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हिंदू पंचांग के अनुसार, मार्गशीर्ष मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को काल भैरव जयंती मनाई जाती है। इस दिन तंत्र-मंत्र के देवता काल भैरव की पूजा की जाती है, जो भगवान शिव के रौद्र रूप हैं। मान्यता है कि काल भैरव की पूजा करने से अकाल मृत्यु, रोग, दोष आदि का कोई भय नहीं सताता है। काल भैरव जयंती के दिन उनकी पूजा करना और मंत्रों का जाप करना विशेष लाभदायक होता है।
शिव पुराण में काल भैरव को भगवान शंकर का ही रूप कहा गया है। साथ ही कहा गया है कि रुद्र ही भैरव हैं। उनके भय से तो यमराज तक कांपते हैं। ये काल से भी परे होने के कारण काल भैरव कहलाते हैं। स्कंद पुराण में काल भैरव की उत्पत्ति की कथा बताई गई है। काल भैरव जयंती के दिन उनकी पूजा करना और उनके मंत्रों का जाप करना विशेष लाभदायक होता है। ऐसे में आईये जानते है काशी के कोतवाल और शिव के रौद्र रूप भगवान काल भैरव की उत्पत्ति से जुड़ी पौराणिक कथा।
शिव के भैरव रूप में प्रकट होने की अद्भुत घटना है। एक प्रचलित कथा के अनुसार यह कहा जाता है कि एक बार सुमेरु पर्वत पर देवताओं ने ब्रह्मा जी से प्रश्न किया कि, परमपिता इस चराचर जगत में अविनाशी तत्व कौन है जिनका आदि-अंत किसी को भी पता न हो ऐसे देव के बारे में बताने का हमें कष्ट करें। इस पर ब्रह्माजी ने कहा कि इस जगत में अविनाशी तत्व तो केवल मैं ही हूं क्योंकि यह सृष्टि मेरे द्वारा ही सृजित हुई है। मेरे बिना संसार की कल्पना भी नहीं की जा सकती। जब देवताओं ने यही प्रश्न विष्णुजी से किया तो उन्होंने कहा कि मैं इस चराचर जगत का भरण-पोषण करता हूं,अतः अविनाशी तत्व तो मैं ही हूं। ऐसे में त्रिदेव यानी ब्रह्मा, विष्णु और भगवान शंकर में सर्वश्रेष्ठ को लेकर बहस होने लगी। हर कोई स्वयं को दूसरे से महान और श्रेष्ठ बताने लगा। जब तीनों में से कोई इस बात का निर्णय नहीं कर पाया कि सर्वश्रेष्ठ कौन है? तो इसे सत्यता की कसौटी पर परखने के लिए चारों वेदों को बुलाया गया। चारों वेदों ने एक ही स्वर में कहा कि जिनके भीतर चराचर जगत, भूत, भविष्य और वर्तमान समाया हुआ है, जिसका कोई आदि-अंत नहीं है,जो अजन्मा है,जो जीवन-मरण सुख-दुःख से परे है,देवता-दानव जिनका समान रूप से पूजन करते हैं,वे अविनाशी तो भगवान रूद्र ही हैं।
वेदों के द्वारा शिव के बारे में इस तरह की वाणी सुनकर ब्रह्मा जी का पांचवे मुख से भगवान शंकर के लिए अपमानजनक शब्द निकलने लगे। इससे भगवान शंकर भी अत्यंत क्रोधित हो गए और उसी समय एक दिव्य ज्योति के रूप में भगवान रूद्र प्रकट हुए, ब्रह्मा जी ने कहा कि हे रूद्र! तुम मेरे ही शरीर से पैदा हुए हो अधिक रुदन करने के कारण मैंने ही तुम्हारा नाम 'रूद्र' रखा है अतः तुम मेरी सेवा में आ जाओ, ब्रह्मा के इस आचरण पर शिव को भयानक क्रोध आया और उन्होंने भैरव नामक पुरुष को उत्पन्न किया और कहा कि तुम ब्रह्म पर शासन करो। उस दिव्य शक्ति संपन्न भैरव ने अपने बाएं हाथ की सबसे छोटी अंगुली के नाखून से शिव के प्रति अपमानजनक शब्द कहने वाले ब्रह्मा के पांचवे सिर को ही काट दिया जिसके परिणामस्वरूप इन्हें ब्रह्महत्या का पाप लगा। शिव के कहने पर भैरव ने काशी प्रस्थान किया जहां उन्हें ब्रह्महत्या से मुक्ति मिली। रूद्र ने इन्हें काशी का कोतवाल नियुक्त किया। आज भी ये यहां काशी के कोतवाल के रूप में पूजे जाते हैं। इनके दर्शन किए बिना विश्वनाथ के दर्शन अधूरे रहते हैं।
भगवान काल भैरव का महत्व हिंदू धर्म में बहुत अधिक है। वे भगवान शिव के रौद्र रूप हैं और तंत्र मंत्र के देवता माने जाते हैं। उनकी पूजा करने से व्यक्ति को कई लाभ होते हैं-
1. अकाल मृत्यु से रक्षा: काल भैरव की पूजा करने से अकाल मृत्यु का भय नहीं रहता है।
2. रोग और दोष से मुक्ति: उनकी पूजा करने से रोग और दोष से मुक्ति मिलती है।
3. सुरक्षा: काल भैरव अपने भक्तों की सुरक्षा करते हैं और बुरे कर्म करने वालों को दंड देते हैं।
4. मनोकामना पूर्ति: उनकी पूजा करने से मनोकामनाएं पूरी होती हैं।
5. आध्यात्मिक विकास: काल भैरव की पूजा करने से आध्यात्मिक विकास होता है और व्यक्ति को आत्मज्ञान प्राप्त होता है।
6. शनि और राहु के प्रकोप से रक्षा: काल भैरव की पूजा करने से शनि और राहु के प्रकोप से रक्षा होती है।
7. दुर्भाग्य दूर करना: उनकी पूजा करने से दुर्भाग्य दूर होता है और सौभाग्य में वृद्धि होती है।
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