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जून माह में कालाष्टमी कब है

जून माह में कालाष्टमी कब है

Kalashtami 2025: जून में कब है कालाष्टमी, जानिए शुभ मुहूर्त और पूजा का महत्व 

हिंदू पंचांग में कालाष्टमी एक विशेष तिथि मानी जाती है, जो प्रत्येक कृष्ण पक्ष की अष्टमी को आती है। यह दिन भगवान शिव के उग्र रूप काल भैरव को समर्पित होता है। धार्मिक परम्पराओं के अनुसार, कालाष्टमी की पूजा विशेष रूप से रात के समय की जाती है, क्योंकि इसे रात्रिकालीन उपासना का पर्व माना गया है। इसलिए भक्त इस दिन उपवास रखकर रात में भगवान काल भैरव की पूजा-अर्चना करते हैं।

18 जून, बुधवार को रखा जाएगा कालाष्टमी व्रत 

पंचांग के अनुसार, जून 2025 में कालाष्टमी की शुभ तिथि 18 जून, बुधवार को पड़ रही है। अष्टमी तिथि का शुभारंभ 18 जून को दोपहर 1:34 बजे से होगा और अष्टमी तिथि 19 जून को सुबह 11:55 बजे समाप्त होगी।  

अधर्म का संहार करने भगवान शिव ने लिया था काल भैरव अवतार

कालाष्टमी का दिन शिवभक्तों के लिए अत्यंत पवित्र और फलदायी होता है। यह तिथि भगवान शिव के रौद्र रूप काल भैरव की आराधना के लिए जानी जाती है। पौराणिक मान्यता के अनुसार, भगवान शिव ने जब ब्रह्मा जी के अहंकार को शांत करने के लिए अपने अंश से काल भैरव को उत्पन्न किया, तब से यह रूप अधर्म और अन्याय का विनाशक माना गया।

ऐसा माना जाता है कि कालाष्टमी पर व्रत रखने और काल भैरव की पूजा करने से भय, रोग, शत्रु और नकारात्मक शक्तियों से रक्षा होती है। साथ ही, व्रतकर्ता की मनोकामनाएं भी पूरी होती हैं और जीवन में शांति आती है।

कालाष्टमी व्रत पर अर्पित करें नारियल और काले तिल

  • स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
  • घर में या मंदिर में भगवान काल भैरव की प्रतिमा या चित्र स्थापित करें। 
  • फूल, फल, नारियल, पंचामृत काले तिल और मिठाई अर्पित करें। 
  • काल भैरव मंत्र ‘ॐ काल भैरवाय नमः’ का जाप करें। 
  • भगवान काल भैरव की कथा का श्रवण या पाठ करें। 
  • रात्रि में विशेष ध्यान और स्तुति करें, जिसमें 'काल भैरव अष्टकम्' का पाठ शुभ माना जाता है।
  • गरीबों को भोजन कराएं और वस्त्र या अन्न का दान करें। 

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रंगोली क्यों बनाई जाती है?

सनातन धर्म में रंगों को हमेशा से पवित्र माना गया है। रंगोली, न सिर्फ हमारे घरों को सजाती है बल्कि वैज्ञानिक रूप से भी हमारे मन को शांत और खुशहाल बनाती है।

धूप और अगरबत्ती क्यों जलाई जाती है?

सनातन धर्म में सभी देवी-देवताओं की पूजा में विशेष रूप से धूपबत्ती जलाने की परंपरा है। बिना धूपबत्ति के पूजा-पाठ अधूरी मानी जाती है। ऐसा कहा जाता है कि धूपबत्ती जलाने से घर में सकारात्कता का संचार होता है और व्यक्ति के जीवन में भी शुभता आती है।

मंदिर में प्रवेश से पहले पैर धोना क्यों आवश्यक है?

मंदिर में प्रवेश के मुख्य नियमों में से एक है, प्रवेश से पहले पैरों को धोना। माना जाता है कि चाहे हम तन और मन से कितने ही शुद्ध क्यों न हों, मंदिर में प्रवेश से पूर्व हाथों के साथ-साथ पैरों को धोना अत्यंत आवश्यक होता है।

भोग लगाने के बाद ही भोजन क्यों किया जाता है?

हिंदू धर्म में पूजा-अर्चना करने के दौरान देवी-देवताओं को भोग लगाने का विशेष महत्व है। बिना भगवान को भोग लगाए पूजा अधूरी मानी जाती है।

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