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उत्तराखंड के पवित्र तीर्थस्थल ऋषिकेश से कुछ ही दूरी पर स्थित नीलकंठ महादेव मंदिर भारत के प्रमुख शिव मंदिरों में से एक है। यह मंदिर मणिकूट पर्वत पर बसा हुआ है और इसकी धार्मिक महत्ता से जुड़ी एक गहरी मान्यता है कि समुद्र मंथन के दौरान निकला विष भगवान शिव ने यहीं पर ग्रहण किया था। विष के प्रभाव से शिव का गला नीला पड़ गया, जिसके कारण उन्हें 'नीलकंठ' नाम से जाना जाने लगा।
पौराणिक कथा के अनुसार, समुद्र मंथन के समय निकले हलाहल विष को देवता और असुर ग्रहण नहीं कर सकते थे। तब भगवान शिव ने इस विष को पीकर सृष्टि को बचाया था। विष पीने के बाद माता पार्वती ने शिव के गले को दबा दिया, ताकि विष उनके शरीर में न फैल सके। इस कारण शिव का गला नीला हो गया और तब से उन्हें नीलकंठ कहा जाने लगा।
इस घटना के बाद, भगवान शिव को ठंडक की आवश्यकता थी, और वह मणिकूट पर्वत पर पहुंचे, जहां उन्हें शीतल वायु प्राप्त हुई। इस स्थान पर शिव 60,000 वर्षों तक ध्यानमग्न रहे। लोक मन्यत्याओं के अनुसार नीलकंठ महादेव मंदिर उसी स्थान पर स्थित है, जहां भगवान शिव ने विष ग्रहण किया और तपस्या की।
नीलकंठ महादेव मंदिर उत्तर भारत के प्रमुख शिव मंदिरों में से एक है और सालभर यहां भक्तों की भारी भीड़ रहती है। खासकर सावन के महीने में, मंदिर में भक्तों की संख्या और भी बढ़ जाती है। यहाँ के झरने में स्नान करके भक्त मंदिर में प्रवेश करते हैं और भगवान शिव के दर्शन करते हैं। हालांकि, इसके लिए दुर्गम पर रोमांचक चढ़ाई करनी पड़ती है. नीलकंठ महादेव मंदिर तक पहुंचने के लिए पैदल चढ़ाई लगभग 11 किलोमीटर की होती है, जो स्वर्गाश्रम रामझूला से शुरू होती है। अगर आप ऋषिकेश से पैदल जाते हैं, तो यह दूरी लगभग 15 किलोमीटर की है। हालांकि, जो भक्त दुर्गम चढ़ाई करने में असमर्थ हैं उनके लिए अलग रास्ते से सवारी गाड़ियों की व्यवस्था भी होती है.
नीलकंठ महादेव मंदिर के पास स्थित मां भुवनेश्वरी देवी का मंदिर भी पौराणिक और धार्मिक दृष्टि से अत्यधिक महत्वपूर्ण है। यह मंदिर माता पार्वती को समर्पित है और यहां माता पार्वती ने भगवान शिव के पास बैठकर 60,000 वर्षों तक तपस्या की थी। नीलकंठ मंदिर के पुजारी जगदीश आचार्य ने भक्त वत्सल के प्रतिनिधि को बताया कि जब भगवान शिव ने मणिकूट पर्वत पर तपस्या की तब माता पार्वती ने भी उसी स्थान पर तप किया। इस स्थान को धार्मिक मान्यता के अनुसार माता पार्वती का तपस्या स्थल माना जाता है और उनके तप के बाद इस स्थान पर भुवनेश्वरी देवी का मंदिर स्थापित किया गया। बहुत कम लोग इस मंदिर के बारे में जानते हैं, लेकिन इसका पौराणिक महत्व असीमित है।
नीलकंठ महादेव मंदिर, ऋषिकेश से लगभग 25 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यहां पहुंचने के लिए तीन मुख्य सड़क मार्ग हैं। बैराज या ब्रह्मपुरी मार्ग से दूरी लगभग 35 किलोमीटर है। रामझूला टैक्सी स्टैंड से यह दूरी 23 किलोमीटर है, जबकि स्वर्गाश्रम रामझूला से पैदल रास्ता 11 किलोमीटर लंबा है। ऋषिकेश से पैदल चलने वाले श्रद्धालु 15 किलोमीटर की यात्रा कर मंदिर तक पहुंच सकते हैं। लक्ष्मणझूला से भी टैक्सी की सुविधा उपलब्ध है, जिससे निजी वाहन से भी आसानी से मंदिर तक पहुंचा जा सकता है।
यह मंदिर अपने धार्मिक महत्व के साथ-साथ प्राकृतिक सुंदरता के लिए भी प्रसिद्ध है। यहां से हिमालय की सुंदरता, शीतल वायु और पवित्र गंगा का दृश्य भक्तों को अद्वितीय शांति का अनुभव कराता है। इस मंदिर की यात्रा न केवल एक धार्मिक अनुष्ठान है, बल्कि यह भक्तों के लिए मानसिक शांति और आत्मिक उन्नति का अवसर भी है। महाशिवरात्रि और सावन के अलावा सालों भर इस पवित्र स्थान की यात्रा करने वाले भक्तों के लिए यह एक ऐसा अनुभव होता है, जो उनके जीवन को आध्यात्मिक उन्नति, रोमांच और असीमित ऊर्जा से भर देता है।
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