विवाह पंचमी की कथा क्या है

विवाह पंचमी पर विवाहित जोड़े एक साथ न करें श्री राम और सीता की पूजा, जानिए क्या है इस पर्व की कथा 


सनातन धर्म में विवाह पंचमी का दिन सबसे पवित्र माना गया है। क्योंकि यह वही दिन है, जब माता सीता और प्रभु श्री राम शादी के बंधन में बंधे थे। पंचांग के अनुसार, विवाह पंचमी का त्योहार हर साल मार्गशीर्ष माह के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि के दिन मनाई जाती है। इस पावन दिन पर पूरे विधि-विधान के अयोध्या नरेश श्री राम और जनक दुलारी माता सीता की पूजा करने का विधान है। साथ ही उनके विवाह प्रसंग को भी सुनने का महत्व है। ऐसा कहा जाता है कि अगर किसी जातक के विवाह में कोई परेशानी आ रही है, तो इस दिन माता सीता और भगवान राम की पूजा जरूर करें, लेकिन विवाहित जोड़ों को इस बात का विशेष ध्यान रखना चाहिए कि इस दिन एक साथ राम-जानकी की पूजा न करें। इस दिन कोई भी मांगलिक कार्य करना शुभ नहीं माना जाता है। 


अब ऐसे में अगर कोई व्रत रख रहा है, तो इस दिन राम-जानकी की व्रत कथा जरूर सुनना चाहिए। आइए इस लेख में ज्योतिषाचार्य त्रिपाठी जी से विस्तार से जानते हैं।



यहां पढ़ें विवाह पंचमी की कथा


पौराणिक कथा के अनुसार, भगवान श्री हरि विष्णु प्रभु श्री राम का अवतार लेकर राजा दशरथ के घर पैदा हुए थे। माता सीता राजा जनक की पुत्री थी। ऐसी मान्यता है कि माता सीता का जन्म धरती से हुआ था। एक बार जब राजा जनक हल चला रहे थे। उस समय उन्हें एक नन्हीं बच्ची मिली। जिसे उन्होंने अपनी गोद में लिया और उसका नाम सीता रखा था। इसलिए सीता जी को जनक नंदिनी के नाम से भी जाना जाता है।


एक समय की बात है, जब सीता ने भगवान शिव का धनुष उठा लिया था। ऐसा जिसे परशुराम जी के अलावा और कोई नहीं उठा सकता था। तभी राजा जनक ने यह निर्णय लिया कि जो भी भगवान शिव का यह धनुष उठा पाएगा। उसका विवाह सीता से होगा।


उसी समय सीता के स्वयंवर के लिए हर जगह घोषणाएं कर दी गई। स्वयंवर में भगवान श्री राम और लक्ष्मण भी आए थे। वहां और भी कई राजकुमार आए हुए थे। भगवान शिव का धनुष किसी भी राजकुमार से नहीं उठ पाया। राजा जनक हताश और उदास हो गए और उन्होंने दुखी मन से कहा कि क्या यहां कोई भी पुत्री के योग्य नहीं है।


तब महर्षि वशिष्ठ ने भगवान राम को भगवान शिव के धनुष की प्रत्यंचा चढ़ाने की आज्ञा दी। गुरु की आज्ञा का पालन करते हुए प्रभु श्रीराम शिव जी के धनुष की प्रत्यंचा चढ़ाने लगे और तभी धनुष टूट गया। इस प्रकार से माता सीता और प्रभु श्री राम का विवाह हुआ।



विवाह पंचमी के दिन कथा पढ़ने से मिलते हैं ये लाभ


विवाह पंचमी के दिन भगवान राम और सीता की कथा पढ़ने से वैवाहिक जीवन में सुख और समृद्धि आती है। ऐसी मान्यता है कि राम-जानकी के विवाह का प्रसंग पढ़ने से वैवाहिक जीवन में आने वाली सभी बाधाओं से छुटकारा मिल सकता है। साथ ही अगर अविवाहित यह कथा पढ़ते हैं तो उन्हें मनचाहा जीवनसाथी का आशीर्वाद भी मिलता है। इस बात का विशेष ध्यान रखें कि अगर आप इस प्रसंग का पाठ कर रहे हैं, तो विवाह पंचमी के दिन सुबह के समय इसका पाठ करना शुभ माना जाता है। 


........................................................................................................
करती हूँ तुम्हारा व्रत मैं - माँ संतोषी (Karti Hu Tumhara Vrat Main)

करती हूँ तुम्हारा व्रत मैं,
स्वीकार करो माँ,

मैं उस दरबार का सेवक हूँ जिस दर की अमर कहानी है (Main Us Darbaar Ka Sevak Hu)

मैं उस दरबार का सेवक हूँ,
जिस दर की अमर कहानी है,

प्रदोष व्रत पर करें ये उपाय

हिंदू धर्म में प्रदोष व्रत का अत्यंत महत्व है। यह व्रत भगवान शिव और माता पार्वती की आराधना के लिए एक विशेष दिन माना जाता है, जो हर महीने दोनों पक्षों की त्रयोदशी तिथि को मनाया जाता है।

चैत्र और शारदीय नवरात्रि में अंतर

सनातन परंपरा में नवरात्रि का पर्व वर्ष में दो बार मनाया जाता है। पहला चैत्र के महीने में, जिससे हिंदू नव वर्ष की भी शुरुआत होती है, जिसे चैत्र नवरात्रि कहा जाता है। दूसरा, आश्विन माह में आता है, जिसे शारदीय नवरात्रि कहते हैं।

डिसक्लेमर

'इस लेख में दी गई जानकारी/सामग्री/गणना की प्रामाणिकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। सूचना के विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/धार्मिक मान्यताओं/धर्मग्रंथों से संकलित करके यह सूचना आप तक प्रेषित की गई हैं। हमारा उद्देश्य सिर्फ सूचना पहुंचाना है, पाठक या उपयोगकर्ता इसे सिर्फ सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त इसके किसी भी तरह से उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता या पाठक की ही होगी।

यह भी जाने