हमारे ऋषि-मुनियों ने सनातन धर्म और संस्कृति को आगे बढ़ाने में बहुत बड़ा योगदान दिया है। उन्होंने अपने तपोबल से स्वयं ईश्वर को प्रसन्न कर उन्हें अवतरित होने पर बाध्य कर दिया था। एक ऐसे ही तपोबल और सतीत्व के कारण हिंदू धर्म में भगवान दत्तात्रेय विष्णु के छठे अवतार के रूप में जन्में थे। उन्हें त्रिदेव ब्रह्मा, विष्णु और महेश का एक स्वरूप भी कहा गया है। वह आजन्म ब्रह्मचारी और सर्वव्यापी थे। तो आइए जानते हैं भगवान दत्तात्रेय अवतार की कहानी भक्त वत्सल पर।
पौराणिक कथा कुछ ऐसी है कि एक बार माता लक्ष्मी, पार्वती व सरस्वती को अपने पतिव्रता होने का अहंकार हो गया। भगवान ने इन तीनों के अहंकार को खत्म करने के लिए अपनी माया का सहारा लिया।
भगवान के आदेशानुसार एक दिन नारद जी ने तीनों देवियों के सामने ऋषि अत्रि की पत्नी देवी अनुसुइया के सतीत्व और पतिव्रता नारी होने की खूब प्रशंसा की। यहां तक कि नारदजी ने अनुसुइया को संसार में रहने वाली सबसे बड़ी पतिव्रता स्त्री कहा। यह बात तीनों देवियों को सहन नहीं हुई और उन्होंने बह्मा, विष्णु, महेश से अनुसूइया की परीक्षा लेने की बात कही।
पहले तो त्रिदेव ने मना कर दिया लेकिन जब तीनों देवियों ने हठ की तो ब्रह्मा, विष्णु, महेश साधु रुप में अत्रि मुनि के आश्रम पहुंचे। इस समय महर्षि अत्रि आश्रम में नहीं थे। तीनों ने देवी अनुसूइया से भिक्षा मांगी। लेकिन जब माता भिक्षा देने आई तो साधु रूप में त्रिदेव ने कहा कि हम यह दान तभी स्वीकार करेंगे जब आप यह भिक्षा हमें निर्वस्त्र होकर देंगी।
अनुसुइया माता के लिए यह धर्म संकट की घड़ी थी, क्योंकि भिक्षा न देने से द्वार पर आए भिक्षुक का अपमान होता और भिक्षा देने पर माता के सतीत्व पर प्रश्न चिन्ह लग जाता। ऐसे में माता ने भगवान से प्रार्थना की और कहा कि यदि मेरा पतिव्रत धर्म सत्य है तो ये तीनों साधु 6-6 मास के छोटे बच्चे बन जाए।
परम सती के प्रताप से त्रिदेव उसी समय छोटे बालकों के रूप में आ गए और माता ने उन्हें अपनी गोद में उठाकर स्तनपान कराया और फिर पालने में झुलाने लगीं। इधर जब तीनों देव अपने अपने धाम नहीं पहुंचे तो तीनों देवियां चिंतित हो गई। तब नारद जी ने देवियों को असलियत बताई। तीनों देवियां अब अहंकार त्याग कर अनुसूइया माता के पास आईं और क्षमा प्रार्थना की। इसके बाद देवी अनुसूइया ने त्रिदेव को फिर से उनके असली रूप में ला दिया।
तब प्रसन्न होकर त्रिदेव ने माता को वरदान दिया कि हम तीनों आपके पुत्र रूप में जन्म लेंगे। ब्रह्मा ने चंद्रमा, शंकर ने दुर्वासा और विष्णु ने दत्तात्रेय भगवान के रूप में जन्म लिया। मार्गशीर्ष माह की पूर्णिमा के दिन भगवान दत्तात्रेय का जन्म हुआ। इसलिए इस दिन को दत्तात्रेय जयंती के रूप में मनाया जाता है।
भगवान दत्तात्रेय आजीवन ब्रह्मचारी रहे लेकिन वे कभी अकेले नहीं थे। परिवार के रूप में उनके साथ सदैव उनके पीछे एक गाय, चार कुत्ते देखे जाते हैं। भगवान दत्तात्रेय एक विशाल उदुंबर (गूलर) के वृक्ष के नीचे खड़ी मुद्रा में रहते हैं। भगवान की गाय कामधेनु का स्वरूप है। चार कुत्ते चार वेदों का प्रतिनिधित्व करते हैं। गूलर का वृक्ष दत्त के पूज्यनीय स्वरुप की सरलता और विराट होने का प्रतीक है।
भगवान दत्तात्रेय के चार अवतार हुए। श्रीपाद श्रीवल्लभ, श्री नृसिंहसरस्वती, मणिकप्रभु और श्री स्वामी समर्थ। इनके अतिरिक्त श्री वासुदेवानंद सरस्वती (टेम्बेस्वामी), जैन नेमिनाथ को दत्तात्रेय भगवान के अंशावतार माना गया है।
चैत्र नवरात्रि हिंदू धर्म के पावन त्योहारों में से एक है। यह त्योहार साल में दो बार मनाया जाता है - चैत्र नवरात्रि और शारदीय नवरात्रि। इस दौरान नौ दिनों तक मां दुर्गा को प्रसन्न करने के लिए उनके नौ स्वरूपों की विधि-विधान से पूजा की जाती है। पूजा के दौरान कुछ नियमों का भी पालन करना होता है।
ग्रेगोरियन कैलेंडर की तरह एक हिंदू कैलेंडर भी होता है। इस कैलेंडर में भी 12 महीने होते हैं, जिसकी शुरुआत चैत्र के साथ होती है। यह महीना धार्मिक और अध्यात्मिक दृष्टि से बेहद महत्वपूर्ण माना जाता है। इस माह में चैत्र नवरात्रि, राम नवमी और हनुमान जयंती जैसे प्रमुख त्योहार आते हैं।
चैत्र माह की शुरुआत 15 मार्च से हो रही है। यह हिंदू पंचांग का पहला महीना है, जिसका धार्मिक और आध्यात्मिक रूप से बहुत महत्व है। इस मास में की गई पूजा, व्रत और दान-पुण्य का प्रभाव संपूर्ण वर्ष पर पड़ता है। इसके अलावा मान्यता है कि इस माह में कुछ विशेष उपाय करने से जीवन में सुख-समृद्धि, शांति और सफलता प्राप्त होती है।
भालचंद्र संकष्टी चतुर्थी भगवान गणेश को समर्पित एक महत्वपूर्ण व्रत है, जिसे चैत्र माह में मनाया जाता है। इस दिन गणपति बप्पा की पूजा करने से भक्तों को सभी संकटों से मुक्ति मिलती है और जीवन में सुख-समृद्धि का आगमन होता है। इस वर्ष भालचंद्र संकष्टी चतुर्थी 17 मार्च 2025, सोमवार को मनाई जाएगी।