साल 2024 में 31 अक्टूबर के दिन दिवाली का पर्व पूरे देशभर में धूमधाम और उत्साह के साथ मनाया जाएगा। कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की अमावस्या तिथि के दिन दिवाली का पावन पर्व मनाया जाता है। इस दिन माता लक्ष्मी और भगवान गणेश जी की विशेष रूप से पूजा की जाती है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि दिवाली मनाने को लेकर कई पौराणिक कथाएं प्रचलित हैं। आइए इस लेख में जानते हैं कि दिवाली के दिन कौन सी कथा पढ़ी जाती है। साथ ही जानेंगे इस दिन से जुड़ी पौराणिक कथाओं के बारे में विस्तार से बात करते हैं…
किसी नगर में एक साहूकार रहता था। उसकी एक बेटी थी। वह रोजाना घर के सामने लगे पीपल के पेड़ पर जल चढ़ाती थी। उस पीपल में लक्ष्मी जी का वास था। एक दिन पीपल के पेड़ से लक्ष्मी माता प्रकट हो गई। मां लक्ष्मी साहूकार की बेटी से बोलीं, 'मैं तुझसे बहुत प्रसन्न हूं। इसलिए तुझे सहेली बनाना चाहती हूं।' साहूकार की बेटी बोली, 'क्षमा कीजिए, मैं अपने माता-पिता से पूछकर ही बताऊंगी।' उसने घर आकर अपने माता-पिता से सारी बातें कहीं और उनकी आज्ञा से लक्ष्मी जी का प्रस्ताव स्वीकार कर लिया। इस तरह वे दोनों सहेलियां बन गई। लक्ष्मी जी उससे बहुत प्रेम करती थीं।
एक दिन लक्ष्मी जी ने उसे भोजन के लिए बुलावा दिया। जब साहूकार की बेटी भोजन करने के लिए पहुंची तो लक्ष्मी जी ने उसे सोने-चांदी के बर्तनों में खाना खिलाया। सोने की चौकी पर बिठाया और उसे बहुत कीमती रेशमी कपड़े ओढ़ने-पहनने के लिए दिए। इसके बाद लक्ष्मी जी ने कहा कि कुछ दिन बाद मैं तुम्हारे यहां आऊंगी। साहूकार की बेटी ने हां कर दी और घर चली आई। उसने जब सारी बातें माता-पिता को बताई तो वे बहुत खुश हुए। लेकिन बेटी कुछ सोचकर उदास होकर बैठ गई। जब साहूकार ने इसका कारण पूछा तो उसकी बेटी बोली, 'लक्ष्मी जी का वैभव बहुत बड़ा है। मैं उन्हें कैसे संतुष्ट कर सकूंगी।'
यह सुनकर पिता ने कहा कि घर की जमीन को अच्छी तरह लीपना और अपनी पूरी श्रद्धा से रूखा-सूखा जैसा भी भोजन बने। उसे बहुत प्रेम से लक्ष्मी जी को खिला देना। पिता बात पूरी ही करने वाले थे कि एक चील कहीं से उड़ती हुई आई और बेशकीमती नौलखा हार साहूकार के आंगन में गिराकर चली गई। यह देखकर साहूकार की बेटी खुश हो गई। उसने पिता की बात मानी और घर को सुंदर तरीके के सजाया। जमीन की सफाई-लिपाई की। चील ने जो हार उनके घर में गिराया था। उसे बेचकर लक्ष्मी जी के लिए अच्छे भोजन का इंतजाम किया। उन्होंने सोने की चौकी और रेशमी दुशाला खरीदा। जब लक्ष्मी जी घर आई तो साहूकार की बेटी ने उन्हें सोने की चौकी पर बैठने को कहा। इस पर लक्ष्मी जी ने कहा, 'इस पर तो राजा-रानी बैठते हैं।' इतना कहकर वह साफ जमीन पर ही आसन बिछाकर बैठ गई और बहुत प्रेम से भोजन किया। वह साहूकार के परिवार के आदर-सत्कार से बहुत खुश हुई और उनका घर सुख-संपत्ति से भर गई।
हे लक्ष्मी माता! जिस तरह आपने साहूकार के परिवार पर अपनी कृपा बरसाई, उसी तरह सबके घरों को सुख-संपत्ति से भर देना।
आत्मा के कारक सूर्य देव हर महीने अपना राशि परिवर्तन करते हैं। सूर्य देव के राशि परिवर्तन करने की तिथि पर संक्रांति मनाई जाती है। इस शुभ अवसर पर गंगा समेत पवित्र नदियों में स्नान-ध्यान किया जाता है।
सनातन धर्म में कुंभ संक्रांति का विशेष महत्व है। इस दिन गंगा स्नान और दान करने की परंपरा है। क्योंकि, इस दिन पवित्र नदियों में स्नान के बाद दान-पुण्य करने से सूर्य देव की विशेष कृपा भी प्राप्त होती है।
हिंदू धर्म में एकादशी व्रत का विशेष महत्व है। एकादशी तिथि भगवान विष्णु को समर्पित होती है और इस दिन भगवान विष्णु संग मां लक्ष्मी की पूजा की जाती है।
माघ पूर्णिमा के बाद फाल्गुन माह की शुरुआत होती है। हिंदू पंचांग के अनुसार यह हिंदू वर्ष का अंतिम महीना होता है। इसके उपरांत हिंदू नववर्ष शुरू होगा। फाल्गुन के महीने को फागुन का महीना भी कहा जाता है।