देव दीपावली, जिसे कार्तिक पूर्णिमा के रूप में भी जाना जाता है, भगवान शिव द्वारा त्रिपुरासुर राक्षस के संहार की याद में मनाया जाता है। यह पर्व देवताओं की मुक्ति का प्रतीक है, जब भगवान शिव ने उन्हें त्रिपुरासुर के आतंक से मुक्त कराया था। इसके बाद देवताओं ने बैकुंठ लोक में दीप जलाकर खुशियां मनाई थी, जिसे देव दीपावली के रूप में मनाया जाने लगा।
देव दीपावली का सनातन धर्म में विशेष महत्व है, और इस दिन भगवान विष्णु की पूजा-अर्चना करने का विधान है। इस दिन नदी में स्नान करने से व्यक्ति को पापों से मुक्ति मिलती है और मृत्यु के बाद मोक्ष की प्राप्ति होती है। देव दीपावली पर सत्यनारायण व्रत रखने का भी विधान है। विशेष रूप से, काशी, हरिद्वार और प्रयागराज में देव दीपावली को धूमधाम से मनाया जाता है, जहां दीपदान करना विशेष महत्वपूर्ण है। इस साल यानी 2024 में देव दीपावली का त्योहार 15 नवंबर को मनाया जा रहा है। क्योंकि यह दीपों का त्योहार ऐसे में ये जानना जरूरी है कि इस दिन कितने दीपक जलाना शुभ होता है और घर में किस स्थान पर और कब दीपक लगाने चाहिए। ऐसे में आईये इन सवालों के जवाब आपको बताते हैं।
देव दिवाली के दिन दीपक जलाने का विशेष महत्व है। इस दिन दीपक प्रदोष काल में जलाकर दीपदान करने से सौभाग्य में वृद्धि होती है।
मान्यताओं के अनुसार देव दीपावली के दिन दीपदान करने से व्यक्ति को शुभ फलों की प्राप्ति होती है। ऐसे में घर के अलावा और भी कई स्थान जहां दीपक जलाना बेहद की शुभ माना जाता है, जैसे-
देव दीपावली के दिन दीपदान करना अत्यधिक शुभ माना जाता है, जिससे आपको भगवान विष्णु और मां लक्ष्मी की कृपा प्राप्त होती है। पद्म पुराण के एक अध्याय में बताया गया है कि उत्तराखंड में स्वयं महादेव ने पुत्र कार्तिकेय को दीपदान के महत्व के बारे में बताया था।
देव दीपावली के दिन 11, 21, 51 या 108 दीपक जलाना विशेष शुभ होता है।
लाभ:
- अकाल मृत्यु का भय दूर होता है।
- घर में नकारात्मक ऊर्जा का प्रभाव दूर होता है।
- भगवान विष्णु और मां लक्ष्मी की कृपा प्राप्त होती है।
छठ पूजा में खरना का दिन बहुत महत्व रखता है। इस दिन के बाद से व्रत करने वाले 36 घंटे तक बिना जल के उपवास रखते हैं। खरना के दिन व्रती नए मिट्टी के चूल्हे पर गुड़, दूध, और साठी के चावल से प्रसाद तैयार करते हैं।
छठ पूजा के दूसरे दिन को खरना कहा जाता है। इसी दिन से व्रतधारी प्रसाद ग्रहण कर 36 घंटे के निर्जला व्रत का आरंभ करते हैं। इस दिन खरना विशेष महत्व रखता है और इसे एकांत या बंद कमरे में संपन्न किया जाता है।
छठ महापर्व का दूसरा दिन खरना कहलाता है। जिसे लोहंडा भी कहा जाता है। इस दिन का उद्देश्य मानसिक और शारीरिक शुद्धिकरण है।
छठ पूजा बिहार, झारखंड और पूर्वी उत्तर प्रदेश में प्रमुखता से मनाया जाने वाला पर्व है। जिसमें सूर्य देव और छठी मैया की पूजा की जाती है।