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जन्माष्टमी 2026 में कब है?

जन्माष्टमी 2026 में कब है?

Janmashtami 2026: सितंबर महीने में इस दिन मनाई जाएगी जन्माष्टमी, भगवान श्री कृष्ण के जन्म से जुड़ा है पर्व

कृष्ण जन्माष्टमी श्रीकृष्ण के अवतरण की रात्रि का पावन उत्सव है। भाद्रपद कृष्ण पक्ष की अष्टमी को जब रोहिणी नक्षत्र का संयोग बनता है, तब निशीथा काल में भगवान श्रीकृष्ण का जन्म हुआ था। यही कारण है कि जन्माष्टमी की पूजा मध्यरात्रि के इस विशेष समय में ही की जाती है। वर्ष 2026 में जन्माष्टमी शुक्रवार चार सितंबर को पड़ेगी और दही हांडी का पर्व पांच सितंबर को रहेगा। भक्तजन उपवास, निशीथा पूजन और पारण के वैदिक नियमों का पालन करते हुए श्रीकृष्ण की उपासना करते हैं। स्मार्त और वैष्णव दोनों परंपराओं में तिथि निर्धारण के भेद भी प्रचलित हैं जिनके आधार पर कई बार जन्माष्टमी दो दिनों में मनाई जाती है।

कृष्ण जन्माष्टमी 2026 की तिथि 

वर्ष 2026 में अष्टमी तिथि चार सितंबर को प्रातः दो बजकर पच्चीस मिनट से प्रारम्भ होकर पांच सितंबर को रात्रि बारह बजकर तेरह मिनट तक रहेगी। रोहिणी नक्षत्र चार सितंबर को रात्रि बारह बजकर उनतीस मिनट से रात ग्यारह बजकर चार मिनट तक रहेगा। निशीथा पूजन समय चार सितंबर की रात्रि ग्यारह बजकर सत्तावन मिनट से पांच सितंबर की बारह बजकर तैतालीस मिनट तक है। यही वह समय है जब भक्तजन श्री बालकृष्ण की षोडशोपचार विधि से पूजा करते हैं। चन्द्रोदय रात्रि ग्यारह बजकर तेईस मिनट पर होगा। पांच सितंबर को दही हांडी पर्व परम्परानुसार उत्साह के साथ मनाया जाएगा।

जन्माष्टमी व्रत और पारण के नियम

जन्माष्टमी का व्रत एकादशी उपवास के समान कठोर माना गया है। व्रत वाले दिन अन्न का पूर्ण त्याग करके केवल फलाहार किया जाता है। उपवास रखने वाले श्रद्धालु अगले दिन सूर्योदय के बाद रोहिणी नक्षत्र और अष्टमी तिथि समाप्त होने पर पारण करते हैं। यदि दोनों में से कोई एक तिथि सूर्यास्त तक समाप्त न हो तो पारण केवल उनके समाप्त होने के बाद ही किया जाता है। धर्मसिन्धु के अनुसार जो लोग दो दिन का उपवास करने में समर्थ न हों वे अष्टमी के अगले दिन सूर्योदय के बाद पारण कर सकते हैं। यही कारण है कि कई बार जन्माष्टमी का व्रत दो पूर्ण दिनों तक भी चल सकता है।

जन्माष्टमी की पूजा विधि 

जन्माष्टमी पर सायंकाल से ही भक्तजन उपवास करतें हैं। रात्रि में निशीथा काल आने पर बालकृष्ण का पूजन षोडशोपचार विधि से किया जाता है। पहले देवकी जी का प्रसूति गृह तैयार किया जाता है और उस पर शुभ कलश तथा बालकृष्ण की प्रतिमा या चित्र स्थापित किये जाते हैं। इसके बाद देवकी, वासुदेव, बलदेव, नन्द, यशोदा और लक्ष्मी जी का क्रमशः पूजन होता है। रात्रि बारह बजे श्रीकृष्ण के अवतरण का क्षण मनाया जाता है। व्रत में अन्न का प्रयोग वर्जित है और कुट्टू, सिंघाड़ा तथा फलाहार से उपवास सम्पन्न किया जाता है।

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