श्री श्री कालिका महारानी मंदिर, भारत के झारखंड राज्य के बोकारो में चीरा चास में एक हिंदू मंदिर है। ये मंदिर आधे एकड़ में फैला हुआ है और देवी काली को समर्पित है। कालिका विहार की छोटी बस्ती का नाम इस मंदिर के नाम पर रखा गया है।
मंदिर का निर्माण जुलाई, 2010 में शुरू हुआ था। पूरे ढ़ाचे को पूरा करने में 3 साल से भी कम समय लगा। मंदिर को 14 जुलाई, 2010 को जनता के लिए खोल दिया गया था। मंदिर एक दो मंजिला संरचना है जिसमें एक लंबा स्तूप है जो 90 फीट से अधिक ऊंचा है। 50 फीट से ज्यादा चौड़ाई में, 160 फीट से अधिक लंबा है। मंदिर एक अद्वितीय डिजाइन पर आधारित है, जिसमें पांच पंखुड़ियों वाले कमल के फूल की नकल है। हर पंखुड़ी में मंदिर का प्रवेश द्वार है। मंदिर को एक पंचकोणीय योजना पर डिजाइन किया गया है और इसकी अधिरचना में पांच नोड है।
मुख्य मंदिर में देवी काली की मूर्तियां हैं। काली का मुख्य मंदिर पहली मंजिल पर स्थित है, जबकि तहखाने में एक बड़ा प्रार्थना और यज्ञ कक्ष है। काली की मूर्ति को सीता के अवतार में बहुत सुंदरता से दर्शाया गया है, प्रवेश द्वार पर हनुमान और भगवान राम का एक छोटा सा मंदिर है।
कैसे पहुंचे
हवाई मार्ग - यहां का निकटतम हवाई अड्डा रांची एयरपोर्ट है जो बोकारो से लगभग 130 किमी दूर है। रांची एयरपोर्ट से बोकारो तक टैक्सी या बस के द्वारा पहुंचा जा सकता है।
रेल मार्ग - यहां का निकटतम रेलवे स्टेशन बोकारो स्टील सिटी रेलवे स्टेशन है जो मंदिर से लगभग 20 से 25 किमी दूर है। यहां से टैक्सी या बस के द्वारा पहुंचा जा सकता है।
सड़क मार्ग - बोकारो शहर से कांड्रा की ओर से सड़क मार्ग द्वारा यात्रा की जा सकती है। श्री श्री कालिका महारानी मंदिर बोकारो के कांड्रा क्षेत्र में उपलब्ध है। बोकारो शहर के अंदर और आसपास टैक्सी और ऑटो रिक्शा सेवाएं उपलब्ध है।
मंदिर का समय - 24 घंटे खुला रहता है।
इतनी कथा सुनकर महाराज युधिष्ठिर बोले हे भगवन् ! आपके श्रीमुख से इन पवित्र कथाओं को सुन मैं कृतकृत्य हो गया।
इतनी कथा सुन महाराज युधिष्ठिर ने कहा- भगवन्! आपको कोटिशः धन्यवाद है जो आपने हमें ऐसी सर्वोत्तम व्रत की कथा सुनाई।
भगवान् कृष्ण ने कहा- हे पाण्डुनन्दन ! अब मैं तुम्हें बरूथिनी एकादशी व्रत का माहात्म्य सुनाता हूँ सुनिये।
भगवान् कृष्ण के मुखरबिन्द से इतनी कथा सुनकर पाण्डुनन्दन महाराज युधिष्ठिर ने उनसे कहा - हे भगवन् ! आपकी अमृतमय वाणी से इस कथा को सुना परन्तु हृदय की जिज्ञासा नष्ट होने के बजाय और भी प्रबल हो गई है।