पंचकूला में स्थित चंडी देवी मंदिर के नाम पर चंडीगढ़ शहर का नाम पड़ा। ये मंदिर शक्ति की देवी, चंडी को समर्पित है। मंदिर शिवालिक पहाड़ियों की सुंदर पृष्ठभूमि के बीच स्थित है। यहां के प्रमुख पूजनीय चंडी देवी है लेकिन मंदिर में राधा कृष्ण, हनुमान, शिव और राम भगवान की मूर्तियां भी स्थापित है। यहां मनोकामना मांगने वालों की सारी इच्छाएं पूरी होती हैं।
चंडी देवी मंदिर की इतिहास 5000 साल पुराना है। कहा जाता है कि एक साधु जंगल में तप किया करते थे। यहां उनको एक मूर्ति मिली जो मां दुर्गा की थी, वह महिषासुर का वध करके उसके ऊपर खड़ी थी। मूर्ति देखकर साधु ने मां भगवती की पूजा-अर्चना शुरु कर दी। उन्होंने घास, मिट्टी और पत्थर से यहां चंडी माता का एक छोटा सा मंदिर बना दिया। इसके बाद आसपास के लोग मंदिर में माथा टेकने लगे। उनकी मनोकामना पूरी होने लगी। कहा जाता है कि 12 साल के वनवास के दौरान पांडव घूमते हुए यहां आये थे और चंडी माता का मंदिर देखा तो अर्जुन ने पेड़ की शाखा पर बैठकर मां की तपस्या की। कहा जाता है कि उनकी तपस्या से खुश होकर माता चंडी ने उनको तेजस्वी तलवार व जीत का वरदान दिया था।
मंदिर की प्रबंधक माता निर्मला देवी ने बताया कि, पूर्वज साधु महात्माओं की अब 62वीं पीढ़ी चल रही है। इस समय उनकी बेटी महंत बाबा राजेश्वरी जी गद्दी पर विराजमान है। यह जगह पहले मनीमाजरा रियासत में आती थी। 15 वीं पीढ़ी के मनीमाजरा के राजा भगवान सिंह ने मंदिर के ऊपर पहाड़ी पर एक पत्थर का किला बनवा दिया, जिसे गढ़ कहा जाने लगा। इसके ऊपर ही एक चंडी गांव बस गया। निर्मला देवी ने बताया कि उनके पिता सूरत गिरि महाराज के मंदिर की पूजा के दौरान 1953 में भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद और पंजाब के गवर्नर सीपीएन सिंह मंदिर में दर्शन करने आए थे। मंदिर का इतिहास और महत्व जानने के बाद डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने कहा कि चंडी माता के नाम पर शहर बसाया जाएगा। उन्होंने चंडीमंदिर के नाम पर स्थानीय थाना, रेलवे स्टेशन, और गांव का नाम रख दिया। इसके बाद चंडी माता के नाम पर चंडीगढ़ शहर बसाया गया।
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