जितिया जिसे जीवित्पुत्रिका और जिउतिया व्रत भी कहा जाता है, यह त्यौहार पूर्वी उत्तर प्रदेश और बिहार-झारखंड में विशेष रूप से मनाया जाता है। इस त्यौहार में माताएँ अपनी संतान की सलामती के लिए उपवास रखती हैं। पंचांग के अनुसार, यह व्रत आश्विन मास की कृष्ण पक्ष के अष्टमी तिथि को रखा जाता है, और एक दिन पहले इसमें नहाय-खाय किया जाता है। साथ ही, जितिया की पूजा में निर्जला व्रत, कथा-पूजा और पारण शामिल होते हैं।
इस वर्ष जितिया मुहूर्त को लेकर काफी भ्रम की स्थिति है, लेकिन पंचांग के अनुसार यह व्रत 13 सितंबर से शुरू होगा और 15 सितंबर को समाप्त होगा।
निर्जला व्रत से एक दिन पहले नहाय-खाय करके स्वच्छता रखें फिर अगले दिन सुबह सूर्य उदय के बाद अष्टमी तिथि में स्नान करके साफ-सुथरे वस्त्र धारण करें।
गायत्री मंत्र का जाप कर देवी-देवताओं का पूजन करें, कुछ जगहों पर मिट्टी या लकड़ी की मूर्ति का प्रयोग भी किया जाता है। इस पूजा में पूर्वजों को सरसों का तेल भी चढ़ाया जाता है और फिर बच्चों की अच्छा स्वास्थ्य के लिए उन्हें लगाया जाता है।
पूजा सुबह के समय घर के आँगन या छत पर, यानी खुले स्थान पर करनी चाहिए। फिर शाम में सभी व्रती कथा सुनते हैं, जो जितिया व्रत के महत्व को बताती है।