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मुक्तेश्वर मंदिर शाहपुर कांदी डैम रोड पर स्थित पठानकोट के पास शाहपुर कांदी डेम रोड पर स्थित है। पौराणिक कथाओं की मानें तो यह गुफाएं महाभारत काल की है, जहां पांडवों ने अज्ञातवास के समय कुछ वक्त गुजारा था। मुक्तेश्वर महादेव मंदिर को प्राचीन पांडव गुफा और छोटा हरिद्वार भी कहा जाता है। मंदिर के आसपास कुछ गुफाओं को भी देखा जा सकता है। तीसरी गुफा के ऊपरी क्षेत्र में चक्र का प्रतीक है, जिसके नीचे पांडव ध्यान किया करते थे।
मुक्तेश्वर महादेव मंदिर की स्थापना पांडवों ने द्वापर युग में अपने निर्वासन के 12वें साल के दौरान की थी। अपनी यात्रा के दौरान पांडव देवी मां चिंतपूर्णी की प्रार्थना करने के बाद दसूहा, जिला होशियारपुर होते हुए मुक्तेश्वर धाम पहुंचे थे। उन्होंने अपने प्रवास के लिए मुक्तेश्वर धाम के शांतिपूर्ण स्थान को चुना। ऐसा माना जाता है कि वे यहां 6 महीने तक रहे थे। यहां रहने के लिए 5 गुफाएं बनाकर श्रद्धापूर्वक शिवलिंग की स्थापना करने के बाद उन्होंने भविष्य में संभावित युद्ध में जीत के लिए भगवान शिव से वरदान मांगा। उन्होंने एक पवित्र अग्नि और एक रसोई भी स्थापित की। इस रसोई को अब द्रौपदी की रसोई के रूप में जाना जाता है। अज्ञातवास की अवधि शुरु होने से पहले पांडवों ने रावी नदी पार की और विराट राज्य में प्रवेश किया जिसका केंद्र आज जम्मू और कश्मीर में अखनूर माना जाता है।
पहाड़ी के शिखर पर स्थित मुक्तेश्वर मंदिर में सफेद संगमरमर से बनी शिवलिंग है जिसके ऊपर तांबे की योनि बनी हुई है। धाम के शिवलिंग में खड़ी और आड़ी रेखाएं दिखाई देती है, जो रक्त शिराओं का प्रतिनिधित्व करती है और ऊर्जा व शक्ति का प्रतीक है। ये शिवलिंग पूरे विश्व में अपनी तरह का अनूठा है। मंदिर के प्रमुख प्रांगण में भगवान गणेश, ब्रह्मा, विष्णु, हनुमान और पार्वती की प्रतिमाएं स्थापित हैं।
धाम में प्रतिवर्ष महाशिवरात्रि, चैत्र चतुर्दशी, बैसाखी और सोमवती अमावस्या के मौके पर मेला लगता है। ऐसे पवित्र अवसरों पर महादेव का स्नान और प्रार्थना करना हरिद्वार की यात्रा के समान पवित्र माना जाता है। यहां के जल में दिवंगत लोगों की अस्थियां भी देवताओं को अर्पित की जाती है। ताकि वे निर्माण की स्थिति प्राप्त कर सकें। बैसाखी के मौके पर पूर्वजों की मुक्ति के लिए पिंडदान भी यहां किया जाता है। शिवरात्रि पर यहां हर साल तीन दिवसीय मेला लगता है। शिव और शक्ति के अर्धनारीश्वर स्वरूप श्री संगम के दर्शन से मानव जीवन में आने वाले सभी पारिवारिक और मानसिक दुखों का अंत हो जाता है।
हवाई मार्ग- यहां पहुंचने के लिए सबसे सुविधाजनक तरीका है कि आप एयरपोर्ट के द्वारा पहुंचे। यहां का सबसे नजदीकी हवाई अड्डा अमृतसर और चंडीगढ़, जहां से आप टैक्सी, बस या रेल सेवा का इस्तेमाल करके पठानकोट तक पहुंच सकते हैं।
रेल मार्ग - पठानकोट रेलवे स्टेशन उत्तर भारत के प्रमुख शहरों से अच्छी तरह से जुड़ा हुआ हैं। वहां से मंदिर तक ऑटो रिक्शा, रिक्शा या टैक्सी से जा सकते हैं।
सड़क मार्ग- अगर आप खुद के वाहन से जा रहे है तो आप अमृतसर, चंडीगढ़ या दिल्ली के रास्ते ले सकते हैं और फिर पठानकोट के रास्ते जाकर मंदिर तक पहुंच सकते हैं।
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