लुधियाना का नीलकंठ मंदिर भगवान शिव को समर्पित है। पक्खोवाल रोड सिंगला एनक्लेव स्थित श्री नीलकंठ महादेव मंदिर में अष्टधातु निर्मित शिव परिवार की मूर्ति स्थापित है। मंदिर में भक्तों की एक बड़ी संख्या हर साल दर्शन करने पहुंचती है। ये मंदिर श्रद्धालुओं की आस्था का केंद्र बना हुआ हैं।मंदिर के चारों ओर रंग-बिरंगी रोशनी लगाई गई है। यहां आने वाले श्रद्धालुओं के लिए विशेष लंगर का भी प्रबंध किया जाता है। शिवरात्रि पर श्रद्धालुओं की भारी भीड़ मंदिर प्रांगण में रहती है।
श्री नीलकंठ महादेव मंदिर में उत्तरी भारत का दूसरा अष्टधातु निर्मित मंदिर है। मंदिर बनाने की शुरुआत वैसे तो साल 2006 में आरंभ हो गई थी। इसका विधिवत शुभारंभ 15 फरवरी 2009 में मौनी बाबा द्वारा भगवान शिव परिवार की मूर्ति स्थापित करके किया। मंदिर के प्रमुख सेवक तरसेम सिंगला के अनुसार, सावन महीने और शिवरात्रि के पावन अवसर पर राज्य भर से श्रद्धालु अष्टधातु निर्मित शिव परिवार की मूर्ति के दर्शनों के लिए आते है। 4 गज में बना मंदिर श्री नीलकंठ महादेव की जिम्मेदारी 11 सदस्यीय कमेटी संभालती है। विशेष अवसरों पर यहां विशेष अनुष्ठान भी किये जाते है।
नीलकंठ महादेव मंदिर में जहां अष्ट धातु निर्मित शिव परिवार की मूर्ति स्थापित है। मंदिर के अंदर विशेष रूप से रुद्राक्ष के पांच पेड़ है। इनमें रुद्राक्ष की माला बनती है। इन्हें लेने पूरे भारत से लोग आते हैं। मंदिर में बजरंग बली का हवन कुंड व मंदिर भी बनाया गया है। धार्मिक के अलावा सामाजिक कार्यों में भी मंदिर कमेटी आयोजन करती है। खासकर जरूरतमंदों के लिए राशन समारोह, मेडिकल कैंप आदि का आयोजन किया जाता है।
हवाई मार्ग- मंदिर जाने के लिए सबसे नजदीकी हवाई अड्डे चंडीगढ़ और अमृतसर है। यहां से आप मंदिर तक के लिए टैक्सी किराए पर ले सकते है।
रेल मार्ग- दिल्ली जैसे शहरों से लुधियाना के लिए नियमित रेल सेवाएं हैं। यहां से आप टैक्सी के द्वारा मंदिर आसानी से पहुंच सकते है।
सड़क मार्ग- लुधियाना पंजाब का सबसे बड़ा शहर है जो अन्य प्रमुख शहरों से जुड़ा हुआ है और यह अपनी अच्छी सड़क परिवहन प्रणाली के लिए जाना जाता है जहां नियमित रूप से बस सेवा उपलब्ध है।
विजय का मतलब होता है जीत। अष्ट लक्ष्मी का एक स्वरूप विजय लक्ष्मी, विजया लक्ष्मी या जया लक्ष्मी का भी है जो जीत का ही प्रतीक माना गया है।
सनातन धर्म में धन की देवी मां महालक्ष्मी सभी सुखों को प्रदान करने वाली मानी जाती हैं। आज के इस आधुनिक दौर में भी हिन्दू धर्म मे माता महालक्ष्मी की पूजा अत्यंत श्रद्धा के साथ की जाती है।
दिपावली पर लक्ष्मी पूजा का सबसे अधिक महत्व है। माता के अष्ट लक्ष्मी स्वरूपों की विधि पूर्वक पूजन करने से माता की कृपा प्राप्त होती है।
आदि लक्ष्मी, मां लक्ष्मी का पहला स्वरूप हैं। मान्यता है कि आदि लक्ष्मी की पूजा करने से जीवन में सुख-समृद्धि प्राप्त होती है तथा मृत्यु के बाद मोक्ष का मार्ग प्रशस्त होता है। आदि लक्ष्मी को महालक्ष्मी भी कहा जाता है।