छठ महापर्व का तीसरा दिन संध्या अर्घ्य के लिए जाना जाता है। इसमें व्रती महिलाएं पवित्र नदी में या किसी कुंड में डुबकी लगाती हैं और सूर्य और छठी मैया की पूजा करती है। यह अर्घ्य संध्या काल के दौरान सूर्य को दिया जाता है। और इसमें कुछ पवित्र मंत्रों का जाप करके सूर्य का भक्ति भाव से पूजन किया जाता है। छठ पूजा के तीसरे दिन महिलाएं परिवार और संतान की दीर्घायु के लिए भगवान सूर्य से प्रार्थना करती हैं। सूर्यास्त के साथ लोकगीत गाए जाते हैं और प्रसाद के रुप में पारंपरिक व्यंजन सूर्य देव को चढ़ाए जाते हैं।
संध्या अर्घ्य का दिन छठ पूजा का सबसे पवित्र दिन होता है। इस दिन व्रती महिलाएं सूर्य देव को अर्घ्य देकर अपनी मनोकामनाएं पूरी होने की कामना करती हैं। माना जाता है कि इस दिन सूर्य देव अपनी कृपा बरसाते हैं और सभी मनोकामनाएं पूरी करते हैं।
संध्या अर्घ्य के दिन भोग में मुख्य रूप से फल, ठेकुआ, दूध और जल शामिल होता है। फल जैसे केला, अंगूर, सेब आदि को भोग में शामिल किया जाता है। ठेकुआ एक विशेष प्रकार का मिठाई है जो छठ पूजा के लिए बनाया जाता है। संध्या अर्घ्य के दिन परिवार के सभी सदस्य एक साथ मिलकर पूजा करते हैं जो परिवार की एकता का प्रतीक है।
कलावा, जिसे रक्षा सूत्र भी कहा जाता है, एक पवित्र धागा है जो विभिन्न धार्मिक अनुष्ठानों में उपयोग किया जाता है। इसे आमतौर पर सूती धागे से बनाया जाता है और इसे लाल, पीला या अन्य शुभ रंगों में रंगा जाता है।
पंचाग्नि अखाड़ा शैव संप्रदाय के सबसे प्राचीन अखाड़ों में से एक है। इसकी स्थापना 1136 ईस्वी में हुई थी। वर्तमान में इसका मुख्य केंद्र वाराणसी में स्थित है।
महानिर्वाणी अखाड़ा भारत के प्राचीन और प्रतिष्ठित अखाड़ों में से एक है, जिसका संबंध शैव संप्रदाय से है। अखाड़े का मुख्य केंद्र उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में है। वहीं इसके आश्रम ओंकारेश्वर, काशी, त्र्यंबकेश्वर, कुरुक्षेत्र, उज्जैन व उदयपुर में मौजूद है।
महाकुंभ की शुरुआत में अब 1 महीने का समय बचा है। लगभग सभी अखाड़े प्रयागराज भी पहुंच चुके हैं। लेकिन इन दिनों शैव संप्रदाय का एक अखाड़ा चर्चा में बना हुआ है।