरण तो निश्चित हो गया लेकिन माँ गंगा की इस तेज़ धारा से धरती पर तबाही आ जाती। इसलिए, राजा भागीरथी ने दुबारा शिव की तपस्या की और मदद की गुहार लगाई। भगवान शिव ने माँ गंगा को अपनी जटाओं से लाने का सुझाव दिया और इस तरह से माँ गंगा का स्वर्ग से धरती पर अवतरण हुआ।
गंगोत्री मंदिर, उत्तराखंड में पूजा की विधि बहुत ही सरल और प्राचीन है। यहां पर पूजा का मुख्य उद्देश्य मां गंगा की आराधना और आशीर्वाद प्राप्ति होता है।
पूजा की शुरुआत प्रातः काल में होती है, जब मंदिर के पुजारी अगरबत्ती, धूप, और दीपक जलाते हैं। फिर वे मंदिर में गंगा मां की मूर्ति के सामने ध्यान और प्रार्थना करते हैं।
पूजा के दौरान पुजारी गंगा मां के लिए जल, फूल, और भोग लेकर उन्हें अर्पित करते हैं। ध्यान और मंत्रों का उच्चारण करके वे मां गंगा को समर्पित करते हैं और उनसे आशीर्वाद मांगते हैं।
धर्मग्रंथों के अनुसार, पूजा के बाद प्रसाद बांटा जाता है, जिसे भक्त ग्रहण करते हैं। इसके बाद भक्त धन्यवाद के साथ मंदिर से वापस लौटते हैं।
इस प्रकार, गंगोत्री मंदिर में पूजा की विधि बहुत ही सादगीपूर्ण है, जिसमें भक्त श्रद्धा और भावनाओं के साथ मां गंगा की आराधना करते हैं।
गंगोत्री मंदिर, उत्तराखंड को पहुंचने के लिए कई परिवहन सुविधाएं उपलब्ध हैं। यहां कुछ मुख्य सुविधाएं हैं:
हवाई मार्ग: गंगोत्री के पास निकटतम हवाई अड्डा जोलीग्रांट है, जो दिहाटी उड़ानों को सेवा प्रदान करता है। जोलीग्रांट अड्डा उत्तराखंड के विभिन्न शहरों से संपर्क स्थापित करता है।
रेल मार्ग: गंगोत्री के निकटतम रेलवे स्टेशन देहरादून और हरिद्वार हैं। ये दोनों रेलवे स्टेशन भारतीय रेलवे की मुख्य लाइनों पर स्थित हैं और विभिन्न शहरों से संपर्क स्थापित करते हैं।
सड़क मार्ग: गंगोत्री तक पहुंचने के लिए यात्रियों को उत्तराखंड के राष्ट्रीय राजमार्ग और प्रादेशिक राजमार्गों का उपयोग करना पड़ता है। यहां तक पहुंचने के लिए स्वामी गंगोत्री मार्ग का उपयोग किया जा सकता है, जो उत्तराखंड के अनेक प्रमुख शहरों से जुड़ा हुआ है।
बस सेवा: उत्तराखंड सरकार द्वारा गंगोत्री तक नियमित और अनियमित बस सेवा की प्रावधानिका की गई है। यह यात्रियों को उत्तराखंड के विभिन्न क्षेत्रों से गंगोत्री तक आसानी से पहुंचने का विकल्प प्रदान करता है।
इन सुविधाओं का संयोजन करके यात्रियों को गंगोत्री मंदिर, उत्तराखंड तक आसानी से पहुंचने का विकल्प मिलता है।
गंगोत्री मंदिर, उत्तराखंड के निकट स्थित होने के लिए कुछ अच्छे होटल और गेस्ट हाउस की सूची निम्नलिखित है:
गंगोत्री दर्पण: यह होटल गंगोत्री मंदिर के निकट स्थित है और यात्रियों को सुविधाजनक रहने के लिए आरामदायक कमरे प्रदान करता है।
होटल गंगा किनारा: यह होटल गंगोत्री मंदिर के पास स्थित है और पर्यटकों को शांतिपूर्ण और आरामदायक रहने के लिए सुविधाएं प्रदान करता है।
चौपाती बाबा गंगोत्री: यह एक अच्छा गेस्ट हाउस है जो गंगोत्री मंदिर के पास स्थित है और यात्रियों को साफ-सुथरे कमरे और सुविधाजनक रहने की सुविधा प्रदान करता है।
गंगा निवास: यह होटल गंगोत्री मंदिर के पास स्थित है और यात्रियों को शांतिपूर्ण और सुविधाजनक माहौल में रहने का अनुभव प्रदान करता है।
गंगा कुटीर: यह एक अच्छा विकासित गेस्ट हाउस है जो गंगोत्री मंदिर के पास स्थित है और यात्रियों को सुविधाजनक और साफ-सुथरे कमरे प्रदान करता है।
होटल गंगोत्री बर्फ ड्रॉप: यह होटल गंगोत्री मंदिर से कुछ ही दूरी पर स्थित है और पर्यटकों को सुविधाजनक और आरामदायक रहने के लिए सुविधाएं प्रदान करता है।
होटल श्री दिव्यज्योति: यह होटल गंगोत्री मंदिर के पास स्थित है और यात्रियों को शांतिपूर्ण और सुविधाजनक रहने की सुविधा प्रदान करता है।
गंगा दर्शन गेस्ट हाउस: यह गेस्ट हाउस गंगोत्री मंदिर के पास स्थित है और यात्रियों को साफ-सुथरे कमरे और सुविधाजनक रहने की सुविधा प्रदान करता है।
होटल गंगोत्री इंटरनेशनल: यह होटल गंगोत्री मंदिर के पास स्थित है और यात्रियों को शांतिपूर्ण और सुविधाजनक रहने की सुविधा प्रदान करता है।
गंगोत्री गेस्ट हाउस: यह गेस्ट हाउस गंगोत्री मंदिर के आसपास स्थित है और यात्रियों को सुविधाजनक और साफ-सुथरे कमरे प्रदान करता है।
ये होटल और गेस्ट हाउस गंगोत्री मंदिर के आसपास अच्छी सुविधाओं के साथ रहने के लिए विकल्प प्रदान करते हैं।
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