श्रावण मास की पंचमी तिथि को नाग पंचमी के रूप में मनाया जाता है। इस दिन नाग देवता की पूजा की जाती है और विशेष रूप से दूध अर्पित किया जाता है। कई लोग इस परंपरा को सिर्फ एक धार्मिक रिवाज मानते हैं, लेकिन इसके पीछे एक बेहद महत्वपूर्ण पौराणिक कथा और ज्योतिषीय कारण जुड़ा है, जो इसे खास बनाता है।
पुराणों में बताया गया है कि अर्जुन के पुत्र अभिमन्यु के बेटे राजा परीक्षित की मृत्यु तक्षक नाम के नाग के डसने से हुई थी। पिता की मृत्यु का बदला लेने के लिए राजा जन्मेजय ने एक विशाल नाग यज्ञ करवाया, जिसमें धरती के सभी सांप खींचकर हवन कुंड में गिरने लगे। इससे धरती पर सांपों का अस्तित्व संकट में आ गया।
इस स्थिति से बचने के लिए तक्षक नाग इंद्र देव के सिंहासन में जाकर छिप गया। यज्ञ इतना शक्तिशाली था कि इंद्र देव का सिंहासन भी तक्षक नाग के साथ हवन कुंड की ओर खिंचने लगा। इसे देखकर ऋषि-मुनियों और देवताओं ने हस्तक्षेप किया। उन्होंने राजा जन्मेजय को समझाया कि यदि सारे सांप नष्ट हो गए, तो प्रकृति का संतुलन बिगड़ जाएगा। उनके कहने पर यज्ञ को वहीं रोक दिया गया।
मान्यता है कि यज्ञ की अग्नि से झुलसे हुए नागों की पीड़ा शांत करने के लिए उन्हें दूध से स्नान कराया गया था। और यह दिन नाग पंचमी का ही दिन था। तभी से नाग देवता को दूध चढ़ाने की परंपरा शुरू हुई, जो आज भी निभाई जाती है।
ज्योतिष के अनुसार, जिन लोगों की कुंडली में काल सर्प दोष होता है, उनके लिए नाग पंचमी का दिन विशेष महत्व रखता है। इस दिन नाग देवता की पूजा और दूध अर्पित करने से इस दोष का प्रभाव कम होता है। साथ ही जीवन में आ रही रुकावटें, मानसिक तनाव और आर्थिक परेशानियां भी धीरे-धीरे खत्म होती हैं।
ऐसा भी माना जाता है कि जो लोग पिछले जन्म में नागों को नुकसान पहुंचाते हैं, उन्हें इस जन्म में बाधाओं का सामना करना पड़ता है। लेकिन नाग पंचमी पर श्रद्धा से की गई पूजा और दूध अर्पण से ऐसे पापों का शमन होता है और जीवन में सकारात्मक बदलाव आता है।
शास्त्रों में यह भी कहा गया है कि नाग देवता की कृपा से नि:संतान दंपती को संतान सुख का आशीर्वाद मिल सकता है। इस दिन किए गए पूजन से परिवार में सुख-शांति बनी रहती है और बुरी शक्तियों का असर नहीं होता।
शरद पूर्णिमा के समापन के बाद कार्तिक मास की शुरुआत हो जाती है। हिंदू धर्म में कार्तिक मास को विशेष महत्व प्राप्त है। इस महीने जगत के पालनहार भगवान विष्णु की विधिपूर्वक पूजा-अर्चना करने का विधान है।
सनातन धर्म में श्री ब्रह्मा, श्री विष्णु और श्री महेश तीनों को सभी देवी देवताओं में श्रेष्ठ माना गया है। इनसे जुड़ी कई पौराणिक कथाएं प्रचलित हैं।
सनातन धर्म में तुलसी के पौधे को अत्यंत शुभ और पूजनीय माना जाता है। धार्मिक मान्यता के अनुसार भगवान विष्णु को तुलसी बहुत प्रिय है।
इस वर्ष कार्तिक शुक्ल पक्ष की एकादशी जिसे देवउठनी एकादशी, देवोत्थान या देव प्रबोधिनी एकादशी भी कहा जाता हैं 12 नवंबर को मनाई जाएगी।