कोकिला व्रत हिंदू धर्म का एक अत्यंत श्रद्धा पूर्वक मनाया जाने वाला व्रत है, जो आषाढ़ मास की पूर्णिमा तिथि को रखा जाता है। यह व्रत भगवान शिव और माता पार्वती को समर्पित होता है, और इसे अखंड सौभाग्य, मनचाहे वर की प्राप्ति और सभी मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए महिलाएं करती हैं। इस व्रत का विशेष महत्व है क्योंकि यह पौराणिक समय से चला आ रहा है और इससे जुड़ी कथा अत्यंत प्रेरणादायक मानी जाती है। पंचांग के अनुसार, कोकिला व्रत 2025 में 10 जुलाई को पड़ रही है।
इस व्रत की कथा का संबंध राजा दक्ष, देवी सती और भगवान शिव से है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, राजा दक्ष की पुत्री सती ने अपने मन से भगवान शिव को पति रूप में वरण कर लिया था। लेकिन राजा दक्ष शिवजी को सम्मान नहीं देते थे। उन्होंने एक बार यज्ञ का आयोजन किया और सभी देवताओं को आमंत्रित किया, पर भगवान शिव को नहीं बुलाया। जब सती को यह बात पता चली तो वे बिना बुलाए ही यज्ञ में पहुंच गईं। वहां उन्होंने अपने पति का अपमान होते देखा और दुखी होकर यज्ञ की अग्नि में कूदकर अपने प्राण त्याग दिए।
भगवान शिव जब यह समाचार सुनते हैं, तो वे अत्यंत क्रोधित हो जाते हैं और सती के मृत शरीर को लेकर पूरे ब्रह्मांड में भ्रमण करने लगते हैं। देवताओं की प्रार्थना पर भगवान विष्णु अपने सुदर्शन चक्र से सती के शरीर के टुकड़े-टुकड़े कर देते हैं। इन टुकड़ों के जहां-जहां गिरने से शक्ति पीठों की स्थापना होती है।
भगवान शिव सती के वियोग में बहुत दुखी होते हैं। ऐसी मान्यता है कि उन्होंने 10,000 वर्षों तक कोयल बनकर वन में भटकने का श्राप झेला। वहीं दूसरी ओर, सती ने कोयल के रूप में तपस्या की और भगवान शिव को पुनः पति रूप में प्राप्त करने के लिए कठोर व्रत किया। इसी घटना की स्मृति में आज भी कोकिला व्रत मनाया जाता है।