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चंडिका मंदिर, बागेश्वर (Chandika Temple, Bageshwar)

चंडिका मंदिर, बागेश्वर (Chandika Temple, Bageshwar)

17वीं सदी में चंद राजाओं ने करवाया चंडिका मंदिर का निर्माण, चंपावत से लाई गई प्रतिमा 


चंडिका देवी मंदिर, हिंदू देवी चंडिका माई को समर्पित है जिन्हें काली के नाम से जाना जाता है। यह पवित्र तीर्थ स्थल उत्तराखंड के बागेश्वर जिले से लगभग आधा किलोमीटर की दूरी पर स्थित हैं। नगर के भीलेश्वर पहाड़ी पर स्थित माता चंडिका को बागेश्वर की नगर देवी का दर्जा प्राप्त है। माता चंडिका को चंद शासकों के कुल परोहित पांडेय वंशजों ने चंपावत से यहां लाकर स्थापित किया था। वर्ष भर जिले के भक्तजन माता के दरबार में आकर पूजा-अर्चना करते हैं। 


मंदिर का इतिहास


यह मंदिर वाघ नाथ मंदिर के ठीक सामने स्थित है। माना जाता है कि वर्ष 1698 से 1701 के बीच चंद राजाओं के शासनकाल में उनके कुल पुरोहित रहे चंपावत के पंडित श्रीराम पांडेय चंडिका देवी और गोल्ज्यू को लेकर बागेश्वर आए थे। ताम्रपत्र और शिलालेख में अंकित जानकारी के अनुसार भीलेश्वर पर्वत पर माता चंडिका का छोटा मंदिर बनाया गया। जिसके कुछ दूरी पर गोल्ज्यू की स्थापना की गई। उन्हें अब चौरासी के नाम से जाना जाता है। पांडेय वंशजों ने मंदिर के समीप चौरासी गांव को अपनी स्थली बनाया और यहीं बस गए। जिसके बाद से पांडेय वंशजों की पीढ़ी चंडिका मंदिर के पुजारी के रुप में मां की सेवा कर रही है। 


मंदिर का नवीनीकरण


कालांतर में समय बदला और बागेश्वर का भी विकास होता गया। पांडेय वंशजों के अलावा नगर और जिले के अन्य लोगों की आस्था भी चंडिका देवी में बढ़ने लगी। क्षेत्रवासियों ने महिषासुर मर्दिनी के नाम से विख्यात चंडिका मंदिर की पूजा नगर देवी के रुप में शुरु कर दी। साल 1985 में मंदिर के नवीनीकरण को लेकर विचार विमर्श शुरू हुआ। नगरवासियों ने मंदिर में निर्माण कार्य कराने के लिए कमेटी के गठन का विचार किया।


मंदिर के त्योहार


बागेश्वर में चंडिका मंदिर लोगों के जीवन में एक धार्मिक महत्व रखता है। इस मंदिर में नवरात्रि के दौरान दूर-दूर से बड़ी संख्या में श्रद्धालु आते हैं। स्थानीय लोग चंडिका देवी मंदिर का सम्मान करते हैं और दैनिक पूजा करते हैं। मंदिर में समय-समय पर नौबत पूजा और भागवत कथा का आयोजन किया जाता है। पिछले कुछ सालों से मंदिर में शादी-विवाह भी संपन्न कराए जा रहे हैं। 


चंडिका मंदिर कैसे पहुंचे


हवाई मार्ग - यहां का निकटतम हवाई अड्डा देहरादून का एयरपोर्ट है। यहां से आप बस या टैक्सी के द्वारा मंदिर तक यात्रा कर सकते हैं।

रेल मार्ग -  यहां का निकटतम रेलवे स्टेशन काठगोदाम रेलवे स्टेशन है, जो बागेश्वर से लगभग 154 किमी दूर है। यहां से आपको स्थानीय बसों या टैक्सी द्वारा मंदिर तक जाना होगा।

सड़क मार्ग - ये प्रतिष्ठित मंदिर बागेश्वर से केवल 2 किलोमीटर की दूरी पर है। पर्यटक और श्रद्धालु नैनीताल के रास्ते बागेश्वर पहुंच सकते हैं।


मंदिर का समय -  चंडिका मंदिर पूरे सप्ताह खुला रहता है और दर्शन का समय सुबह 5 बजे से रात 9 बजे तक हैं। हर दिन सुबह 5:30 बजे मंगला आरती और रात 8:30 बजे संध्या आरती होती है।


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अथ वेदोक्तं रात्रिसूक्तम् (Ath Vedokta Ratri Suktam)

वेदोक्तम् रात्रि सूक्तम् यानी वेद में वर्णन आने वाले इस रात्रि सूक्त का पाठ कवच, अर्गला और कीलक के बाद किया जाता है। इसके बाद तन्त्रोक्त रात्रि सूक्त और देव्यथर्वशीर्षम् स्तोत्रम् का पाठ किया जाता है।

अथ तन्त्रोक्तं रात्रिसूक्तम् (Ath Tantroktam Ratri Suktam)

तन्त्रोक्तम् रात्रि सूक्तम् यानी तंत्र से युक्त रात्रि सूक्त का पाठ कवच, अर्गला, कीलक और वेदोक्त रात्रि सूक्त के बाद किया जाता है।

श्रीदेव्यथर्वशीर्षम् (Sri Devi Atharvashirsha)

देव्यथर्वशीर्षम् जिसे देवी अथर्वशीर्ष के नाम से भी जाना जाता है, चण्डी पाठ से पहले पाठ किए जाने वाले छह महत्वपूर्ण स्तोत्र का हिस्सा है।

अथ दुर्गाद्वात्रिंशन्नाममाला (Ath Durgadwatrishanmala)

श्री दुर्गा द्वात्रिंशत नाम माला" देवी दुर्गा को समर्पित बत्तीस नामों की एक माला है। यह बहुत ही प्रभावशाली स्तुति है। मनुष्य सदा किसी न किसी भय के अधीन रहता है।

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