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इस दिन देवता खेलते हैं होली

इस दिन देवता खेलते हैं होली

चैत्र के महीने में इस दिन देवता खेलेंगे धरती पर होली, जानें क्या है इसके पीछे की कहानी


रंग पंचमी हिंदू धर्म में एक विशेष महत्व रखती है। यह त्योहार चैत्र माह के कृष्ण पक्ष की पंचमी तिथि को मनाया जाता है। भक्त वत्सल इस लेख के माध्यम से आपको बता रहे हैं कि कैसे इस दिन भगवान श्रीकृष्ण और राधा रानी ने पहली बार होली खेली थी। इसके अलावा, इस पर्व का आध्यात्मिक और सांस्कृतिक दोनों ही दृष्टिकोण से विशेष महत्व है।

पौराणिक महत्व 


रंग पंचमी को लेकर कई धार्मिक मान्यताएं प्रचलित हैं। इस दिन देवी-देवताओं को गुलाल अर्पित करने की परंपरा है। मान्यता है कि जब भक्त श्रद्धा से गुलाल उड़ाते हैं, तो वह देवताओं तक पहुंचता है और वे प्रसन्न होकर अपनी कृपा बरसाते हैं। यह त्योहार विशेष रूप से मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में बड़े हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है।

रंग पंचमी पर देवी-देवताओं की कृपा 


  • इस दिन को आध्यात्मिक दृष्टि से बहुत शुभ माना जाता है। ऐसा माना जाता है कि:
  • इस दिन देवी-देवता धरती पर आकर भक्तों के साथ होली खेलते हैं।
  • गुलाल और अबीर उड़ाने से नकारात्मक ऊर्जा समाप्त होती है और सकारात्मकता बढ़ती है।
  • इस दिन विधिपूर्वक पूजा करने से सुख-समृद्धि में वृद्धि होती है।
  • रंग पंचमी के दिन माता लक्ष्मी और भगवान श्रीकृष्ण की पूजा करने से विशेष लाभ प्राप्त होता है।

रंग पंचमी की पूजा विधि और शुभ मुहूर्त 


रंग पंचमी पर पूजा करने के लिए सुबह जल्दी उठकर स्नान करना चाहिए और स्वच्छ वस्त्र धारण करने चाहिए। फिर भगवान श्रीकृष्ण, राधा रानी और माता लक्ष्मी की प्रतिमा के समक्ष दीपक जलाएं और गुलाल अर्पित करें।

  • शुभ तिथि: 19 मार्च 2025
  • पंचमी तिथि आरंभ: 18 मार्च रात 10:09 बजे
  • पंचमी तिथि समाप्त: 20 मार्च रात 12:37 बजे
  • शुभ मंत्र: "ॐ श्रीं श्रीये नमः" का जाप करें।

रंग पंचमी का यह पर्व आध्यात्मिक उन्नति, भक्ति और प्रेम का प्रतीक है। इसे मनाने से जीवन में सुख, शांति और समृद्धि आती है।

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कल्पवास के आध्यात्मिक और वैज्ञानिक लाभ

प्रयागराज में कुंभ की शुरुआत होने में एक महीने से भी कम समय रह गया है। साधु-संतों के अखाड़े प्रयागराज पहुंच चुके हैं। वहीं लोग बड़ी संख्या में संगम पर स्नान करने आने वाले हैं। लेकिन इसके साथ ऐसे भी कुछ श्रद्धालु होंगे, जो कल्पवास के लिए प्रयाग पहुंचेंगे।

राजा जनक ने बिहार के सिमरिया में किया था कल्पवास

कल्पवास की परंपरा हिंदू संस्कृति का अहम हिस्सा है। इस पंरपरा के मुताबिक व्यक्ति को एक महीने तक गंगा किनारे रहकर अनुशासित जीवनशैली का पालन करना होता है। यह एक तरह का कठिन तप माना गया है।

कुंभ में कल्पवास कितने दिनों का होता है

कुंभ मेले की शुरुआत 13 जनवरी से प्रयागराज में होने जा रही है। इस दौरान लाखों श्रद्धालु स्नान करने के लिए पहुंचने वाले हैं। इस आयोजन का मुख्य आकर्षण कल्पवास होगा। यह एक धार्मिक अनुष्ठान है, जो माघ मास में किया जाता है।

रंगोली क्यों बनाई जाती है?

सनातन धर्म में रंगों को हमेशा से पवित्र माना गया है। रंगोली, न सिर्फ हमारे घरों को सजाती है बल्कि वैज्ञानिक रूप से भी हमारे मन को शांत और खुशहाल बनाती है।

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