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जितिया व्रत की कथा

जितिया व्रत की कथा

Jivitputrika Vrat Katha: क्या कथा है जीवित्पुत्रिका व्रत की, यहां जानें गरुड़ देवता और महाभारत की दो कथाएं  

हिंदू धर्म में संतान की लंबी आयु और सौभाग्य के लिए रखे जाने वाले व्रतों में एक जितिया व्रत है, जिसे जीवित्पुत्रिका व्रत के नाम से भी जाना जाता है। यह व्रत मुख्य रूप से बिहार, झारखंड, पूर्वी उत्तर प्रदेश और नेपाल के कुछ हिस्सों में हर साल आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाया जाता है, जो इस साल 14 सितंबर को मनाया जाएगा। यह एक निर्जला व्रत है जिसमें व्रती सुबह पूजा करने के बाद रात में महिलाओं के साथ व्रत की कथा सुनते हैं। 

राजा जीमूतवाहन को मिला था गरुड़ देव का वरदान 

एक समय की बात है जब एक गांव में जीमूतवाहन नाम के एक व्यक्ति रहते थे, जो साँपों के राजा माने जाते थे। एक दिन वह जंगल में घूम रहे थे और उन्होंने एक नागिन को बेटे के दुःख में रोते हुए सुना। पूछने के बाद नागिन ने उन्हें बताया कि हर दिन गरुड़ देवता भोजन के लिए एक नाग का आहार करते हैं और आज उसके पुत्र की बारी है। पुत्र के वियोग से व्याकुल नागिन के दुख को देखकर जीमूतवाहन ने वचन दिया कि वह उसके पुत्र की रक्षा करेंगे।

जब गरुड़ देव आये तो राजा जीमूतवाहन ने अपने वचन के पालन के लिए खुद को नागिन के पुत्र की जगह गरुड़ देव के सामने उपस्थित कर दिया। फिर गरुड़ देव ने उन्हें पकड़कर पहाड़ की ओर उड़ान भरी, लेकिन रास्ते में उन्होंने जीमूतवाहन से उनकी पूरी सच्चाई सुनी। दयालु राजा जीमूतवाहन की करुणा और शक्ति को देखकर गरुड़ देव प्रभावित हुए, और कहा कि वह कभी भी किसी सांप या किसी के बच्चे को कभी नहीं खाएंगे। 

श्रीकृष्ण ने दिया था परीक्षित को दूसरा जीवन

महाभारत के युद्ध के बाद, अपने पिता द्रोणाचार्य की मृत्यु और कौरवों की हार से क्रोधित होकर अश्वत्थामा ने ब्रह्मास्त्र का प्रयोग किया था। जिसके प्रभाव से अभिमन्यु की पत्नी उत्तरा के गर्भ में पल रहा शिशु नष्ट हो गया।

मगर भगवान श्रीकृष्ण ने अपनी दिव्य शक्तियों से गर्भस्थ शिशु को पुनः जीवन दान दिया। फिर बालक ने जन्म लिया और उसका नाम परीक्षित रखा गया। इसीलिए उसे जीवित्पुत्रिका कहा जाता है क्योंकि मरने के बाद उसे फिरसे जीवन मिला था। तभी से महिलाएं बच्चों की खुशहाली के लिए जितिया व्रत करती हैं। 

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