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अन्नप्राशन संस्कार पूजा विधि

अन्नप्राशन संस्कार पूजा विधि

Annaprashan Sanskar Puja Vidhi: अन्नप्राशन संस्कार के दौरान पहली बार बच्चे को खिलाया जाता है अन्न, जानें पूजा विधि


हिंदू धर्म के 16 प्रमुख संस्कार है। इन्हीं में से एक संस्कार है अन्नप्राशन संस्कार है। यह संस्कार बच्चे के जीवन में एक महत्वपूर्ण घटना होती है। दरअसल इस संस्कार के दौरान बच्चे को पहली बार ठोस आहार खिलाया जाता है।आमतौर पर, यह संस्कार 6 महीने की आयु पूरी करने के बाद किया जाता है। इस दौरान विशेष मंत्रों के साथ शिशु को पहली बार चावल या खीर खिलाई जाती है। यह संस्कार इसलिए भी महत्वपूर्ण है, क्योंकि ये बच्चे के पोषण और विकास की नई शुरुआत का प्रतीक है।इसके माध्यम से माता-पिता और परिवारजन शिशु के सुखद और समृद्ध भविष्य के लिए प्रार्थना करते हैं। चलिए आपको इस संस्कार की प्रक्रिया के बारे में लेख के जरिए विस्तार से बताते हैं।


अन्नप्राशन संस्कार की पूजा विधि और प्रक्रिया


  • आम तौर पर शिशु के जन्म के छठे महीने में अन्नप्राशन करने का नियम है, लेकिन इसे ज्योतिषीय गणना और शुभ मुहूर्त के अनुसार तय किया जाता है।
  • संस्कार की शुरुआत भगवान गणेश की पूजा फिर माता अन्नपूर्णा और कुलदेवता की पूजा  के साथ होती है।
  • इसके बाद वैदिक मंत्रों और हवन के माध्यम से वातावरण को शुद्ध किया जाता है। हवन के बाद  , सबसे पहले पिता, फिर माता शिशु को पहली बार खीर, चावल या अन्य हल्का भोजन खिलाते हैं।
  • कई परिवारों में परंपरा होती है कि बच्चे को सोने की चम्मच से खीर चटाई जाती है, जिससे उसे शुद्धता और शक्ति मिलती है।
  • इस प्रक्रिया के बाद परिवार के बड़े-बुजुर्ग शिशु को आशीर्वाद देते हैं।अंत में ब्राह्मणों को भोजन एवं दक्षिणा देकर पुण्य अर्जित किया जाता है।


अन्नप्राशन संस्कार के लाभ 


अन्नप्राशन संस्कार बच्चे के शारीरिक विकास और मानसिक विकास को बढ़ावा देता है। इस प्रक्रिया से बच्चे के पाचन तंत्र को मजबूत बना जाता है।वहीं  इस प्रक्रिया के बाद वो ठोस आहार की ओर अपने कदम बढ़ाता है। जिससे उसकी रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है। वहीं इस अवसर पर रिश्तेदार और परिवारजन इकट्ठे होते है, जिससे बच्चे में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है।


अन्नप्राशन संस्कार का महत्व 


यह संस्कार शिशु के जीवन का एक अहम पड़ाव होता है, जिसमें वो ठोस आहार की ओर बढ़ता है। इससे बच्चे के अन्न ग्रहण करने की क्षमता बढ़ती है।  साथ ही संस्कार बच्चे की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है। वहीं धार्मिक मान्यता के अनुसार, यह संस्कार शिशु को माता अन्नपूर्णा (अन्न की देवी) का आशीर्वाद दिलाने और उसके स्वास्थ्य की रक्षा के लिए किया जाता है।  वहीं वैज्ञानिक दृष्टि से अन्नप्राशन संस्कार बच्चे के शारीरिक और मानसिक विकास को बढ़ाने में मददगार होता है। 


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