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इस साल आदि शंकराचार्य जयंती 2 मई को मनाई जाएगी। यह दिन भारत के एक महान दार्शनिक, संत और धर्म सुधारक आदि गुरु शंकराचार्य के जन्मदिवस के रूप में मनाया जाता है। आदि शंकराचार्य ने 8वीं शताब्दी में अद्वैत वेदांत के सिद्धांत को प्रचारित कर धार्मिक, दार्शनिक और सामाजिक चेतना में क्रांतिकारी बदलाव लाए थे। साथ ही, उन्होंने केवल 32 वर्ष में न केवल पूरे भारत की यात्रा की, बल्कि चार कोनों में चार प्रमुख मठों की स्थापना कर सनातन धर्म की नींव को और भी मजबूत बनाया था।
ज्योतिर्मठ जिसे जोशीमठ भी कहा जाता है, उत्तराखंड के बद्रीनाथ धाम के समीप स्थित है। इसकी स्थापना आदि शंकराचार्य ने उत्तर भारत में वैदिक संस्कृति और अद्वैत वेदांत के प्रचार के लिए की थी। यह मठ अथर्ववेद से जुड़ा है और यहां संन्यासियों को ‘गिरि’ और ‘सागर’ जैसे उपनाम दिए जाते हैं।
शारदा मठ भारत के पश्चिमी दिशा में स्थित द्वारका में है। द्वारका भगवान श्रीकृष्ण की नगरी मानी जाती है, और इस मठ की स्थापना आदि शंकराचार्य ने सामवेद की परंपरा के प्रचार हेतु की थी। यहां संन्यासियों के नाम के साथ ‘तीर्थ’ और ‘आश्रम’ उपनाम जोड़े जाते हैं। शारदा मठ का नाम देवी शारदा ‘सरस्वती’ पर रखा गया है।
ओडिशा के पुरी में भगवान जगन्नाथ मंदिर के करीब गोवर्धन मठ स्थित है। यह मठ ऋग्वेद से जुड़ा हुआ है और यहां के संन्यासियों को ‘अरण्य’ उपनाम से जाना जाता है। आदि शंकराचार्य ने इस मठ की स्थापना पूर्व भारत में अद्वैत वेदांत और सनातन परंपरा के प्रचार के लिए की थी।
श्रृंगेरी मठ कर्नाटक के चिकमंगलूर जिले में तुंगभद्रा नदी के किनारे स्थित है। यह आदि शंकराचार्य द्वारा स्थापित पहला मठ माना जाता है, जो यजुर्वेद से जुड़ा है और इसके संन्यासियों को ‘सरस्वती’ और ‘भारती’ उपनाम दिए जाते हैं। श्रृंगेरी मठ आज भी लाखों श्रद्धालुओं और विद्यार्थियों को धर्म, ज्ञान और साधना का मार्ग दिखाता है।
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